- चार बार के सीएम के इस रवैये से राजनीति के जानकार हैरत में
- शायद वह समझ गई हैं कि बसपा के लिए मुस्कराने का मौका गुजर चुका है
- यूपी का राजनीति में मायावती मुख्य लड़ाई में कहीं दिखाई नहीं देती -अजय बोस
लखनऊ। आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मी लगातार तेज होती जा रही है। लगभग सभी प्रमुख दलों के महारथी (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सपा के मुखिया अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, आप के केजरीवाल) मैदान में हैं। अपनी चुनावी सभाओं में ये अपने तरकश के सभी तीर छोड़ रहे हैं, पर बसपा सुप्रीमो मायावती अब भी अपनी मांद (घर) में ही हैं। यूपी की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती ने अभी तक एक भी चुनावी रैली नहीं की है। बसपा के समर्थक पार्टी मुखिया के इस रवैये से हैरान हैं। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर क्यों पार्टी के अधिकांश विधायक अन्य दलों में चले गए? और क्यों बहनजी (मायावती) चुनाव प्रचार करने के लिए घर से बाहर नहीं निकल रही हैं? जबकि आगामी चुनाव पार्टी के लिए बेहद अहम हैं।
बसपा समर्थको के जहन में यह सवाल आना वाजिब है। यह लोग देख रहें हैं कि प्रधानमंत्री हर हफ्ते यूपी में आकर बड़ी बड़ी परियोजनाओं का शिलान्यास कर रहे हैं। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भी जिलों में जाकर लोगों को सरकार के किए गए कार्यों की जानकारी दे रहें हैं। स्ट्रीट वेंडर्स, श्रमिक तथा आंगनवाड़ी वर्कर्स को सौगात दे रहें हैं। दूसरी तरफ सपा मुखिया अखिलेश यादव भी यूपी में विजययात्रा रथ निकाल रहे हैं। इन यात्राओं के जरिए अखिलेश सत्ता बनने पर गरीबों को पांच साल फ्री राशन देने और तीन सौ यूनिट फ्री बिजली देने की घोषणा की है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी यूपी में लगातार एक के बाद एक रैलियां कर रही हैं। प्रियंका महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकट देने और इंटर पास होने वाली लड़कियों को स्मार्टफ़ोन और स्कूटी देने का एलान भी कर चुकी हैं। यूपी के 15.02 करोड़ से अधिक मतदाताओं में युवा और महिलाओं को साधने पर उनका ख़ासा फोकस है। लेकिन बसपा मुखिया मायावती के चेहरा यूपी के किसी भी जिले चुनाव प्रचार करता हुआ नहीं दिखाई दे रहा, जबकि मायावती ही बसपा की मुख्य प्रचारक हैं। उनके नाम पर ही बसपा को वोट मिलता है, लेकिन अभी तक वह अपने घर के बाहर नहीं निकली हैं। कांशीराम और आंबेडकर जयंती पर ही वह घर से बाहर निकली थी, इसके अलावा वह अपने घर के बाहर नहीं आयी। लंबे समय से मायावती अपने घर पर प्रेस कांफ्रेंस कर और ट्वीट के जरिए अपनी बात कर रही हैं।
कहा जा रहा है कि मायावती के जनता से दूरी बनाने के चलते ही पार्टी के विधायक अन्य दलों में चले गए हैं। वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में मायावती ने 19 सीटें जीतकर तीसरा स्थान हासिल किया था, लेकिन अब पार्टी में मात्र तीन विधायक ही बचे हैं। ऐसे में मायावती के चुनावी मैदान से ग़ायब होने को लेकर चर्चाएं तेज़ हैं। तमाम राजनीतिक विश्लेषक मायावती के चुनाव मैदान में ना उतरने पर हैरानी जता रहे हैं। यूपी के चुनावी नतीजों पर किताब लिखने वाले राजेन्द्र द्विवेदी तो चार बार राज्य की मुख्यमंत्री रहीं मायावती के अब तक चुनाव में सक्रिय ना होने को लेकर हैरान हैं? वह कहते हैं कि ऐसे समय में जब बसपा के कई विधायक छिटक चुके हैं, तब मायावती का चुनाव मैदान में ना उतरना बसपा को नुकसान ही पहुंचाएगा। वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी भी मानते हैं कि ये हैरान करने वाली बात है कि मायावती कहीं दिख क्यों नहीं रही हैं। रामदत्त के अनुसार, संभवत: ये कहा जा रहा है कि उन पर और उनके परिवार के सदस्यों पर आय से अधिक संपत्ति के मामलों के कारण वे दबाव में हैं। बसपा समर्थक रामदत्त के कथन से सहमत नहीं हैं, शायद यह सही भी है। वास्तव में मायावती के अब तह चुनाव मैदान में ना उतरने की मुख्य वजह बसपा के पास लोकप्रिय नेताओं का अभाव होना है। बीते छह वर्षों में बृजेश पाठक, स्वामी प्रसाद मौर्य, जयवीर सिंह, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, रामवीर उपाध्याय , विनय शंकर सरीखे कई प्रमुख नेता बसपा के नाता तोड़कर अन्य दलों में चलते गए। बसपा में बड़े नेताओं के नाम पर अब सतीश चंद्र मिश्र ही बचे हैं लेकिन सतीश चंद्र के नाम पर वोट नहीं मिलते। पार्टी में उन्हें मुखौटा बताया जाता है। जिसके चलते पार्टी के चुनाव प्रचार की मुख्य जिम्मेदारी मायावती पर ही है। बसपा समर्थकों का कहना है कि मायावती के अभी से चुनाव प्रचार शुरू करने से उन्हें लंबे समय तक चुनाव प्रचार करना होना। मायावती लंबे समय तक चुनाव प्रचार नहीं करना चाहती हैं, इसलिए अभी वह चुनाव प्रचार से दूर हैं और चुनावी रणनीति बनाने में जुटी हैं।
मायावती की बनाई जा रही रणनीति को लेकर मायावती पर किताब लिखने वाले अजय बोस कहते हैं कि वर्तमान में यूपी का राजनीति में मायावती मुख्य लड़ाई में कहीं दिखाई नहीं देती। ऐसे में वह अपने पुराने तरीके से प्रचार करने करने की रणनीति पर चल हैं, ताकि पैसे बचे। मायावती का यह प्रयास बसपा को नुकसान पहुंचाएगा, यह वह जानती भी है। राजधानी के पत्रकार शरद प्रधान का भी ऐसा ही मत है। वह कहते है कि अब मायावती केवल अपने कुछ लोगों को भेजकर ब्राह्मण सम्मेलन करा देती हैं, प्रेस नोट जारी करवाती हैं या ट्वीट कर देती हैं, ऐसे में उनका जो वोटर उनके साथ जुड़ता था वो इस सीमित कोशिश से कैसे जुड़ेगा? मायावती साल बीते विधानसभा चुनाव में 19 सीटें जीतकर तीसरे स्थान पर रही थीं। वो जब सत्ता में आती हैं उनका ग्राफ बढ़ता है और हटती है तो वो गिर जाता है। साल 2007 के बाद से साल 2012 और 2017 में उनका जनाधार गिरा है। ऐसे में अगर अब वह घर के बाहर निकल कर चुनाव प्रचार में नहीं जुटी तो पार्टी को नुकसान होगा और उसकी भरपाई कठिन होगी।
राजनीति के जानकारों के ऐसे विचारों का मायावती ने भी संज्ञान लिया है और उन्होंने अभी चुनाव प्रचार में सक्रिय ना होने की वजह भी बताई है। मायावती के अनुसार, चुनाव की तैयारी को लेकर बसपा की अलग कार्यशैली है और तौर-तरीके हैं। जिन्हें हम बदलना नहीं चाहते हैं। हमारी पार्टी की कार्यशैली के लिए दूसरी पार्टियों को हमारी चिंता नहीं करनी चाहिए, हमें ख़ुद अपनी पार्टी की चिंता है। मायावती के इस कथन पर वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पाण्डेय कहते हैं, मायावती का तय तर्क सही नहीं है, वर्ष 2007 और वर्ष 2012 में मायावती ने सबसे पहले चुनाव प्रचार शुरू किया था। वर्ष 2012 में हुए चुनावों में तब उन पर सरकारी धन से चुनाव प्रचार करने के आरोप लगे थे। तब 26 जनवरी को निकाली जाने वाली यूपी की झांकी तक पर रोक लगाई गई थी और चुनाव आयोग अंबेडकर उद्यान में लगी हाथी की प्रतिमा को ढकने के आदेश दिए थे। इसलिए मायावती जो तर्क दे रही हैं वह अपनी कमी पर पर्दा डालने का प्रयास ही है। सच तो यह है कि वर्ष 2017 का विधानसभा मायावती के मुस्कराने का अंतिम अवसर था। इस चुनाव में तीसरे नम्बर पर आकर उन्होंने अपनी संभावनाओं को समाप्त कर दिया। यही वजह है कि बसपा के धुरंधर एक-एक कर पार्टी का साथ छोडते गये। ऐसे में अब न माया के दिन लौटेंगे और न बसपा के। एक कुशल राजनेता के नाते मायावती को भी यह पता है। शायद यही वजह है कि वह इस सर्दी में निकलने से बेहतर घर में रहना ही पसंद कर रही हैं।