केजीएमयू प्रशासन इस साल अपनी सीटी स्कैन और एमआरआई मशीन लगाएगा। इससे जांचें सस्ती होंगी। अभी पीपीपी मॉडल पर लगी मशीनों से मरीजों की जांच होती है। नई मशीनें लगने के बाद नए सिरे से जांच की दरें तय होंगी, जो पहले के मुकाबले कम होंगी।
कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने बताया कि केजीएमयू को हर साल सरकार से औसतन 50 से 80 करोड़ रुपये का बजट मशीनों, उपकरणों के लिए मिलता था। यह रकम इतनी कम होती थी कि किसी एक विभाग को 10 करोड़ रुपये देना तक संभव नहीं था। इस पर सरकार से ज्यादा बजट की मांग की गई थी। इस बार बजट में इस मद में 300 करोड़ रुपये आवंटित हुए हैं। इससे अब सीटी स्कैन और एमआरआई मशीन लगाई जा सकेगी। अभी तक ये मशीनें पीपीपी मॉडल पर संचालित हो रही हैं। शासनादेश जारी होने के बाद खरीद की प्रक्रिया शुरू होगी।
शुल्क एसजीपीजीआई के बराबर: केजीएमयू में जो नए टेस्ट शुरू होते हैं, उनका शुल्क एसजीपीजीआई के समान रखा जाता है। एसजीपीजीआई की स्थापना पेड हॉस्पिटल के रूप में हुई है। वहीं, केजीएमयू की स्थापना पूर्णत: सशुल्क अस्पताल के रूप में नहीं है। इसके बावजूद दोनों के जांच शुल्क में समानता रखी जा रही है। इसके चलते मरीजों को महंगी जांच दर का भुगतान करना पड़ता है।
सरकारी संस्थान, फिर भी महंगा इलाज
- केजीएमयू सरकारी संस्थान है। इसके बावजूद यहां का इलाज सामान्य मरीजों की जेब पर भारी पड़ रहा है। यहां भले ही 50 रुपये में छह माह के लिए पर्चा बनता हो, लेकिन इलाज कराने में मरीजों की हालत खराब हो जाती है।
- संस्थान में सरकार की ओर से जो निशुल्क दवाएं मिलती हैं, उनके लिए महीने भर से ज्यादा का इंतजार करना पड़ता है। एचआरएफ की व्यवस्था भी गड़बड़ होने से मरीजों को रियायती दर पर सभी दवाएं नहीं मिल पाती हैं। पीपीपी मॉडल पर होने वाली जांच का शुल्क काफी महंगा है।