अवध की राजनीति में भले ही महिलाओं की अलग पहचान है। यहां से इंदिरा गांधी ने जीतकर प्रधानमंत्री तक का सफर पूरा किया। यूपीए गठबंधन की धुरी रहीं सोनिया भी अमेठी और रायबरेली से जीतकर आगे बढ़ीं। प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का कद भी यहीं से कद्दावर बना। लेकिन अवध के केंद्र अयोध्या में महिला पर ‘भरोसे’ का इंतजार है।
18वीं लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। आधी आबादी को जब भी मौका मिला, हर क्षेत्र में उसने सफलता का परचम लहराया है। बस, लोकसभा चुनाव में ही वह मुकाम हासिल नहीं हुआ, जिसकी वह हकदार हैं। इसके पीछे वजह यह नहीं कि उनमें काबिलियत की कमी है, बल्कि वह प्रमुख राजनीतिक दलों की उपेक्षा की शिकार हैं। नेताओं ने महिला मतों को हासिल करने में तो दिलचस्पी दिखाई, लेकिन उन्हें संसद में भेजने की इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाए।
अयोध्या में 1951 से आज तक एक भी महिला सांसद नहीं बनी। यहां तक कि किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने आज तक उन्हें टिकट ही नहीं दिया। यदा-कदा निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उन्होंने ताल ठोंका भी तो हार का सामना करना पड़ा। पहली बार 1971 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन) से पूर्व मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी चुनाव लड़ीं, लेकिन वह हार गईं।
इसी समय निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सरोज ने 10,232 मत हासिल किए थे।
1996 में निर्दलीय शशिकला विश्वकर्मा को 1606 मत मिले थे। 1999 में सुधा सिंह व चंद्रकांति राजवंशी, 2009 में नजरीन बानो निर्दलीय चुनाव लड़ीं। इन्हें भी मामूली वोट मिले। इस बार भी सभी प्रमुख दलों ने अपना पत्ता खोल दिया है, लेकिन हर बार की तरह महिलाएं किसी भी दल का भरोसा नहीं जीत सकीं। संसद पहुंचने का इनका सपना धरा रह गया।
मंडल के चार जिलों में महिला सांसदों का रहा है जलवा
पड़ोसी जिले अंबेडकरनगर से पूर्व मुख्यमंत्री मायावती 1998, 1999 व 2004 में सांसद बनीं। 2014 में बाराबंकी जिले से प्रियंका सिंह रावत सांसद बनीं। सुल्तानपुर में मेनका गांधी मौजूदा सांसद हैं। अमेठी से 1999 में सोनिया गांधी पहली महिला सांसद रहीं। स्मृति ईरानी मौजूदा सांसद हैं।
पूर्वांचल में भी उपेक्षा कम नहीं
लोकसभा चुनाव में बतौर प्रत्याशी महिलाओं की उपेक्षा के मामले में बस्ती, गोरखपुर, वाराणसी, जौनपुर, भदोही, गाजीपुर, कुशीनगर, देवरिया, मऊ, महराजगंज, संत कबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बलिया व सोनभद्र भी कम नहीं हैं। आज तक एक भी महिला सांसद नहीं बन सकीं। इनमें अधिकतर जिलों में भी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने किसी भी महिला प्रत्याशी पर दांव ही नहीं लगाया।