यूपी: पार्टियों को सेलिब्रिटी ही नहीं, रील बनाने वालों की भी दरकार…

यूपी: पार्टियों को सेलिब्रिटी ही नहीं, रील बनाने वालों की भी दरकार…

चुनाव है तो प्रचार होगा। प्रबंधन पर भी जोर रहेगा। आखिर कोशिश मतदाताओं से सीधे जुड़ने की जो है। अलबत्ता पुरानी व्यवस्था से इतर इस बार अंदाज नया है। राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को सेलिब्रिटी ही नहीं, रील बनाने वाले आम आदमी भी चाहिए। यही कारण है कि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और पीआर एजेंसियों की व्यस्तता बढ़ गई है। इनमें स्थानीय यूट्यूबर भी शामिल हैं।

लोकसभा चुनाव में प्रचार पर डेढ़ से दो लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। चुनाव प्रबंधन में सोशल मीडिया से जुड़े लोगों का कहना है कि इसमें से एक बड़ी रकम सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और पीआर एजेंसियों के खाते में जाएगी। इन्फ्लुएंसर और पीआर एजेंसियों के पैकेज की बात करें तो 50 हजार से लेकर 50 लाख रुपये में डील हो रही है।

जमीनी स्तर पर पहुंच के लिए बदला तरीका
सोशल मीडिया व कम्युनिकेशन विशेषज्ञों का कहना है कि जमीनी स्तर पर पैठ बनाने के लिए राजनेताओं ने इस बार सेलिब्रिटी इन्फ्लुएंसर के साथ रील बनाने वाले आम लोगों से काम लेने की रणनीति बनाई है। कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट वासित मलिक बताते हैं कि सेलिब्रिटी जमीनी स्तर पर जाकर काम नहीं करेंगे। राजनेताओं के लिए एक-एक वोट कीमती है। इस कारण उन्होंने आम आदमी को चुना है। आम लोगों की पहुंच स्थानीय स्तर पर घर-घर तक हो जाती है। इसमें रील अहम माध्यम बन रहा है। इसे लोग पसंद भी कर रहे हैं।

चुनाव प्रचार में एआरसी पर तेजी से हो रहा काम
दिल्ली से चुनाव प्रचार अभियान देख रही एक कंपनी के राजनीतिक चुनाव प्रबंधक आमिर जमाल के मुताबिक, इस वक्त राजनीतिक दल एआरसी ट्रैंगल पर काम कर रहे हैं। यह वह मॉडल है, जिसके तहत एक आम आदमी के जरिए संदेश परिवार से परिवार तक पहुंचता है।

  • ए यानी एफिनिटी या आत्मीय, आर यानी रिस्पेक्ट या सम्मान। इसके लिए स्थानीय इन्फ्लुएंसर की जरूरत होती है। इसी तरह चुनाव के दौरान रीच इंगेजमेंट लीड कन्वर्जन इन्फ्लूएंसर का मॉडल काम कर रहा है। इसमें रीच कैटेगरी में वे हैं, जो किसी नेता की बात को आम लोगों तक पहुंचाते हैं। इंगेजमेंट में वे शामिल हैं जो मंच देते हैं।
  • इनमें मीडिया, औद्योगिक व सामाजिक संगठन शामिल हैं। इसी तरह इन संगठनों के वे लोग जिनकी बात सुनी जाती है, उन्हें लीड कैटेगरी में शामिल करते हैं। कन्वर्जन में सीधे तौर पर राजनीतिक दल के लोग ही शामिल होते हैं।

चुनाव से दो माह पहले की कंसल्टेंसी फीस तीन से चार गुना बढ़ी
शहर की एक प्रमुख पीआर एजेंसी का कहना है कि आम तौर पर राजनेताओं ने चुनाव से पहले ही दो से तीन महीने के लिए डील की है। सामान्य दिनों में एक लाख रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह शुल्क लिया जा रहा था, लेकिन चुनाव में तीन से चार लाख रुपये लिए जा रहे हैं।

पाडकास्टिंग बेहतरीन विकल्प
पहले सिर्फ सेलिब्रिटी के पाडकास्ट थे। अब 50 फीसदी इन्फ्लुएंसर इससे जुड़े हैं। उनका अपना पाडकास्ट है या वे सीरीज चला रहे हैं। चुनाव में प्रति ब्राडकास्ट रेट 5 से 10 लाख रुपये चल रहा है।

  • शहर के एक यूट्यूबर के मुताबिक, एक पार्टी ने व्यूज के हिसाब से एक-एक यूट्यूबर को तीन-तीन लाख रुपये तक दिए हैं। एक पार्टी शुल्क के बजाय उन्हें जाने, कवर करने के लिए संसाधन मुहैया करा रही है। यूट्यूबर सौरभ के मुताबिक कुछ पीआर एजेंसियों ने इसके लिए संपर्क किया है।


 

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