- विपक्ष में छिड़ा वोटरों को ‘फ्री गिफ्ट’ देने का कॉम्पिटिशन
- बीते विधानसभा चुनावों से भी सबक नहीं ले सके अखिलेश
लखनऊ। आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर उत्तर प्रदेश में विपक्षी पार्टियां वोटरों को लुभाने की हर कोशिश में लग गई हैं। जिसके तहत समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) सरीखे दल नई-नई स्कीमों और ऑफरों का ऐलान कर एक दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में लगे हैं। ये राजनीतिक दल चुनावी वादों में वह सब कुछ कवर करने की कोशिश कर रही हैं, जिनके बारे में मतदाताओं ने सोचा भी नहीं था। मुफ्त बिजली, स्कूटी, लैपटॉप, स्मार्टफोन देने के वादों के बीच सपा मुखिया अखिलेश यादव ने तो चुनावी वादों में सांडों को भी उतार दिया है। उन्होंने वादा किया है कि सड़क हादसे में जान गंवाने वाले हर साइकिल सवार और सांड की टक्कर से मौत होने पर सपा सरकार पांच लाख का मुआवजा देगी। वोटरों को लुभाने के लिए विपक्षी दलों के बीच फ्री गिफ्ट देने की मची होड़ से राज्य के मतदाता हैरत में हैं। और अब यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या चुनाव से पहले विपक्ष में छिड़ा वोटरों को ‘फ्री गिफ्ट’ देने का कॉम्पिटिशन का कुछ लाभ होता है? क्या वोटरों का मूड इससे बदलता है?
यह सवाल पूछे जाने की कई वजहें हैं। राज्य में सक्रिय हर राजनीतिक दल को पता है कि अब तक यूपी में हुए चुनावों में फ्री गिफ्ट (चीजें) बांटने का दांव काम नहीं आया है। जबकि साउथ और अन्य राज्यों में राजनीतिक पार्टियों को इस तरह के ऐलान से फायदा मिला है। इसके बाद भी प्रियंका गांधी ने यह ऐलान किया कि यूपी में सरकार बनने पर इंटर पास लड़कियों को स्मार्टफोन और स्नातक लड़कियों को इलेक्ट्रानिक स्कूटी दी जाएगी। इसके पूर्व आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने चुनाव जीतने पर 300 यूनिट फ्री बिजली देने का ऐलान किया। इसके अलावा उन्होंने किसानों को मुफ्त बिजली देने और 18 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के बैंक खातों में हर महीने 1,000 रुपये ट्रांसफर करने का वादा किया। कांग्रेस और आप जैसे कमजोर दलों के ऐसी घोषणाएं करते देख सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही योगी सरकार को चुनौती देने के लिए एक साथ कई ऐलान कर दिए। इसी क्रम में अखिलेश यादव अपने चुनावी वादों में सांडों को भी चुनावी वादों की जद में आए। उन्होंने वादा किया है कि सड़क हादसे में जान गंवाने वाले हर साइकिल सवार और सांड की टक्कर से मौत होने पर सपा सरकार पांच लाख का मुआवजा देगी। इसके अलावा उन्होंने सत्ता में आने पर गरीबों को पांच वर्षों तह फ्री राशन देने, पूर्व ग्राम प्रधानों को भी मानदेय देने और 300 यूनिट फ्री बिजली देने का ऐलान किया।
विपक्षी दलों के इन वादों पर जनता की बीच बहस हो रही हैं। ऐसी चर्चाओं में लोग यह जानना चाहते हैं कि अखिलेश, प्रियंका और अरविंद केजरीवाल जो वादे कर रहे हैं, उन्हें पूरा कैसे किया जाएगा? जनता के ऐसे सवालों पर राजनीतिक विश्लेषक और सीनियर जर्नलिस्ट गिरीश पांडेय कहते हैं कि हिंदी भाषी बेल्ट दक्षिण भारत से अलग है। यहां पर दो कारण हैं जिस वजह से इन आर्थिक लोकलुभावन वादों का असर नहीं पड़ता है। यूपी का मतदाता बुद्धिजीवी है, जागरूक है। एक गांव में रहने वाला ग्रामीण भी स्थानीय राजनीति से लेकर मोदी और बाइडन की बात करता हैं। भले ही वह ज्यादा पढ़े-लिखे न हों लेकिन राजनीति तौर पर परिपक्व होते हैं। यही वजह है कि यूपी में लोग पूछ रहे हैं कि 300 यूनिट बिजली देने के वादे को पूरा करने के लिए होने वाले 34 हजार करोड़ रुपए के खर्च का प्रबंध कैसे किया जाएगा? क्या इसके लिए जनता पर टैक्स थोपा जाएगा? गिरीश कहते हैं कि यूपी का मतदाता लालच और लोकलुभावन में नहीं पड़ता है। फ्री गिफ्ट के ऐलान यूथ को अच्छे लगते हैं लेकिन जो परिपक्व मतदाता होता है वह इस तरह के चुनावी वादों में नहीं फंसता है। यहीं वजह है, कि बीते साल बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने बेरोजगार युवाओं को 10 लाख नौकरी का वादा किया, 1500 रुपये बेरोजगारी भत्ता, सरकारी नौकरियों का फॉर्म भरने के लिए युवाओं से कोई आवेदन शुल्क नहीं का वादा किया लेकिन यह काम नहीं आया। इसी प्रकार वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव के गरीबों को मुफ्त गेहूं, गरीब महिलाओं को प्रेशर कुकर, मेधावी छात्रों को स्मार्टफोन, महिलाओं को रोडवेज में आधा किराया, एक करोड़ लोगों को मासिक पेंशन का वादा किया लेकिन वह चुनाव हार गए।
अब फिर फ्री गिफ्ट देने की विपक्षी दलों में होड़ मची है। लोग विपक्षी दलों के नेताओं के वादों पर चर्चा भी कर रहे हैं। बहस हो रही है कि किस दल ने सत्ता में आने पर अपने वादे पूरे किए और किसने अपने वादे भुला दिए। ऐसी चर्चाओं में कहा जा रहा है कि जो लोग मुफ्त सेवाओं का मजा लेते हैं या उनका लाभ उठाते हैं, उन्हें इस सच को नहीं भूलना चाहिए कि ये मुफ्त की चीजें किसी राजनीतिक दल की जेब से नहीं बल्कि टैक्सपेयर्स के पैसे से आती हैं। इसका एक मकसद गरीबों की क्षमता बढ़ाना, गरीबी कम करना और लक्षित लाभार्थियों को सशक्त बनाना है। ऐसे में इसका सही हाथों में जाना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसके नुकसान ही नुकसान हैं। राज्य की अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ता है। राज्य की अर्थव्यवस्था पर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार विवेक त्रिपाठी कहते हैं कि फ्री गिफ्ट सरीखे वादों को पूरा करने से राज्य के संसाधन पर बोझ बढ़ाता है। इस बोझ को कर्ज लेकर पूरा किया जाता है। इस तरह तमाम दूसरी स्कीमों से कटौती करनी पड़ती है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों को भुगतना पड़ता है। उस स्थिति में तरक्की की रफ्तार सुस्त पड़ती है।