भारत, भारतीय और भारतीयता का संरक्षण संस्कृत शास्त्रों से सम्भव : जयवीर सिंह

भारत, भारतीय और भारतीयता का संरक्षण संस्कृत शास्त्रों से सम्भव : जयवीर सिंह

वाराणसी। प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति और वाराणसी के प्रभारी मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि भारत, भारतीय और भारतीयता का संरक्षण संस्कृत शास्त्रों से सम्भव है। संस्कृत से ही हमारी संस्कृति और संस्कार सुरक्षित होंगे। इसी से हमारे चरित्र का निर्माण और संरक्षण होगा। पर्यटन मंत्री शुक्रवार को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केन्द्र का सम्यक अवलोकन करने के बाद सभा को सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि ऑनलाइन संस्कृत पाठ्यक्रम से भारतीय ज्ञान राशि वैश्विक पटल पर स्थापित होगा। इस संस्था ने वेद शास्त्रों में निहित भारतीय ज्ञान राशि का व्यापक स्तर पर प्रसार होगा, इससे वैश्विक पटल पर भारतीय संस्कृति से लोग परिचित होकर लाभान्वित होंगे। ऑनलाइन माध्यम से जुड़कर लोगों के अनेकों प्रश्न विचारों का प्रमाण सहित तत्काल निराकरण होगा। जयवीर सिंह ने कहा कि जब संस्कृत मजबूत होगी तभी हमारी संस्कृति और विरासत भी सुरक्षित होगी। इस संस्था का अब स्वर्णिम युग प्रारम्भ होने वाला है।

ऑनलाइन संस्कृत शिक्षण प्रशिक्षण पाठ्यक्रम

पाठ्यक्रम में दस विषयों में ऑनलाइन पाठ्यक्रम संचालित होंगे। क्रमश: 01- संस्कृत भाषा शिक्षण, 02-अर्चक 03-कर्मकाण्ड, 04-ज्योतिष, 05- वास्तु विज्ञान, 06-व्याकरण, 07-दर्शन, 08-वेदान्त, 09- योग, 10- वेद संचालित होगा। इस पाठ्यक्रम में तीन एवं छ माह का सर्टीफिकेट तथा एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित होगा।

दुर्लभ पाण्डुलिपियों को देखकर आह्लादित

पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने परिसर स्थित सरस्वती भवन पुस्तकालय में संरक्षित दुर्लभ पाण्डुलिपियों को देखा। आह्लादित होकर बोले अद्भुत और भारतीय संस्कृति की अनोमल धरोहर है। हमारे संतों एवं आचार्यों ने दशकों पूर्व से ही इस संस्कृति को संरक्षित करने के लिये अद्भुत तकनीक का प्रयोग किया है।

इन पाण्डुलिपियों को देखा

1- श्रीमद्भागवतम्ं(पुराण)-संवत्-1181 देश की प्राचीनतम कागज आधारित पाण्डुलिपि है।
2- भगवद्गीता (पुराण) – स्वर्णाक्षरों में लिपि है।

3- दुर्गासप्तशती – कपड़े के फीते पर दो इन्च चौड़ाई रील में अतिसूक्ष्म (संवत 1885) मैग्नीफाइड ग्लास से देखा जा सकता है।

4- रासपंचाध्यायी-(सचित्र)-पुराणोतिहास विषय से युक्त-देवनागरी लिपि(स्वर्णाक्षर युक्त)इसमें श्री कृष्ण जी के सूक्ष्म चित्रण निहित है।

5- कमवाचा (त्रिपिटक पर अंश),वर्मी लिपि- लाख पत्र पर स्वर्ण की पालिस।सहित अनेकों पाण्डुलिपियों को पर्यटन मंत्री ने देखा।

संस्कृति मंत्रालय के 20 लाख के अनुदान से हेरिटेज गैलरी

मंत्री ने कहा कि संस्कृति मंत्रालय से प्राप्त 20 लाख रुपये से हेरिटेज गैलरी व कल्चरल क्लब विकसित किया जाय। इससे नई पीढ़ी को अपने संस्था, क्षेत्र और व्यक्तित्व की जानकारी मिल सकेगी। इस दौरान पिंडरा विधायक डॉ अवधेश सिंह, विधायक सैयदराजा सुशील सिंह ने भी विचार रखा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. आनन्द कुमार त्यागी ने कहा कि संस्कृत शास्त्रों के संरक्षण का यह पवित्र स्थल चरित्र निर्माण और राष्ट्रीयता के जागृति करने का केन्द्र है। संस्कृत शास्त्रों की बदौलत ही हम नई शिक्षा निति को अनुकरणीय और अद्भुत बना पा रहे हैं। विवि के कुलसचिव राकेश कुमार ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।

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