योगी ने बदल दी राजनीति की परिभाषा, सियासत को सनातन की पिच पर किया खड़ा

लखनऊ, 21 मार्च (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश की राजनीति को नई दिशा और परिभाषा देने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने आठ वर्षों के कार्यकाल में शासन और धर्म के समन्वय का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसने राजनीति की पारंपरिक सोच को बदलकर सनातन संस्कृति के मूल्यों को जनकल्याण का आधार बना दिया।
गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर के रूप में संत परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी को भी उसी संन्यासी जीवनशैली और अनुशासन के साथ निभाया। उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश न केवल कानून-व्यवस्था और विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, बल्कि सनातन संस्कृति की धरोहर को सशक्त रूप से राष्ट्रीय फलक पर स्थापित कर रहा है। अयोध्या, काशी, मथुरा से लेकर सुहेलदेव और संभल तक, उनके प्रयासों ने धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण को गति दी है।
योगी आदित्यनाथ की राजनीति सत्ता प्राप्ति से अधिक लोक कल्याण और सांस्कृतिक उत्थान की प्रेरणा बन चुकी है, जिसने उत्तर प्रदेश को अपराधमुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त और आत्मनिर्भर राज्य बनाने की दिशा में ऐतिहासिक सफलता दिलाई है। योगी का गृह जनपद गोरखपुर है। यहीं पर उत्तर भारत के प्रमुख धार्मिक पीठों में शुमार गोरक्षपीठ है। इस पीठ को देश-दुनिया में फैले नाथपंथ का मुख्यालय माना जाता है। योगी मुख्यमंत्री होने के साथ इसी पीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। इस रूप में दीक्षित योगी (संन्यासी) भी हैं। खुद के योगी होने पर उनको गर्व भी है। समय-समय पर सदन से लेकर सार्वजनिक सभाओं में वह इस बात को कहते भी हैं।
तीन दशक से मंदिर की राजनीति कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय कहते हैं कि आठ साल पहले जब एक लंबे अंतराल के बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा को बहुमत मिला तो 19 मार्च 2017 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर, आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े और राजनीति के लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील सूबे के मुखिया का दायित्व संभाला। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने पीठ की लोककल्याण की परंपरा और संस्कार के फलक को अपने पद के अनुसार लगातार विस्तार दिया।
उन्होंने साबित किया कि जन केंद्रित राजनीति के केंद्र में भी धर्म हो सकता है। उनके दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के समय में जिस ‘हिंदू और हिंदुत्व’ को प्रतिगामी माना जाता था उसे योगी ने बहस के केंद्र में ला दिया। जो पहले भगवान श्रीराम की आलोचना करते थे, उनको काल्पनिक बताते थे ऐसे लोग भी खुद को हिंदू कहलाकर गौरवान्वित महसूस करते हैं। इस तरह उन्होंने धर्म और राजनीति को लोक कल्याण का जरिया बनाकर साबित किया कि संत, समाज का वैचारिक मार्गदर्शन करने के साथ सत्ता का कुशलता से नेतृत्व भी कर सकता है। उनके खाते में ढेर सारी उपलब्धियां दर्ज हैं। 2019 में एक प्रतिष्ठित पत्रिका के सर्वे में उनको देश का सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री माना गया।
एक इंटरव्यू में कभी उन्होंने कहा था कि वह कभी हारे नहीं हैं। गोरखपुर से संसदीय चुनावों में वह अजेय रहे हैं तो पहली बार 2022 में विधानसभा चुनाव लड़कर उन्होंने अपनी अपराजेय लोकप्रियता को पुनः प्रमाणित किया। जन, जल, जंगल और जमीन से प्यार करने वाले योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को पौढ़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) के पंचुर गांव में एक सामान्य परिवार में हुआ था। संयोग से उसी दिन विश्व पर्यावरण दिवस भी पड़ता है। उनके पिता स्वर्गीय आनंद सिंह विष्ट वन विभाग में रेंजर थे। बाल्यकाल से राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित योगी का जुड़ाव नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन से हो गया।
राम मंदिर आंदोलन के दौरान ही वह इस आंदोलन के नायक गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ के संपर्क में आए। महंत जी के सानिध्य और उनसे प्राप्त नाथपंथ के बारे में मिले ज्ञान ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि गढ़वाल विश्वविद्यालय से स्नातक विज्ञान तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय कर लिया। इसी क्रम में वह 1993 में गोरखनाथ मंदिर आ गए और नाथ पंथ की परंपरा के अनुरूप धर्म, अध्यात्म की तात्विक विवेचना और योग साधना में रम गए। उनकी साधना और अंतर्निहित प्रतिभा को देख महंत अवेद्यनाथ ने उन्हें 15 फरवरी 1994 को गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के रूप में दीक्षा प्रदान किया। गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने पीठ की लोक कल्याण और सामाजिक समरसता के ध्येय को सदैव विस्तारित किया।
जानकारों के अनुसार महज 22 साल की उम्र में योगी जी नाथपंथ में दीक्षित होकर संन्यासी (योगी) बने। इस रूप में वह गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के उत्तराधिकारी बने। अवेद्यनाथ संत समाज एवं समाज में एक सर्व स्वीकार्य नाम था। इसलिए उनको राष्ट्र संत भी कहा जाता है। एक योग्य गुरु को एक योग्य शिष्य से अधिक क्या चाहिए। अपने गुरु के ब्रह्मलीन होने के बाद अपने पहले साक्षात्कार में योगी ने कहा भी था, ‘गुरुदेव के सम्मोहन ने संन्यासी बना दिया।’
दोनों का एक दूसरे पर अटूट भरोसा था। यही वजह रही कि पीठ के उत्तराधिकारी के रूप में धार्मिक विरासत सौंपने के कुछ साल बाद ही ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने अपने प्रिय शिष्य (योगी) को अपनी राजनीतिक विरासत भी सौंप दी। महंत अवेद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के उपरांत वह 14 सितंबर 2014 को गोरक्षपीठाधीश्वर (महंत) के रूप में पदासीन हुए। इसी भूमिका के तदंतर वह इसी तिथि से अखिल भारतीय बारह भेष पंथ योगी सभा के अध्यक्ष भी हैं।
गिरीश पांडेय आगे कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ को राजनीतिक दायित्व भी गोरक्षपीठ से विरासत में मिला है। उनके दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ गोरखपुर संसदीय क्षेत्र का एक बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से चार बार सांसद और मानीराम विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक रहे हैं। 1996 में गोरखपुर लोकसभा से चुनाव जीतने के बाद ही महंत अवेद्यनाथ ने घोषणा कर दी थी कि उनकी राजनीति का उत्तराधिकार भी योगी ही संभालेंगे। इसके बाद योगी 1998 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर से चुनाव मैदान में उतरे और जीत हासिल कर बारहवीं लोकसभा में उस वक्त सबसे कम उम्र (26 वर्ष) के सांसद बने। तब से 2014 तक लगातार पांच बार संसदीय चुनाव में जीत हासिल करने वाले विरले सांसदों में रहे।
2017 में उत्तर प्रदेश में जब भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला तो पार्टी नेतृत्व ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया। 19 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले योगी ने तमाम उपलब्धियों के बीच न केवल शानदार कार्यकाल पूरा किया बल्कि सार्वजनिक जीवन में बेदाग छवि को भी बरकरार रखा है। इन आठ वर्षों के दौरान उनकी खुद की जीवनचर्या संन्यासी की ही भांति रही। सादगीपूर्ण व अनुशासित जीवनशैली में तनिक भी परिवर्तन नहीं आया है। संभवत वह प्रदेश के अब तक के इकलौते मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने प्रदेश के हर जिले का कई बार दौरा करने के साथ नोएडा जाने के मिथक को भी तोड़ा है।
पहले मुख्यमंत्री इस मिथक के भय से नोएडा नहीं जाते थे कि वहां जाने से सीएम की कुर्सी चली जाती है। योगी ने आधा दर्जन से अधिक बार नोएडा की यात्रा कर यह साबित किया है कि एक संत का ध्येय सिर्फ सत्ता बचाए रखना नहीं बल्कि लोक कल्याण होता है। मुख्यमंत्री बनने के बाद वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य बने और 2022 के विधानसभा चुनाव में एक लाख से अधिक वोटों से जीतकर और अपनी पार्टी भाजपा को सूबे में प्रचंड बहुमत दिलाकर दोबारा मुख्यमंत्री बने।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अवनीश त्यागी कहते हैं कि पहले कार्यकाल में योगी का फोकस प्रदेश के बाबत देश-दुनिया में जो खराब नजरिया था, उसको बदलने का था। इसमें कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस जैसी नीतियां कारगर रहीं। दूसरे कार्यकाल में फोकस प्रदेश की पहचान बदलने पर रहा। अब जब उनके दूसरे कार्यकाल का तीसरा साल पूरा होने जा रहा है, यूपी नए भारत का नया उत्तर प्रदेश के रूप में सबके सामने है। आज उत्तर प्रदेश की पहचान एक अपराधग्रस्त या दंगाग्रस्त प्रदेश के रूप में नहीं है। आज देश के अंदर उत्तर प्रदेश बेहतर कानून व्यवस्था के रूप में जाना जाता है और अलग-अलग राज्यों में उत्तर प्रदेश के मॉडल को उतारने और उसको जानने की उत्सुकता भी रहती है।
नोएडा में फिल्म सिटी, डेटा पार्क, अयोध्या और जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट, हेल्थपार्क, लेदर पार्क, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे, गंगा एक्सप्रेसवे, मेट्रो रेल का विस्तार, रैपिड रेल विस्तार, ओडीओपी और एमएसएमई के जरिये निर्यात को दोगुना करने, ब्रांड उप्र को देश और दुनिया में स्थापित करने जैसे बहुआयामी कार्यक्रमों से उत्तर प्रदेश के विकास को और रफ्तार देने की तैयारी है।
प्रयागराज के महाकुंभ के रूप में दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम के सफल आयोजन ने उनकी लोकप्रियता में एक और चार चांद लगा दिया। वर्ष 1997, 2003, 2006 में गोरखपुर में और 2008 में तुलसीपुर (बलरामपुर) में विश्व हिन्दू महासंघ के अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन। सहभोज के माध्यम से छुआछूत और अस्पृश्यता की भेदभावकारी रूढ़ियों पर प्रहार। सीएम योगी ‘यौगिक षटकर्म’, ‘हठयोग: स्वरूप एवं साधना’, ‘राजयोग: स्वरूप एवं साधना’ तथा ‘हिन्दू राष्ट्र नेपाल’ नामक पुस्तकों का लेखन करने वाले योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर से प्रकाशित मासिक योग पत्रिका ‘योगवाणी’ के प्रधान संपादक भी हैं।
–आईएएनएस
विकेटी/एएस