यूएनएससी के 'बिखरने' के साथ, भारत की राय में 'ना करने वालों' को सुधार को अवरुद्ध करने से रोकना जरूरी

यूएनएससी के 'बिखरने' के साथ, भारत की राय में 'ना करने वालों' को सुधार को अवरुद्ध करने से रोकना जरूरी

संयुक्त राष्ट्र, 15 नवंबर (आईएएनएस)। सुरक्षा परिषद के 21वीं सदी की भूराजनीतिक वास्तविकताओं के बोझ तले बिखर जाने के बीच भारत ने कहा है कि इनकार (वीटो) करने वालों को इसके सुधार में बाधा डालने से रोका जाना चाहिए।

संयुक्‍त राष्‍ट्र में भारतीय मिशन के परामर्शदाता प्रतीक माथुर ने मंगलवार को महासभा में नई ऊर्जा भरने पर एक बैठक में कहा कि 14 साल पहले शुरू की गई परिषद में सुधार की बातचीत के ठोस परिणाम के लिए एक निश्चित समय सीमा तय की जानी चाहिए।

उन्होंने काउंसिल सुधार के लिए असेंबली द्वारा स्थापित मशीनरी का जिक्र करते हुए कहा, “ना करने वालों को अंतर-सरकारी वार्ता (आईजीएन) प्रक्रिया को हमेशा के लिए बंधक बनाए रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”

उन्होंने कहा कि सुधार वार्ता को टेक्‍स्‍ट-आधारित प्रक्रिया अपनानी चाहिए और प्रक्रियात्मक रणनीति द्वारा अवरुद्ध नहीं किया जाना चाहिए।

आईजीएन रुका हुआ है क्योंकि इसे एक टेक्‍स्ट को अपनाने से रोका गया है जो एक ठोस एजेंडा निर्धारित करके प्रगति के लिए चर्चा का आधार बनेगा।

यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस के नाम से जाने जाने वाले देशों के 12-सदस्यीय समूह, जिसका नेतृत्व इटली कर रहा है और पाकिस्तान एक प्रमुख सदस्य है, ने बातचीत के टेक्‍स्‍ट को अपनाने से रोकने के लिए प्रक्रियात्मक रणनीति का इस्तेमाल किया है। वे परिषद की स्थायी सदस्यता के विस्तार का विरोध करते हैं जबकि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्यों में से ज्‍यादातर वस्तिार के पक्ष में हैं।

माथुर ने कहा कि “व्यापक मान्यता है कि सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना समय के अनुकूल नहीं है, और वास्तव में अप्रभावी है”। अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका को स्थायी सदस्यता से बाहर रखने के संदर्भ में उन्होंने कहा कि यह “बेहद अनुचित” है क्योंकि यह “संपूर्ण महाद्वीपों और क्षेत्रों को उस मंच पर अपनी बात कहने से रोकता है जो उनके भविष्य पर विचार-विमर्श करता है”।

उन्होंने कहा, “हमें एक सर्वव्यापी व्यापक सुधार प्रक्रिया की आवश्यकता है, जिसमें सुरक्षा परिषद में स्थायी और गैर-स्थायी दोनों श्रेणियों की सीटों का विस्तार शामिल है।”

परिषद की बुनियादी संरचना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के परिदृश्य की है और वहीं अटकी हुई है जब पांच विजेताओं ने स्थायी सदस्यता और वीटो शक्तियां ग्रहण कीं। उस समय संयुक्त राष्ट्र के सदस्‍यों की संख्‍या महज 51 थी और दुनिया के अधिकतर देश दो स्‍थायी सदस्‍यों के नेतृत्‍व वाले गुटों में बंटे थे।

उन्होंने कहा, परिषद के वीटो और महासभा तथा परिषद के बीच संबंधों पर भी “मौजूदा वैश्विक परिदृश्य की पृष्ठभूमि” में विचार किया जाना चाहिए।

परिषद दो प्रमुख समकालीन संघर्षों – यूक्रेन और गाजा – में अप्रभावी रहा है। स्थायी सदस्यों की वीटो शक्तियों के कारण वह अब तक संघर्ष विराम की मांग भी नहीं कर सका है।

माथुर ने कहा कि परिषद “टूट रहा है” और इसने “कुछ हद तक रुख महासभा की ओर मोड़ दिया है, जिससे हमारे ऊपर ज्‍यादा फोकस और आकर्षण आ गया है, एक ऐसा प्‍लेटफॉर्म जहां सुरक्षा परिषद के विपरीत पिछड़े और विकासशील देशों की आवाज एक जबरदस्त ताकत है।”

भले ही महासभा के पास कोई प्रवर्तन शक्तियाँ नहीं हैं, फिर भी इसने परिषद के स्थायी सदस्यों को वीटो शक्तियों के प्रयोग के लिए नैतिक रूप से जवाबदेह बनाने के लिए कदम उठाये हैं।

जब भी कोई स्थायी सदस्य परिषद में प्रस्तावों पर वीटो करता है, तो उसे अब महासभा के सामने पेश होना पड़ता है और अपनी कार्रवाई की व्याख्या करनी होती है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र के अन्य सदस्यों की आलोचना का भी सामना करना पड़ता है।

महासभा ने वीटो किए गए परिषद के प्रस्तावों की भावनाओं को दोहराते हुए बड़े बहुमत से प्रस्ताव भी पारित किए हैं।

–आईएएनएस

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