अगर आप अमेरिका या यूरोप जा रहे हैं तो आपकी यात्रा कुछ लंबी हो सकती है। हालांकि एयरलाइंस ने हवाई किराए में वृद्धि नहीं की है क्योंकि किराया पहले से ही काफी अधिक है। आइये जानते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है और क्या हालात बेहतर होने की उम्मीद है?
बदल गया है रूट ईरान इजरायल संघर्ष के बाद मध्य अप्रैल से ज्यादातर गैर अमेरिकी एयरलाइंस ईरान का एयरस्पेस इस्तेमाल करने से बच रही हैं। अमेरिका की एयरलाइंस भी लंबे समय से ईरान के हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। पहले से चल रही बाधाएं अगस्त 2021 के बाद से अफगानिस्तान नो फ्लाइंग जोन है।
पश्चिमी देशों और भारत के बीच उड़ानों का समय करीब एक घंटे बढ़ा
यूक्रेन में लड़ाई शुरू होने के बाद से ही पश्चिमी देशों की एयरलाइंस रूस का एयरस्पेस इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। कुछ एयरलाइंस के पायलट भी कभी-कभी इराक के एयरस्पेस से बचते हैं। यात्रा में लग रहा ज्यादा समय ईरान के एयरस्पेस से बचने की वजह से पश्चिमी देशों और भारत के बीच उड़ानों का समय करीब एक घंटे बढ़ गया है।
दिल्ली-न्यूयार्क नॉनस्टॉप फ्लाइट 14-15 घंटे का समय लेती है
पश्चिमी देशों की एयरलाइंस के लिए यात्रा का समय और बढ़ गया है क्योंकि वे रूस के एयरस्पेस का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। ऐसे में रूस के एयरस्पेस से होकर जाने वाली एयर इंडिया की दिल्ली-न्यूयार्क नॉनस्टॉप फ्लाइट 14-15 घंटे का समय लेती है। वहीं अमेरिका की एयरलाइंस यूनाईटेड की दिल्ली- न्यूयार्क फ्लाइट 16-18 घंटे का समय लेती है क्योंकि ये रूस के एयरस्पेस से होकर नहीं जाती है।
मान को 10000 फीट तक नीचे लाने में लंबा समय लगता है
अमेरिकी एयरलाइंस ने भारत के लिए कुछ रूट निलंबित कर दिए हैं और नए रूट शुरू करने का प्लान टाल दिया है। अन्य चिताएं एयर इंडिया के पुराने बोइंग- 777 में एक एक्स्ट्रा आक्सीजन टैंक है। इससे बोइंग अफगानिस्तान और ईरान के एयरस्पेस से बचते हुए पश्चिमी देश जाने के लिए हिंदुकुश रूट का इस्तेमाल करता रहा है। ऊंचे पवर्तीय रेंज का मतलब है कि आपातस्थिति जैसे केबिन प्रेशर फेल होने पर विमान को 10,000 फीट तक नीचे लाने में लंबा समय लगता है।
यात्रियों को अधिक ऑक्सीजन की जरूरत
केबिन प्रेशर फेल होने पर यात्रियों को अधिक आक्सीजन की जरूरत होती है। एयर इंडिया के दूसरे विमान एक्स्ट्रा आक्सीजन टैंक से लैस नहीं हैं। ऐसे में वे हिंदुकुश रूट का इस्तेमाल नहीं कर सकते और वे पश्चिमी देशों में जाने के लिए अरब सागर के ऊपर से सऊदी अरब और तुर्की होते हुए यूरोप जा रहे हैं। यह रूट लंबा है।
मिल सकती है कुछ राहत
कुछ गैर अमेरिकी एयरलाइंस इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या ईरान के एयरस्पेस का इस्तेमाल फिर से शुरू करना चाहिए। स्विटजरलैंड की एयरलाइंस ने 1 मई से ऐसा करना शुरू कर दिया है। कुछ दूसरी एयरलाइंस भी ईरान के एयरस्पेस का इस्तेमाल शुरू कर सकती हैं। हालांकि अगर पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष का दायरा बढ़ता है तो ये दिक्कतें लंबे समय तक बनीं रह सकती हैं।