बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके दिन की शुरुआत सिगरेट से होती है और दिन खत्म होने तक वह कई पैकेट सिगरेट खत्म कर देते हैं। भले ही धुम्रपान न करने को लेकर जागरुकता अभियान चलाए जाते हैं। लेकिन, उनका सिगरेट पीने वालों पर कोई असर नहीं पड़ता है। यहां तक नॉर्मल सिगरेट की बात हो रही थी। अब इन दिनों मार्केट में नॉर्मल सिगरेट के विकल्प के रूप में ई-सिगरेट (E-Cigarette) भी खूब चर्चा में है।
अब सवाल है कि ई-सिगरेट होती क्या है और क्या वाकई यह नॉर्मल सिगरेट की तुलना में सेफ होती है। तीसरा सवाल है कि इसके काम करने का तरीका क्या है, क्यों लोग इसे नॉर्मल सिगरेट की तुलना में अच्छा मानकर जमकर इस्तेमाल करने पर जोर दे रहे हैं। यहां इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करने वाले हैं।
ई-सिगरेट क्या है?
सबसे पहले यही जान लेते हैं कि आखिर ई-सिगरेट (E-Cigarette) होती क्या है। ई-सिगरेट को आप एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की तरह समझ सकते हैं। इसे तकनीकी रूप से ENDS (इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलीवरी सिस्टम) डिवाइस कहा जाता है। इन डिवाइस को चलाने के लिए एक बैटरी की जरूरत होती है। इन डिवाइस का काम बॉडी के अंदर निकोटिन पहुंचाने का होता है।
इसमें आम सिगरेट की तरह तंबाकू की बजाय एक कार्टेज में लिक्विड निकोटिन फिल किया जाता है। ENDS डिवाइसों में प्रमुख तौर पर ई-सिगरेट को जाना जाता है। कहने को तो ENDS डिवाइस में कई और चीजें भी आती हैं। ई-सिगरेट को पीने के लिए जलाने की जरूरत नहीं होती। इससे कश लेने पर दूसरी साइड में लगा एलईडी बल्ब जलने लगता है। नॉर्मल सिगरेट में आप धूएं को अंदर खींचते हैं। लेकिन इसमें जो कार्टेज में लिक्विड भरी गई थी, वह कश लगाने पर भाप में बदलता है और हम असल में धूएं की जगह भाप को ही अंदर खींच रहे होते हैं।
जैसा कि पहले बताया इसे चलाने के लिए इसमें रिचार्जेबल लिथियम बैटरी लगी होती है। इसके अलावा निकोटिन कार्टेज और इसके बाद होता है एवोपोरेट चैंबर, जिसमें छोटा हीटर भाप बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इन्हीं तकनीकों के कारण निकोटिन भाप में बदलता रहता है और उसे ही हम अंदर खींच रहे होते हैं।
देखने में ई-सिगरेट कई बार सिगार, पाइप, पेन या यूएसबी ड्राइव जैसी दिख सकती है। इसमें निकोटिन की मात्रा अधिक मानी जाती है। इसकी खास बात होती है कि कार्टेज खाली होने पर उसे दोबारा से भरा जा सकता है।
काम करने का प्रोसेस है जटिल…
ई-सिगरेट काम कैसे करती है। इसके लिए कुछ पॉइंट्स को समझना होगा।
माउथपीस: यह एक ट्यूब के अंत में लगा हुआ एक काट्रेज होता है। अंदर एक छोटा प्लास्टिक कप होता है जिसमें लिक्विड सॉल्यूशन में भिगोया हुआ शोषक पदार्थ होता है। यानी ऐसा पदार्थ होता है जो किसी तरह चीज को सोख सकता हो।
एटमाइजर: यह लिक्विड को गर्म करता है, निकोटिन भाप में बदलता है ताकि व्यक्ति इसे अंदर ले सके।
बैटरी: यह हीटिंग एलिमेंट को पावर देता है।
सेंसर: यह हीटर को सक्रिय करता है जब यूजर डिवाइस को चूसता है।
सॉल्यूशन: ई-लिक्विड या ई-जूस में निकोटीन, एक बेस, जो आमतौर पर प्रोपलीन ग्लाइकॉल होता है, और फ्लेवरिंग का मिश्रण होता है।
आसान भाषा में समझें तो जब व्यक्ति माउथपीस को चूसता है, तो हीटिंग एलिमेंट सॉल्यूशन को वाष्पीकृत यानी भाप में बदल देता है, जिसे व्यक्ति फिर वेप करता है या अंदर लेता है। लिक्विड में निकोटीन की मात्रा बहुत अधिक से लेकर शून्य तक हो सकती है। इसमें अनेकों फ्लेवर हो सकते हैं, जैसे पारंपरिक और मेन्थॉल से लेकर तरबूज और लावा फ्लो तक। कुछ ई-सिगरेट का स्वाद आम सिगरेट जैसा हो सकता है।
क्या वाकई सेफ है ई-सिगरेट?
अगर आपको लगता है कि ई-सिगरेट आम सिगरेट की तुलना में सेफ हैं तो आप गलत है। क्योंकि एक्सपर्ट्स के अनुसार भले ही व्यक्ति ई-सिगरेट के जरिये धूएं को अंदर नहीं लेता है। लेकिन निकोटिन के जरिये बनी भाप भी उसे नुकसान पहुंचाती है। इसलिए ई-सिगरेट को सेफ समझने की गलतफहमी दूर कर देनी चाहिए। कुछ लोग ई-सिगरेट को सेफ भी मानते हैं।
उनका मानना है कि यह आम सिगरेट की तुलना में कम नुकसानदायक होती हैं। जो लोग नियमित तौर पर सिगरेट पीते हैं उनके लिए तो ई-सिगरेट जाहिर तौर पर कम नुकसानदायक है। लेकिन जो बिलकुल भी धुम्रपान नहीं करते हैं और वह ई सिगरेट को सेफ समझकर पीते हैं तो वह गलत हैं। क्योंकि इससे भी कई तरह के नुकसान होते हैं।
यहां सिर्फ जानकारी के मकसद से बताया गया है, ई-सिगरेट के बारे में ज्यादा जानने के लिए एक्सपर्ट से सलाह लें।