हमें धर्म की रक्षा के लिए लड़ना है: मोहन भागवत

लखनऊ, 23 नवंबर (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघ चालक डॉक्टर मोहन भागवत ने कहा कि धर्म ऐसा हो जिसे धारण किया जा सके। हमें धर्म रक्षा के लिए लड़ना है।
मोहन भागवत रविवार को लखनऊ में दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव के कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अर्जुन के गंभीर प्रश्नों का उत्तर ही गीता है। हमें गीता पढ़नी चाहिए, समझनी चाहिए और मनन करना चाहिए। इससे हमें सदा सर्वदा उपाय मिलते हैं। गीता हमें समस्या से भागने के बजाय, उससे लड़ना सिखाती है।
उन्होंने कहा कि धर्म के आधार पर हमें सफलता अवश्य मिलती है। उत्तम विचार चाहिए तो उत्तम अधिष्ठान होना आवश्यक है। यदि अपना पुरुषार्थ मजबूत है, तो भाग्य भी साथ है।
डॉ. भागवत ने कहा कि कोई भी छोटा कार्य जो निष्काम से किया गया हो, वह धर्म है। आपने भक्तिपूर्वक कर्म करने का आह्वान किया। विश्व में शांति की स्थापना को गीता के माध्यम से ही किया जा सकता है। दुविधाओं से बाहर निकलकर राष्ट्र की सेवा करना ही हमारा परम कर्तव्य है जिसे गीता के माध्यम से जीवन में शामिल करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमें 700 श्लोकों के माध्यम से प्रतिदिन वाचन करना चाहिए। उनके माध्यम से जीवन में सीख लेंगे तो कल्याण हो जाएगा। आज दुनिया को असमंजस की स्थिति में गीता के माध्यम से सही दिशा दी जा सकती है। यदि जीवन में शांति, संतोष नहीं होगा तो समस्या होगी। भारत की परम्परा में धर्म के साथ शांति और सौहार्द की व्यवस्था है। भारत में सत्य के निकट बैठकर ज्ञान प्राप्त करने का निचोड़ भगवत गीता में है।
गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद ने सभी जन मानस का स्वागत करते हुए गीता से जुड़ने का आह्वान किया। महाराज जी ने कहा कि धर्म रिलीजियस नहीं है, बल्कि धर्म का अर्थ है कर्तव्य विशेष। आज कर्तव्य से अधिक अधिकार की बात होती है। कर्त्तव्य से हम स्वयं को समर्पित करते हैं। आपने कहा कि दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव के माध्यम से समाज का जागरण किया जा रहा है।
–आईएएनएस
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