वसंत देसाई : बिना गीतों के फिल्मों की कहानी में डाली जान, बैकग्राउंड संगीत से बिखेरा पर्दे पर जादू

मुंबई, 21 दिसंबर (आईएएनएस)। हिंदी सिनेमा के इतिहास में कुछ संगीतकार ऐसे हुए हैं, जिनकी धुनें और संगीत आज भी लोगों के दिलों में हैं। ऐसे ही महान संगीतकारों में से एक हैं वसंत देसाई। उनकी रचनाएं सिर्फ गीतों तक सीमित नहीं थीं, बल्कि उन्होंने फिल्मों के बैकग्राउंड म्यूजिक में भी अपना अद्भुत योगदान दिया। उनकी संगीत यात्रा गानों की मधुरता के साथ-साथ फिल्मों में भाव जोड़ने के लिए याद की जाती है।
वसंत देसाई का जन्म 9 जून 1912 को हुआ था। उनका असली नाम आत्माराम देसाई था, लेकिन सभी उन्हें वसंत देसाई के नाम से जानते थे। संगीत से उनका जुड़ाव बचपन से ही था। उनके नाना भास्कर पारुलेकर प्रसिद्ध कीर्तनकार थे, जिनसे उन्होंने संगीत की बुनियाद सीखी। उनके घर के आसपास मंदिरों और दशावतारी नाटकों में संगीत और भजन-कीर्तन का माहौल था। यहीं से उन्हें संगीत के प्रति गहरी रुचि पैदा हुई।
किशोरावस्था में वह कोल्हापुर आए और ‘प्रभात फिल्म कंपनी’ से जुड़े। उन्होंने अभिनय भी किया और कुछ साइलेंट और टॉकी फिल्मों में काम किया, जैसे कि ‘खूनी खंजर’ और ‘अयोध्येचा राजा’। उन्होंने ‘अयोध्येचा राजा’ में पहला गाना ‘जय जय राजाधिराज’ गाया, जो उनकी संगीत यात्रा का एक अहम मोड़ साबित हुआ। बाद में उन्होंने मुख्य रूप से संगीत में अपना करियर बनाने का निर्णय लिया और उस्ताद आलम खान और उस्ताद इनायत खान से संगीत की गहरी शिक्षा ली।
वसंत देसाई का नाम हिंदी फिल्मों में सबसे अधिक वी. शांताराम की फिल्मों के कारण जाना जाता है। उन्होंने ‘झनक झनक पायल बाजे’, ‘दो आंखें बारह हाथ’, ‘आशीर्वाद’, और ‘गुड्डी’ जैसी फिल्मों के लिए अद्भुत संगीत दिया। उनके गाने हमेशा क्लासिकल रागों पर आधारित होते थे और उनमें भाव और मिठास का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता था। उन्होंने कभी भी संगीत की पवित्रता से समझौता नहीं किया और पश्चिमी शैली के गीतों या गजलों में कम ही काम किया।
वसंत देसाई का बैकग्राउंड म्यूजिक में खास योगदान रहा। यह एक ऐसा पहलू था, जो आम जनता की नजर में नहीं आता, लेकिन फिल्म के पूरे अनुभव को गहरा और असरदार बनाता है। उदाहरण के लिए, ‘यादें’ (1964) फिल्म में केवल एक ही अभिनेता थे और कहानी का अधिकतर हिस्सा उसके अकेलेपन पर आधारित था। ऐसे में वसंत देसाई का बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म की भावनाओं को पूरी तरह व्यक्त करता है और दर्शक को कहानी के अंदर खींच लेता है। इसी तरह, ‘अचानक’ (1974) फिल्म में कोई गीत नहीं था, लेकिन बैकग्राउंड म्यूजिक ने फिल्म की थ्रिल और सस्पेंस को जीवंत बनाए रखा। उन्होंने अपनी रचनाओं में प्राकृतिक ध्वनियों जैसे पानी की आवाज, पत्तों की सरसराहट और घंटियों की झंकार का भी सुंदर प्रयोग किया।
मराठी फिल्मों और संगीत नाटकों में भी वसंत देसाई ने अपनी कला का जादू दिखाया। ‘अमर भूपाली’, ‘छोटा जवान’, ‘प्रीति संगम’, और ‘राम्या ही स्वर्गहुनि स्वयंवर जले सितेचे’ जैसी मराठी फिल्मों और नाटकों के लिए उनके संगीत को आज भी याद किया जाता है। उनकी संगीत रचनाएं केवल गीतों तक सीमित नहीं थीं, बल्कि उन्होंने बच्चों के नाटकों में भी संगीत दिया।
वसंत देसाई ने अपने करियर में कई पुरस्कार भी जीते और उनके योगदान को सम्मानित किया गया। लेकिन, उनकी सबसे बड़ी पहचान उनके क्लासिकल और भावपूर्ण संगीत में ही रही। 22 दिसंबर 1975 को उनका निधन एक लिफ्ट दुर्घटना में हो गया, जो फिल्म और संगीत जगत के लिए एक बड़ा झटका था। उनकी धुनें और संगीत आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं।
–आईएएनएस
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