तुलसीदास : मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के भक्त कवि, भक्ति आंदोलन के युग-निर्माता


नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (आईएएनएस)। हिंदी साहित्य के आदि कवि और रामभक्ति के प्रखर प्रणेता गोस्वामी तुलसीदास वह महान संत-कवि हैं, जिन्होंने संस्कृत के जटिल ग्रंथों को अवधी और ब्रजभाषा की सरलता में ढालकर आम जनमानस तक भक्ति का प्रकाश पहुंचाया।

उनका जन्म उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के राजापुर गांव में हुआ था। पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी की संतान के रूप में जन्मे तुलसीदास का बचपन विपत्तियों से घिरा रहा। जन्म के समय ही ‘राम’ का उच्चारण करने वाले इस बालक को माता-पिता ने अशुभ मुहूर्त मानकर त्याग दिया था, जिसके बाद एक साधु नरहरिदास ने उनका पालन-पोषण किया।

तुलसीदास को बचपन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी विद्या और भक्ति के प्रति लगन ने उन्हें असाधारण बना दिया। तुलसीदास ने वेद-पुराणों का गहन अध्ययन किया और रामानंदी वैष्णव संप्रदाय से दीक्षा ली। उनकी प्रमुख रचना ‘रामचरितमानस’ वाल्मीकि रामायण का हिंदी रूपांतरण है, जो भक्ति, नैतिकता और सामाजिक मूल्यों का प्रेरणास्रोत बनी हुई है।

इस महाकाव्य के अलावा ‘हनुमान चालीसा’, ‘विनय पत्रिका’, ‘दोहावली’, ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, और ‘दोहावली’ जैसी रचनाओं ने उन्हें लोकप्रिय बनाया।

तुलसीदास ने संस्कृत और अवधी भाषा में महारत हासिल की। उनकी भक्ति भगवान राम के प्रति इतनी गहरी थी कि उन्होंने अपने जीवन को श्रीराम की भक्ति और उनके आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने में समर्पित कर दिया।

रामचरितमानस तुलसीदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसे उन्होंने अवधी में लिखा। यह महाकाव्य भगवान राम के जीवन, उनके आदर्शों और मर्यादाओं को सरल भाषा में प्रस्तुत करता है, जिससे यह आम जनता के लिए सुलभ हो सका। इस ग्रंथ ने न केवल धार्मिक चेतना को जागृत किया, बल्कि हिंदी साहित्य को भी समृद्ध किया।

तुलसीदास ने वाराणसी में संस्कृत, वेद और शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। उनके गुरु ने उन्हें राम भक्ति की ओर प्रेरित किया।

तुलसीदास ने अपने समय की सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों पर भी प्रहार किया। उनकी रचनाओं में नैतिकता, धर्म और मानवता के मूल्यों को बढ़ावा दिया गया। उन्होंने समाज को यह संदेश दिया कि सच्ची भक्ति में जाति, वर्ग या धन का कोई महत्व नहीं है। उनकी रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को नई दिशा दी और हिंदी साहित्य को लोकप्रिय बनाया।

तुलसीदास ने अपने जीवन का अधिकांश समय वाराणसी (काशी) में बिताया। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने गंगा तट पर अस्सी घाट के पास रामचरितमानस की रचना की। काशी में ही उनका निधन हुआ। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी रचनाएं अमर रहीं और आज भी काशी में तुलसी घाट और तुलसी मानस मंदिर उनके योगदान की गवाही देते हैं।

–आईएएनएस

एकेएस/एएस


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