ट्रंप टैरिफ एक शॉक थेरेपी, भारत को निर्भरता से मुक्त होने की जरूरत : अर्थशास्त्री

नई दिल्ली, 27 अगस्त (आईएएनएस)। अर्थशास्त्रियों ने जोर देकर कहा है कि अमेरिका के टैरिफ किसी इकोनॉमिक ब्लैकमेल से कम नहीं हैं। हालांकि, यही टैरिफ शॉक थेरेपी भी हो सकते हैं, जिसकी भारत को निर्भरता से मुक्ति पाने के लिए जरूरत है।
उन्होंने आगे कहा कि अगर उद्योग, नीति निर्माता और राजनयिक मिलकर काम करें तो आज का टैरिफ टेरर कल के बड़े बदलाव का कारण बन सकते हैं।
इन्फोमेरिक्स रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मनोरंजन शर्मा ने कहा, “आगे का काम कठिन है, लेकिन उद्देश्य की ईमानदारी और ठोस प्रयासों से हम इस चुनौती का सामना कर सकते हैं। जरूरत पूरी ताकत से आगे बढ़ने और पूरी ताकत से काम करने की है।”
फिलहाल, दुनिया एक हाई-स्टैक ड्रामा को देख रही है। क्या भारत झुकेगा, टूटेगा या फिर वापसी करेगा?
27 अगस्त से अमेरिकी तटों पर आने वाले हर भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ की दीवार होगी।
भारत द्वारा रूसी तेल और हथियारों की निरंतर खरीद को उच्च टैरिफ का कारण बताया गया है। जो कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था पर एक करारा प्रहार है साथ ही, अमेरिका की सबसे महत्वपूर्ण साझेदारियों में से एक के साथ एक लापरवाही भरा दांव है।
शर्मा ने कहा, “दशकों से, भारत और अमेरिका व्यापार, तकनीक, रक्षा और कूटनीति के एक जटिल ताने-बाने को एक साथ जोड़ने का काम करते रहे हैं। अब, एक ही झटके में, उस ताने-बाने के बिखर जाने का खतरा है।”
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है, जो हमारे लगभग 17 प्रतिशत सामान जैसे दवा, कपड़ा, आभूषण, ऑटो कंपोनेंट और इंजीनियरिंग उत्पाद का निर्यात करता है। 50 प्रतिशत का एकसमान टैरिफ इन निर्यातों को तुरंत प्रतिस्पर्धा से बाहर कर देगा।
कपड़ा और परिधान क्षेत्रों में जहां पैसे के बल पर कॉन्ट्रैक्ट तय होते हैं और लाखों लोगों की आजीविका दांव पर होती है, वहां मार्जिन गायब हो जाएगा।
शर्मा ने कहा, “अमेरिकी परिवारों के लिए जीवनरेखा भारतीय जेनेरिक दवाइयां आसान पहुंच वाले प्रतिद्वंद्वियों के हाथों बाजार हिस्सेदारी खो देंगी। विडंबना यह है कि अमेरिकी उपभोक्ताओं को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।”
रत्न और आभूषण, एक श्रम-प्रधान उद्योग जो भारत के निर्यात मुकुट में चमकता है, अचानक धूमिल हो सकता है।
इंजीनियरिंग और ऑटो कंपोनेंट सेक्टर में कारखानों में धीमी गति और श्रमिकों को उनके वेतन में कटौती का खतरा है।
48 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात सीधे तौर पर निशाने पर हैं। टैरिफ जीडीपी वृद्धि में 0.3-0.5 प्रतिशत अंकों की कमी भी ला सकते हैं।
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, अगर भारत इस निर्णायक क्षण का उपयोग ‘मेक इन इंडिया 2.0’ को गति देने, सप्लाई चेन को मजबूत करने और निर्यात बाजारों में विविधता लाने के लिए करता है, तो यह तकलीफ दीर्घकालिक लाभ के बीज बो सकती है।
उन्होंने कहा कि अगर हमें इस पैमाने के झटकों का सामना करना है तो भारत का मैन्युफैक्चरिंग बेस का विस्तार करना होगा।
–आईएएनएस
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