संस्कृत भाषा के माध्यम से बच्चों में संस्कारों का जागरण, महंत स्वामी महाराज की प्रेरणा से चल रहा एक अभिनव अभियान

नई दिल्ली, 29 जुलाई (आईएएनएस)। आज के मनोरंजन प्रधान और व्याकुलता से भरे युग में बच्चों में सांस्कृतिक मूल्य संजोना एक चुनौती भी है और आवश्यकता भी। बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था ने बच्चों के समग्र विकास में अमूल्य योगदान दिया है। परम पूज्य महंत स्वामी महाराज की दिव्य प्रेरणा से बीएपीएस नैतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक उन्नति को निरंतर पोषित करता है।
महंत स्वामी महाराज की प्रेरणा से बीएपीएस ने संस्कृत भाषा और सनातन मूल्यों के संरक्षण हेतु एक व्यापक संस्कृत शिक्षण अभियान आरंभ किया है। इस पहल को विश्व भर से उत्साहजनक प्रतिसाद मिला है।
अब तक 37,000 से अधिक बच्चों ने पंजीकरण कराया है और इस दीपावली तक 10,000 बच्चों को संस्कृत शिक्षण से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। केवल मुंबई में ही 1,000 बच्चों ने इस यात्रा की शुरुआत कर दी है, जिनमें से 400 ने कोर्स पूरा भी कर लिया है। शेष बच्चे भी आगामी दीपावली तक कोर्स पूर्ण कर लेंगे।
तीन से चौदह वर्ष की आयु के बच्चे संस्कृत श्लोकों को याद करने और उनका उच्चारण करने में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। यह संस्कृत श्लोक मुखपाठ अभियान महंत स्वामी महाराज द्वारा रचित पवित्र ग्रंथ ‘सत्संग दीक्षा’ के 315 श्लोकों के स्मरण पर केंद्रित है।
इस भौतिकवादी और तीव्रगामी युग में, हजारों बच्चों को संस्कृत जैसी प्राचीन और दिव्य भाषा से जुड़ते देखना अत्यंत प्रेरणादायक है। यह अभियान केवल भाषा के संरक्षण का नहीं, बल्कि अनुशासन, भक्ति, स्मरण शक्ति और आंतरिक शक्ति के विकास का प्रतीक है।
हेत मोरजा तीन वर्ष और पांच महीने का बालक है। वह अभी भाषा को न ठीक से बोल सकता है और न ही समझ सकता है। लेकिन, जब उसकी माता उसकी बहन को श्लोक सिखा रही थीं, तो हेत ने केवल सुन-सुनकर 315 श्लोक कंठस्थ कर लिए।
धर्म चौहान पांच वर्ष का बालक है। जन्म से ही उसकी दोनों किडनी के बीच गांठ होने के कारण दो से तीन सर्जरी हो चुकी हैं। इस कारण उसे शारीरिक समस्याएं और एकाग्रता की कमी रही है। फिर भी उसने 315 श्लोकों का पाठ पूरा किया है। इसके कारण उसकी एकाग्रता बढ़ी है और वह पढ़ाई में अधिक ध्यान देने लगा है।
शरद कामदार नामक बारह वर्षीय बालक को जन्म से ही मस्तिष्क, आंखों और चलने में कठिनाइयां रही हैं। इस कारण उसकी उम्र के अनुसार उसका विकास बहुत कम रहा है। लेकिन उसके माता-पिता में अनुपम श्रद्धा है। उन्होंने शरद को 700 श्लोक कंठस्थ करवाए हैं, जिससे उसके मस्तिष्क और व्यवहार में सुधार हुआ है।
बाल मनोरोग विशेषज्ञ पूज्य श्रेयस सेतु स्वामी ने कहा कि ये उपलब्धियां सैकड़ों संतों, स्वयंसेवकों और बीएपीएस द्वारा तैयार किए गए सुव्यवस्थित शिक्षण कार्यक्रमों के सामूहिक समर्पण का परिणाम हैं।
यह पहल केवल एक शैक्षणिक अभियान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक क्रांति है। संस्कृत को अपनाकर बच्चे न केवल भाषा की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि चरित्र, स्मरण शक्ति और एकाग्रता का भी निर्माण कर रहे हैं। यह दिव्य आंदोलन यूं ही पनपता रहे और समाज के अनगिनत बालमन को प्रेरित करता रहे।
–आईएएनएस
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