बिलकिस बानो केस में तीन दोषियों ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा…

बिलकिस बानो केस में तीन दोषियों ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा…

बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों में से तीन ने जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए समय बढ़ाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दोषियों के वकील द्वारा तत्काल सुनवाई के लिए उनकी याचिका का उल्लेख करने के बाद सुप्रीम कोर्ट याचिका को सूचीबद्ध करने पर सहमत हो गया है। कोर्ट ने दोषियों को दो हफ्ते में आत्मसमर्पण करने के लिए आदेश दिया था।

 बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों में से तीन ने जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए समय बढ़ाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दोषियों के वकील द्वारा तत्काल सुनवाई के लिए उनकी याचिका का उल्लेख करने के बाद सुप्रीम कोर्ट याचिका को सूचीबद्ध करने पर सहमत हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी को फैसला देते हुए बिलकिस बानो दुष्कर्म और उसके परिजनों की हत्या के मामले में समय से पहले बरी किए गए 11 दोषियों को दी गई रिहाई को रद्द करते हुए उन्हें दो हफ्ते में जेल में आत्मसमर्पण करने के लिए आदेश जारी किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था

इससे पूर्व 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और 14 लोगों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा भुगत रहे 11 दोषियों को समय से पहले रिहा करने के अगस्त 2022 में लिए गए गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था।

8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि ऐसा आदेश लेने के लिए राज्य सरकार बिल्कुल भी ‘सक्षम नहीं’ थी और फैसले को बिना दिमाग लगाए पारित कर दिए गए।

धोखाधड़ी और पावर का गलत इस्तेमाल किया गया

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने दोषियों को दो सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था। सजा में छूट को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए पीठ ने कहा था कि गुजरात सरकार छूट का आदेश पारित करने के लिए उपयुक्त सरकार नहीं है।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य, जहां किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वह दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम है। दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया। दरअसल, मुंबई में CBI की एक विशेष अदालत ने इस मामले में 2008 में 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस फैसले पर अपनी मुहर लगाई थी।

सरकार ने शक्ति का दुरुपयोग किया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कानून के शासन का उल्लंघन हुआ है क्योंकि गुजरात सरकार ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। पीठ ने 100 पन्नों से अधिक का फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य के छूट के आदेश रद्द किए जाने चाहिए। शीर्ष अदालत ने एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को भी ‘अमान्य’ करार दिया, जिसमें गुजरात सरकार से दोषियों की सजा माफी की याचिका पर विचार करने को कहा गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को अदालत के साथ धोखाधड़ी करार दिया और कहा कि इस अदालत के सामने फैक्ट छिपाए गए। 13 मई का आदेश सही नहीं था और इसे हम अमान्य मानते हैं।

गुजरात में वर्ष 2002 में दंगे के दौरान बिलकिस के साथ नृशंस सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। यहीं नहीं, बिलकिस के आंखों के सामने उसके परिवार के 7 लोगों की हत्या भी कर दी गई थी।

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