रिदमिक जिमनास्टिक: डांस मूव्स से विकसित हुआ खेल, जिसे ओलंपिक में अपनाया गया

नई दिल्ली, 13 दिसंबर (आईएएनएस)। रिबन, बॉल, हूप, रस्सी और क्लब जैसे सामान के इस्तेमाल के साथ बैले और क्रिएटिव मूवमेंट के आकर्षक मेल को आपने ओलंपिक गेम्स में जरूर देखा होगा, जिसे ‘रिदमिक जिमनास्टिक’ के नाम से जाना जाता है। मैट के इस खेल में डांस, बैले और जिमनास्टिक का मिश्रण होता है, जिसमें एथलीट की फ्लेक्सिबिलिटी, संतुलन, समन्वय और अभिव्यक्ति को अंक दिए जाते हैं।
इस खेल की जड़े यूरोप से जुड़ी हैं, जहां 19वीं सदी के अंत में इसे फिजिकल एजुकेशन और डांस के एक रूप में विकसित किया गया था।
स्वीडन के एक शिक्षक, हेनरिक ने इस खेल को व्यायाम की एक प्रणाली के रूप में विकसित किया था, जिसमें शरीर के मूवमेंट और संगीत के संयोजन पर फोकस किया गया। इसी ने रिदमिक जिमनास्ट की नींव रखी।
साल 1946 में इसे एक औपचारिक खेल का रूप दिया गया। रिदमिक जिमनास्टिक 1950 के दशक में एक अलग कॉम्पिटिटिव खेल के तौर पर उभरा। साल 1961 में अंतरराष्ट्रीय जिमनास्टिक महासंघ की ओर से इसे मान्यता मिली। इस खेल की पहली वर्ल्ड चैंपियनशिप का आयोजन साल 1964 में हुआ। हालांकि, यह 1984 तक ओलंपिक मेडल वाला खेल नहीं बना, जिसकी वजह से उस समय तक इसे अमेरिका में खास पहचान नहीं मिल सकी।
साल 1984 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक गेम्स का आयोजन लॉस एंजिल्स में हुआ, जहां पहली बार इस खेल का ओलंपिक डेब्यू भी हुआ। ग्रुप रिदमिक जिमनास्टिक की शुरुआत 1996 अटलांटा ओलंपिक के साथ हुई।
इस खेल में कई तरह के सामान का इस्तेमाल होता है। रस्सी में झूलना, फेंकना और बैलेंस बनाने वाले एक्ट शामिल होते हैं। बॉल में रोलिंग, झूलना और बैलेंस बनाना शामिल है, जबकि हूप में रोलिंग, झूलना और कूदने वाले रूटीन शामिल हैं।
वहीं, क्लब में झूलने, पकड़ने और घुमाने वाले एक्शन शामिल होते हैं। रिबन का इस्तेमाल स्नेक, स्पाइरल और फिगर 8 जैसे पैटर्न बनाने के लिए किया जाता है।
रिदमिक जिमनास्टिक्स में जज खिलाड़ी के प्रदर्शन को आंकते हैं। इस दौरान कठिनाई और एग्जीक्यूशन को आंकते हुए एथलीट्स को स्कोर दिए जाते हैं। किसी भी कॉम्पिटिटिव खेल की तरह, रिदमिक जिमनास्टिक के भी कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करना अनिवार्य होता है। नियमों का पालन न करने पर नंबर काटे जाते हैं।
रिदमिक जिमनास्टिक में भारत को मेडल जीतने के लिए दीर्घकालिक नजरिया रखना होगा। युवा प्रतिभाओं की पहचान, अंतरराष्ट्रीय स्तर के कोच और जजिंग मानकों की समझ जरूरी है। विदेशी प्रतियोगिताओं में नियमित भागीदारी से हमारे देश के खिलाड़ियों का अनुभव बढ़ेगा।
–आईएएनएस
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