दोहा, 8 दिसंबर (आईएएनएस)। रोसनेफ्ट के सीईओ इगोर सेचिन ने कतर की राजधानी दोहा में 7-8 दिसंबर को आयोजित XXII दोहा फोरम में “संघर्षों के आर्थिक पहलू” विषय पर भाषण दिया। उनका यह भाषण फोरम के सबसे बड़े मंच अल दफना हॉल में हुआ, जिसमें लगभग 1400 लोग बैठ सकते हैं। उनकी प्रस्तुति के दौरान हॉल पूरी तरह भरा हुआ था।
दोहा फोरम 2003 से आयोजित हो रहा है। यह अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, ऊर्जा परिवर्तन और स्थायी आर्थिक विकास जैसे विषयों पर चर्चा के लिए जाना जाता है। इस वर्ष फोरम के उद्घाटन समारोह में कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी और प्रधानमंत्री व विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया।
फोरम में विश्व के प्रमुख नेता, मंत्री, बड़े संगठनों के प्रमुख, विशेषज्ञ और प्रसिद्ध हस्तियां स्पीकर के तौर पर आते हैं।
इगोर सेचिन ने अपने भाषण में बताया कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। खासकर विकासशील देशों और डेटा सेंटरों की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए।
उन्होंने कहा, “वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में जीवाश्म ईंधन की भूमिका अब रणनीतिक होती जा रही है।”
उन्होंने ऊर्जा बाजार में अस्थिरता (वोलैटिलिटी) की समस्या पर भी चर्चा की। सेचिन के अनुसार, “राजनीतिक उद्देश्यों के लिए ऊर्जा का उपयोग करना इस अस्थिरता का मुख्य कारण है। ऊर्जा सुरक्षा, जो ऊर्जा क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य है, अब प्राथमिकता नहीं रही।”
सेचिन ने यह भी कहा कि अगर विकासशील देशों के जीवन स्तर को विकसित देशों के आधे स्तर तक भी लाना है, तो तेल उत्पादन लगभग दोगुना करना होगा। इसके साथ ही भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका जैसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों की ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध कराने होंगे।
अंतरराष्ट्रीय बैंकों के अनुमानों के अनुसार, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा नहीं कर सकते। इसलिए, सेचिन ने दोहराया, “जीवाश्म ईंधन वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।”
इगोर सेचिन ने कहा कि अमेरिका और उसके सहयोगियों के प्रभुत्व पर आधारित वैश्विक व्यवस्था में बड़े बदलाव हो रहे हैं। दोहा फोरम में बोलते हुए उन्होंने बताया कि राजनीतिक फैसलों के पीछे आर्थिक कारण सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उन्होंने इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि पहले युद्धों के पीछे के आर्थिक कारणों को छिपाने की कोशिश नहीं की जाती थी। व्यापारिक रास्तों पर कब्जा, युद्ध में लूट, सोना, मसाले और गुलामों के लिए अभियान – ये सब खुले तौर पर किए जाते थे। औपनिवेशिक युद्ध भी लंबे समय तक साफ तौर पर लूट का जरिया रहे। युद्ध के असली आर्थिक और राजनीतिक मकसद अब भी जारी है, बल्कि यह समय के साथ और परिपूर्ण हो गए हैं।
उन्होंने बताया कि प्रथम विश्व युद्ध उपनिवेशों के पुनः बंटवारे के लिए शुरू हुआ था, और द्वितीय विश्व युद्ध की वजहों में जर्मनी की लूटपाट भी शामिल थी। इसका सबसे बड़ा फायदा अमेरिका को हुआ, जिसने युद्धग्रस्त यूरोप की तुलना में अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया।
सेचिन ने यह भी कहा कि प्रतिबंध वैश्विक बाजार, कानूनी प्रणाली और अनुबंधों की संस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। 1971 में अमेरिका ने डॉलर को सोने से जोड़ने की व्यवस्था खत्म कर दी, जिससे यह बिना किसी सीमा के छपने वाला मुद्रा साधन बन गया। सोवियत संघ के पतन और एकध्रुवीय व्यवस्था के उदय ने लोकतंत्र की बुनियादों को कमजोर कर दिया।
उन्होंने बताया कि पिछले 20 वर्षों में अमेरिका ने 15,000 से अधिक प्रतिबंध लगाए हैं, जबकि उसके यूरोपीय सहयोगियों ने 5,000 से ज्यादा लगाए हैं। इन प्रतिबंधों का सबसे ज्यादा असर ऊर्जा क्षेत्र पर पड़ा है। दुर्भाग्य से, ऊर्जा क्षेत्र, इसकी मांग और महत्व के कारण, विशेष ध्यान और दबाव का एक साधन बन गया है। प्रतिबंधों, प्रतिस्पर्धा के विनाश, दीर्घकालिक अनुबंधों और आपूर्ति श्रृंखलाओं के विनाश के परिणामस्वरूप वैश्विक ऊर्जा बाजार को आज बाजार में कीमतों में अस्थिरता, ऊर्जा की कमी, और ‘हरित ऊर्जा’ के झूठे लक्ष्यों का दबाव झेलना पड़ रहा है।
रोसनेफ्ट के सीईओ इगोर सेचिन ने कहा है कि प्रतिबंधों की वजह से यूरोप की अर्थव्यवस्था सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है और उसने अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता की नींव खो दी है।
उन्होंने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में यूरोप में हुई घटनाएं स्पष्ट संकेत देती हैं। केवल पिछले दो वर्षों में ही औद्योगिक उत्पादन में 5% की गिरावट आई है।”
सेचिन ने यह भी बताया कि पश्चिम द्वारा एकतरफा और गैरकानूनी तरीके से लगाए गए प्रतिबंधों ने दुनिया के लगभग 40% हाइड्रोकार्बन संसाधनों को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि इन प्रतिबंधों का निशाना सिर्फ ईरान, वेनेजुएला और रूस नहीं हैं, बल्कि यूरोप और एशिया-प्रशांत क्षेत्र भी हैं। यूरोप को सस्ते और स्थिर ऊर्जा आपूर्ति का नुकसान हुआ है, जबकि एशिया-प्रशांत क्षेत्र अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में कठिनाई झेल रहा है।
सेचिन ने यह भी कहा, “बुद्धिमान राजनेताओं के लिए यह कोई छिपी बात नहीं है कि ब्रेक्जिट अमेरिका द्वारा यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने की योजनाओं के साथ मेल खाता था।”
डॉलर का इस्तेमाल प्रतिबंधों के हथियार के रूप में करने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में उसकी भूमिका सीमित हुई है, और इसकी जगह अन्य मुद्राएं, खासतौर पर आरएमबी (चीनी मुद्रा), ले रही हैं।
सेचिन ने कहा कि राष्ट्रीय मुद्रा प्रणाली की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सोने का उपयोग सबसे भरोसेमंद तरीका है। विश्व स्वर्ण परिषद के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा 8% बढ़कर 20% तक पहुंच गया है।
उन्होंने यह भी जोर दिया कि अगर डॉलर को दोबारा वैश्विक मुद्रा बनाना है, तो इसे प्रतिबंध लगाने के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना बंद करना होगा।
सेचिन ने यह भी बताया कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में थीं। इनमें टैक्स कम करना, नौकरियों को वापस लाना, घरेलू बाजार की रक्षा करना और राष्ट्रीय उत्पादकों को समर्थन देना शामिल है।
उन्होंने कहा, “ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति हैं, न कि कनाडा, मेक्सिको या चीन के। इसलिए इन देशों को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।”
इसके अलावा, सेचिन ने कहा कि अमेरिकी बाजार में ईंधन की लागत को कम करने के लिए उत्पादन पर लगाए गए सभी प्रतिबंध हटाए जा सकते हैं, टैक्स घटाए जा सकते हैं, प्रशासनिक रुकावटें कम की जा सकती हैं और
इसके अलावा, अमेरिकी बाजार में ईंधन की लागत कम करने के लिए, उत्पादन पर सभी प्रतिबंध हटा दिए जाएंगे, करों में कटौती की जाएगी, प्रशासनिक बाधाओं को हटा दिया जाएगा और वास्तविक क्षेत्र में निवेश को भ्रामक वैकल्पिक ऊर्जा से दूर किया जाएगा।
–आईएएनएस
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