द अदर साइड ऑफ डिप्लोमेसी : भारतीय राजनयिकों के जीवनसाथियों का रंगीन लेकिन चुनौतीपूर्ण जीवन (पुस्तक समीक्षा)


नई दिल्ली, 6 मार्च (आईएएनएस)। यहां तक कि अपने बीच भी वे यह महसूस करते हैं कि वे सिर्फ गुलाब जामुन और किसी आधिकारिक मौके पर सैकड़ों की संख्या में समोसे बनाने के लिए ही जाने जाते हैं। लेकिन भारत के ‘अनौपचारिक राजनयिक’ अक्सर अपनी असली काबिलियत दिखाते हैं। जैसे 1965 के युद्ध के दौरान एक राजनयिक की गर्भवती पत्नी, जो अपने छोटे बेटे के साथ ढाका में नजरबंद थीं, पहले तो उसने गुप्त दस्तावेज जला दिए और फिर अपने पाकिस्तानी बंदीकर्ताओं को सख्ती से समझाकर कहा कि वह उनके उचित व्यवहार करें।

पश्चिमी देशों के कुछ राजनयिक अपने जीवनसाथियों को कभी-कभी मजाक में ‘डिप्लोमैटिक बैगेज’ कहते हैं, लेकिन भारतीय राजनयिकों की पत्नियां (और कभी-कभी पति) जिस देश में रहते हैं, वहां भारत की ताकत और संस्कृति को फैलाने में हमेशा आगे रहे हैं। असल में, यही जीवनसाथी आम लोगों से मिलते-जुलते हैं – चाहे खरीदारी करते हुए, खाना बनाते हुए या घर को संभालते हुए, वे आम लोगों से सीधे जुड़ते हैं। जबकि राजनयिक तो सिर्फ सरकारी दफ्तरों, मंत्रालयों और चर्चाओं तक सीमित रहते हैं।

इन जीवनसाथियों के पास साझा करने के लिए कई दिलचस्प कहानियां हैं—जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी का भारतीय सिनेमा के प्रति विशेष लगाव, पुराने विश्वविद्यालय के दो पूर्व छात्रों की मुलाकात जिसने पांच साल बाद बांग्लादेश निर्माण की नींव रखी, बड़ी संख्या में राजनयिकों के पलायन की योजना बनाना, या फिर स्विट्जरलैंड में एक अजीब फैशन शो को देख कर भी धैर्य बनाए रखना। यह सब जयश्री मिश्रा त्रिपाठी ने अपनी पुस्तक “द अदर साइड ऑफ डिप्लोमेसी” (वेस्टलैंड नॉन-फिक्शन, 184 पृष्ठ, मूल्य 599 रुपये) में खूबसूरती से प्रस्तुत किया है।

चार महाद्वीपों में समय बिता चुकीं एक राजनयिक की पत्नी के रूप में, जयश्री लिखती हैं, “राजनयिकों के जीवनसाथियों की आवाजें बहुत लंबे समय तक अनसुनी रही हैं।” उन्होंने अपने निजी और पेशेवर जीवन में कई बदलावों और मुश्किलों का सामना किया, कई अनजान और असहज जगहों पर रहीं, फिर भी ‘इस अनकही, अनौपचारिक भूमिका’ में देश का सम्मान बनाए रखा।

हालांकि, यह किताब केवल इन अनुभवों को सामने लाने के लिए नहीं लिखी गई। इसे तैयार करने में कई साल लगे और इसमें 15 राजनयिक जीवनसाथियों (जिनमें दो पति और कुछ बेटियां भी शामिल हैं) की मूल्यवान यादें और अनुभव संजोए गए हैं। इनमें 1960 के दशक का अमेरिका और सोवियत संघ, विकासशील चीन, और नेल्सन मंडेला, स्पेन के राजा जुआन कार्लोस तथा रॉबर्ट मुगाबे जैसी हस्तियों से मुलाकात के किस्से शामिल हैं। यह किताब सुनिश्चित करती है कि ये यादें कभी भुलाई नहीं जाएंगी।

शशि थरूर, जो राजनयिक से नेता और लेखक बने हैं, अपनी भूमिका में लिखते हैं कि पहली नजर में इस किताब का कवर या सारांश देखकर पाठक सोच सकते हैं कि यह सिर्फ राजनयिक परिवारों के जीवन के अनुभवों का वर्णन करती है। लेकिन जो लोग इसे आगे पढ़ेंगे, उन्हें पता चलेगा कि यह ‘रोचक दृष्टिकोणों का संग्रह’ एक साधारण सारांश से कहीं बढ़कर है।

यह किताब में ब्राजील की शांत जिंदगी से लेकर बगदाद की तनावपूर्ण गलियों तक, वियना के सांस्कृतिक माहौल से लेकर वॉशिंगटन के उपनगरों तक, स्विट्जरलैंड ही नहीं, बल्कि उत्तर कोरिया, इथियोपिया और जिम्बाब्वे जैसे देशों की झलकियों के साथ-साथ गृहयुद्ध से जूझते ताजिकिस्तान कीयादगार यात्रा तक, कई कहानियां समेटी गई हैं।

यह किताब बताती है कि कूटनीति, चाहे कूटनीतिज्ञों के लिए हो या उनके परिवार वालों के लिए, राजनयिक जीवन केवल बाहरी चमक-धमक तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कड़ी मेहनत, समर्पण, गहरी समानुभूति और हर परिस्थिति के अनुरूप खुद को ढालने की क्षमता की जरूरत होती है। तभी आप इस क्षेत्र में वास्तव में सफल हो सकते हैं।

किताब में कुछ दिलचस्प घटनाओं का जिक्र है, जैसे इथियोपिया के इलीट लोगों का भारतीय राजदूत के घर राष्ट्रीय दिवस के जश्न के बाद देर से आना, या पंडित रवि शंकर और उनके साथियों के लिए बीजिंग में भारतीय खाना बनाना, जबकि उन्हें इसका अनुभव नहीं था। रवि शंकर ने तब चीनी फूड और नहीं खाने की इच्छा जताई थी।

अंत में अपने बेहतरीन निष्कर्ष के साथ यह संपादक का नजरिया है, जो केवल यादों का संग्रह न होकर, राजनयिक परिवारों के जीवन की सच्चाई को उजागर करता है। यह उनके सामने आने वाली चुनौतियों और उनके जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को बिना किसी दिखावे के सटीक रूप से प्रस्तुत करता है।

–आईएएनएस

एएस/


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