दो बार कैंसर को मात देने के बाद भी जिस संगीतकार का संगीत तो अमर हो गया लेकिन वह जिंदगी की जंग हार गए

दो बार कैंसर को मात देने के बाद भी जिस संगीतकार का संगीत तो अमर हो गया लेकिन वह जिंदगी की जंग हार गए

नई दिल्ली, 4 सितंबर (आईएएनएस)। जबलपुर से मायानगरी तक के सफर में कदम-दर-कदम सफलता की सीढ़ियां चढ़ना और फिर गानों के जरिए लोगों के दिलों पर राज करने वाले मशहूर कंपोजर और सिंगर ने महज 51 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया।

दुनिया को अलविदा कहते वक्त वह जिस दर्द से गुजर रहे थे उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है। ड्राइविंग के शौकीन इस संगीतकार को जब दर्द से लड़ते हुए अपनी गाड़ी को आगे बढ़ाना था तो वह इसकी ड्राइविंग सीट पर संभलकर बैठ भी नहीं पा रहे थे।

हाय रे कैंसर, जैसे ही इस बीमारी के बारे में उनको पता चला कि वह उनके शरीर के अंदर पनप रहा है तो वह बिल्कुल अकेले हो गए।

इलाज के लिए पैसे की इतनी तंगी की जीवन की गाड़ी पटरी पर रहे इसके लिए उन्होंने अपनी महंगी कार बेच दी। लेकिन, ऊपर वाले को तो कुछ और ही मंजूर था। अपने बर्थडे के अगले दिन ही इस मशहूर कंपोजर ने दुनिया को छोड़ दिया। 4 सितंबर 1964 को जबलपुर में पैदा हुए आदेश श्रीवास्तव ने मशहूर संगीतकार आरडी बर्मन और राजेश रोशन के लिए ड्रमर की भूमिका के साथ अपनी शुरुआत की।

100 से भी ज्यादा फिल्मों को आदेश ने अपने संगीत से सजाया। उनकी आवाज भी इतनी रूहानी की माइक पर जब उनकी आवाज गूंजती तो लोग उनके दीवाने हो जाते। अमिताभ बच्चन से 22 साल छोटे आदेश का उनसे ऐसा याराना था कि उनके बाद के करियर की कई सारी फिल्में लाल बादशाह, दीवार, मेजर साहब, बाबुल, बागवान, आंखें, कभी खुशी कभी गम के गानों को अपनी संगीत से आदेश ने ही सजाया।

किसको पता था कि कैंसर इतना बेदर्द निकलेगा कि आदेश के 51वें जन्मदिन के अगले दिन ही वह उन्हें दुनिया से विदा कराकर अपने साथ ले जाएगा। 5 सितंबर 2015 यही वह तारीख थी जब आदेश श्रीवास्तव अपने चाहने वालों से रुखसत हो गए।

‘क्या अदा क्या जलवे तेरे पारो’, ‘सोना सोना’, ‘शाबा शाबा’, ‘नीचे फूलों की दुकान’, ‘मोरा पिया’, ‘मैं यहां तू वहां’ और ‘चली चली फिर चली चली’ जैसे गाने को अपनी संगीत की धुन से संवारने वाले इस संगीतकार के बारे में कौन समझ सकता था कि वह अपने अंदर कितना दर्द छुपाए हुए हैं।

इतने सारे हिट गाने भी उनके काम नहीं आए क्योंकि कैंसर का इलाज कराने के लिए अंतिम समय में उनके पास पैसे तक नहीं थे। कैंसर से जूझ रहे आदेश हमेशा अपनी पत्नी से शिकायत करते कि इस बीमारी ने उन्हें इतना टॉर्चर नहीं किया, जितना लोगों के व्यवहार ने किया है। उन्हें अंतिम समय तक यह शिकायत रही कि बीमारी के दौरान ना तो उनकी किसी ने खबर ली और ना ही कोई मिलने आया।

साल 2010 जब आदेश की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी फिर मेडिकल जांच के दौरान सामने आया कि उन्हें ब्लड कैंसर है। उनका इलाज शुरू हुआ और जीवट आदेश ने कुछ समय में इस गंभीर बीमारी को मात दे दी। इसके कुछ समय बाद ही उनको दोबारा कैंसर हो गया। दूसरी बार भी आदेश ने इस बीमारी को हराया। लेकिन, कैंसर तो मानो उन्हें उनके चाहने वालों से दूर ले जाने के लिए ही आया था।

इस बीमारी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और तीसरी बार फिर से उन्हें कैंसर की बीमारी ने जकड़ लिया। 42 दिनों तक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जंग लड़ते हुए उन्होंने आखिर हार मान ली और 5 सितंबर को उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली।

साल था 1993 का जब फिल्म कन्यादान के लिए आदेश ने संगीत दिया, लेकिन, फिल्म किन्हीं कारणों से रिलीज नहीं हो पाई थी।

इसके बाद 1994 में आई फिल्म ‘आओ प्यार करें’ में संगीत देकर एक संगीतकार के तौर पर उन्होंने अपनी अलग ख्याति पा ली थी। शकीरा से लेकर एकॉन तक कई बॉलीवुड हस्तियों के साथ आदेश ने मंच साझा किया। इस सब के साथ ही साल 2000 में एक फिल्म आई ‘रिफ्यूजी’जिसका संगीत आदेश ने दिया था और इसके लिए उन्हें आइफा अवॉर्ड मिला।

आदेश के दो साले जतिन पंडित और ललित पंडित भी संगीतकार जोड़ी के तौर पर तब तक नाम कमा चुके थे और आदेश ने इनकी अभिनेत्री और गायिका बहन विजेयता पंडित से शादी रचाई थी। समय कितना बेरहम होता है यह विजेयता को आदेश के जाने के बाद पता चला क्योंकि आर्थिक तंगी के चलते उन्हें कमरा भी किराए पर देना पड़ा।

–आईएएनएस

जीकेटी/एफजेड

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