सीवान के भैया-बहिनी मंदिर में होती है टीलों की पूजा, भाई दूज के मौके पर दूर-दूर से आते हैं भक्त


नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत संस्कृति, परंपरा और लोककथाओं से समृद्ध देश है, जिसकी अपनी एक अलग कहानी है। धर्म और आस्था के क्षेत्र में हमारा विश्वास इतना दृढ़ है कि पत्थर में भी भगवान को पूजते हैं।

अगर पत्थर भी ना हो तो प्रकृति के सानिध्य में चले जाते हैं। बिहार के सीवान में एक ऐसा ही मंदिर है, जहां न तो कोई प्रतिमा है और न ही पूजन विधि, लेकिन हर साल रक्षाबंधन और भाई-दूज के मौके पर लोगों की भीड़ जुट जाती है।

देशभर में गुरुवार को भाई-दूज का त्योहार मनाया जाएगा और भाई-बहन के पवित्र प्रेम को दर्शाता एक प्राचीन मंदिर भैया-बहिनी मंदिर है, जो दरौंदा और महाराजगंज थाना क्षेत्र के बॉर्डर के पास भीखा बांध के गांव में बसा है। माना जाता है कि जो भी भाई-बहन की जोड़ी रक्षाबंधन और भाई-दूज पर यहां पूजा-पाठ करती है और मन्नत मांगती है, उनकी मुराद पूरी होती है। खास बात ये है कि मंदिर बहुत छोटा है और मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। सिर्फ दो बरगद के पेड़ और मिट्टी के टीले हैं, जहां आकर लोग अपनी मुरादों को मांगते हैं।

दो बरगद के पेड़ों को लेकर वहां के लोगों के बीच मान्यता है कि ये पेड़ भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक हैं। माना जाता है कि एक भाई अपनी बहन को ससुराल से विदाई कराकर ला रहा था, लेकिन तभी मुगलों ने उन पर आक्रमण कर दिया। अपनी बहन को बचाने के लिए भाई ने भगवान से प्रार्थना की और तभी धरती फट गई और दोनों भाई-बहन जमीन में समा गए और वहां विशाल बरगद के पेड़ उग आए। इसी मान्यता के आधार पर सीवान के लोग और आस-पास के गांव वाले बरगद के पेड़ों की पूजा करते हैं और लाल धागा बांधकर अपनी मुराद मांगते हैं।

लोगों का मानना है कि यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। जो भी भाई-बहन एक साथ मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं, उनके बीच प्यार और सम्मान बना रहता है। रक्षाबंधन और भाई दूज के मौके पर मंदिर में बहुत भीड़ देखी जाती है और दो मिट्टी के टीलों की पूजा होती है। ये मिट्टी के टीले बलिदान और समर्पण का प्रतीक हैं।

–आईएएनएस

पीएस/डीएससी


Show More
Back to top button