बुंदेलखंड की धरती गर्मी में उगल रही पानी!


पन्ना, 16 मई (आईएएनएस)। देश का बुंदेलखंड वो इलाका है जो सूखा, गरीबी और पलायन के लिए पहचाना जाता है, मगर यहां के पन्ना जिले से गर्मी के मौसम में अच्छी खबर आ रही है कि तालाब सफाई और कुछ फुट की खुदाई के दौरान ही जमीन से पानी निकलने लगा है। राज्य में जल संरक्षण और संवर्धन के लिए जलगंगा संवर्धन अभियान चलाया जा रहा है। यह अभियान 30 मार्च से शुरू हो चुका है और 30 जून तक चलेगा।

इस दौरान राज्य के अलग-अलग हिस्सों की जल संरचनाओं को दुरुस्त किया जाएगा, वहीं नई जल संरचनाएं बनाई जाएंगी। बुंदेलखंड वैसे तो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सात-सात जिलों में फैला है। इस तरह इस क्षेत्र में कुल 14 जिले हैं। मध्य प्रदेश का एक जिला है पन्ना, यह इलाका भी जल संकट के लिए पहचाना जाता है। यहां जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत जल संरचनाओं के सुधार और निर्माण का कार्य चल रहा है। यह वह इलाका है जहां लोगों को पानी हासिल करने के लिए कई किलोमीटर तक का सफर तय करना होता है।

पन्ना जिले में वर्ष 2025 में 1329 खेत तालाबों के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके विरुद्ध 1254 खेत तालाबों के कार्यों की स्वीकृति जारी होने के बाद खेत तालाबों का निर्माण कार्य प्रारंभ हो चुका है। इसी तरह 1990 कूप रिचार्ज पिट का निर्माण कार्य का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें से 1610 कार्यों की स्वीकृति जारी होने के पश्चात 837 कूप रिचार्ज पिटों का निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया है।

जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी उमराव सिंह मरावी ने आईएएनएस को बताया है कि शासन की मंशा के अनुसार कार्य किए जा रहे हैं। एक अच्छी बात यह सामने आई है कि 21 तालाबों के निर्माण कार्य के दौरान कुछ फुट की गहराई पर ही जमीन पानी उगलने लगी। इसका आशय साफ है कि बेहतर स्थान का चयन कर तालाब या जल संरचनाओं का निर्माण किया जाए तो पानी तो मिलेगा ही, साथ ही जल संग्रहण का कार्य भी आसान हो जाएगा।

बताया गया है कि खेत तालाबों के निर्माण कार्य में राज्य रोजगार गारंटी परिषद द्वारा तैयार किया गया सिपरी सॉफ्टवेयर मददगार बना है। सॉफ्टवेयर के माध्यम से स्थल चयन करने में आसानी हुई है और नतीजे इस रूप में उत्साहजनक सामने आ रहे हैं कि गर्मी के समय भी बड़ी संख्या में जो खेत तालाब बनाए जा रहे हैं, उनमें पानी निकल रहा है। बारिश होने पर खेत तालाबों में वर्षा का जल पर्याप्त रूप से भंडारित होने पर किसानों को सिंचाई की सुविधा मिलेगी। बताया गया है कि इस सॉफ्टवेयर के जरिए स्थल की जियो टैगिंग के साथ साइट के खसरा नंबर तथा अन्य जानकारी दर्ज की जाती है और सॉफ्टवेयर में दर्ज जानकारियों का विश्लेषण कर कार्य किया जाता है।

–आईएएनएस

एसएनपी/एएस


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