आमी 'कलकत्ता' : 'भद्रलोक' की भव्य गाथा, आधुनिक शहर यही, पुरानी धड़कन भी वही…

नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। 335 साल पहले, तारीख 24 अगस्त 1690, ये वो तारीख है, जब कलकत्ता (कोलकाता) इतिहास के पन्नों में अपनी जगह बनाने की शुरुआत कर चुका था। यह वह दिन था जब ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारी जॉब चार्नॉक ने हुगली नदी के तट पर तीन गांवों को मिलाकर एक व्यापारिक केंद्र की नींव रखी। शायद ही किसी ने उस वक्त सोचा था कि यह छोटा सा कदम भारत के सांस्कृतिक, व्यापारिक और ऐतिहासिक नक्शे पर एक ऐसी छाप छोड़ेगा, जो सदियों तक अमर रहेगा।
17वीं में जब भारत में विदेशी व्यापारियों की नजरें मसालों और रेशम पर थीं, तब जॉब चार्नॉक ने हुगली नदी के किनारे एक ऐसी जगह की तलाश की जो व्यापार के लिए उपयुक्त हो। सूतानुती, गोविंदपुर और कालीघाट के ये तीन गांव नदी के किनारे बसे होने के साथ-साथ रणनीतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण थे।
चार्नॉक ने यहां एक व्यापारिक चौकी स्थापित की, जो जल्द ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रमुख केंद्र बन गई। लेकिन, यह स्थापना इतनी आसान नहीं थी। स्थानीय जमींदारों और मुगल शासकों के साथ बातचीत, बार-बार होने वाले संघर्ष और प्राकृतिक चुनौतियों के बीच चार्नॉक ने हार नहीं मानी। उनकी दृढ़ता ने ही उस शहर की नींव रखी, जिसे आज हम कोलकाता के नाम से जानते हैं।
1690 में शुरू हुआ यह शहर धीरे-धीरे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का केंद्र बन गया। 1772 में जब वारेन हेस्टिंग्स ने इसे ब्रिटिश भारत की राजधानी बनाया, तब कलकत्ता ने न केवल व्यापार, बल्कि संस्कृति, शिक्षा और कला के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनानी शुरू की।
फोर्ट विलियम, राइटर्स बिल्डिंग और विक्टोरिया मेमोरियल जैसे ऐतिहासिक स्थल आज भी उस दौर की गवाही देते हैं। लेकिन, कोलकाता सिर्फ औपनिवेशिक इतिहास तक सीमित नहीं रहा। यहां राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान विचारकों ने सामाजिक सुधार और साहित्य की नई लहर शुरू की।
2001 में जब कलकत्ता का नाम आधिकारिक तौर पर कोलकाता किया गया, तो यह सिर्फ एक नाम का बदलाव नहीं था, बल्कि यह शहर की बंगाली पहचान के पुनर्जीवन का प्रतीक था। यही वह शहर है, जहां गंगा की लहरें, काली मां की भक्ति और रसगुल्लों की मिठास साथ-साथ मिलती हैं।
कोलकाता को ‘सिटी ऑफ जॉय’ के नाम से भी जाना जाता है। यहां की हावड़ा ब्रिज की भव्यता हो या दक्षिणेश्वर मंदिर की शांति, कोलकाता हर किसी को अपनी ओर खींचता है। इस शहर ने सत्यजीत राय की सिनेमाई कला को जन्म दिया। इस शहर ने दुर्गा पूजा जैसे उत्सवों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने का काम किया। यहां की गलियों में आज भी पुरानी ट्राम की खटपट सुनाई देती है। एक समय की काली-पीली टैक्सियां भी अपने आप में कोलकाता की जीवंतता को समेटे दिखती थीं।
कोलकाता का खाना, चाहे काठी रोल हो या मिष्टी दोई, हर किसी की आत्मा को छूता है। इस शहर की खास बात यह है कि यहां पुरानी हवेलियां और आधुनिक मॉल एक साथ सांस लेते हैं। कोलकाता आज भी अपने ऐतिहासिक गौरव के साथ-साथ एक आधुनिक महानगर के रूप में जाना जाता है। सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षा और स्टार्टअप्स के क्षेत्र में कोलकाता तेजी से प्रगति कर रहा है।
–आईएएनएस
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