कोकिला वन में रंगों की आस्था : यहां होता है शनिदेव की अनोखी होली का आयोजन

नई दिल्ली, 3 मार्च (आईएएनएस)। होली का महत्व हर स्थान पर अलग-अलग होता है। कहीं होली की उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं, तो कहीं सबसे भव्य होली मनाए जाने का दावा किया जाता है। इसके साथ ही, प्रत्येक स्थान पर होली की विविधता और उसकी भव्यता से जुड़ी खास कहानियां हैं। कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और वृंदावन की होली बेहद प्रसिद्ध है, जहां कभी गुलाब की होली खेली जाती है, तो कभी लट्ठमार होली होती है। इन सभी के बीच, कोकिला वन के शनिदेव मंदिर की होली अपनी खासियत के लिए जानी जाती है। यहां की होली न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है, बल्कि एक अलग प्रकार का अनुभव भी देती है।
कोकिला वन का शनिदेव मंदिर, जो उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के पास कोसी कलां में स्थित है, न केवल अपने धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की होली भी विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह मंदिर घने जंगलों के बीच स्थित है, और इसे कोकिलावन धाम के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर की होली का विशेष आकर्षण यह है कि यहां का होली पर्व अन्य जगहों से बहुत अलग और विशिष्ट है।
कोकिला वन के शनिदेव मंदिर की होली का महत्व इसलिए भी है, क्योंकि यह स्थान धार्मिक दृष्टि से बहुत खास है। यहां की होली भगवान श्री कृष्ण और शनिदेव के बीच की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में शनिदेव ने भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवान श्री कृष्ण ने शनिदेव को कोयल के रूप में दर्शन दिए थे और कहा था कि नंदगांव के पास स्थित कोकिला वन उनका स्थल है। तभी से यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए एक सिद्ध स्थल बन गया। उसके बाद से यहां मथुरा और वृंदावन जैसे स्थानों के साथ-साथ यहां भी भव्य होली का आयोजन होने लगा। यहां होली में लोग सुबह उठकर होलिका की पूजा करते हैं। फिर रंगों का आयोजन शुरू होता है। इसमें आसपास के लोग बड़े ही उल्लास के साथ आपस में होली खेलते हैं।
कोकिला वन में होली का पर्व विशेष रूप से शनिदेव और श्री कृष्ण की कृपा प्राप्ति के रूप में मनाया जाता है। यह होली एक शांतिपूर्ण और पवित्र उत्सव होती है, जिसमें भक्तगण शांति और समृद्धि की कामना करते हुए अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। यहां की होली का स्वरूप अन्य स्थानों से बिल्कुल अलग है। यहां होली के दिन श्रद्धालु शनि देव की पूजा करते हुए परिक्रमा करते हैं और एक दूसरे को रंगों से नवाजते हैं। रंगों का खेल, भव्य संगीत और भक्ति गीतों के साथ यहां का वातावरण निहायत ही दिव्य और आनंदमयी हो जाता है।
कोकिला वन की होली में विशेष तौर पर शनिदेव की पूजा होती है। श्रद्धालु “ॐ शं शनिश्चराय नम:” और “जय शनि देव” का उच्चारण करते हुए परिक्रमा करते हैं। इस अवसर पर भक्तगण अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए दान भी करते हैं। यह होली बहुत ही शांतिपूर्ण और साधना प्रधान होती है, जहां लोग सिर्फ होली के रंगों में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति में रंगते हैं।
कोकिला वन का शनिदेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक केंद्र भी है। यहां के प्राचीन मंदिरों में श्री शनिदेव के साथ-साथ श्री गोकुलेश्वर महादेव, श्री गिरिराज मंदिर और श्री बाबा बनखंडी मंदिर भी हैं, जो श्रद्धालुओं को गहरी शांति और आस्था का अनुभव कराते हैं। इसके अलावा, दो प्राचीन सरोवर और गौशाला भी इस स्थल की महिमा को और बढ़ाते हैं। यहां की होली एक साधना के रूप में होती है, जिसमें लोग अपने जीवन के सभी दुखों और परेशानियों को समाप्त करने की कामना करते हैं।
कोकिला वन की होली इसलिए भी खास मानी जाती है क्योंकि यह एक ऐसा स्थान है, जहां भक्तगण शनि देव की कृपा प्राप्त करने के साथ-साथ श्री कृष्ण का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। यह होली मात्र रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि एक धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव है, जो भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
–आईएएनएस
पीएसएम/सीबीटी