अयोध्या में बालकांड से मानस की शुरुआत,दो साल 8 महीने में हुई पूरी

अयोध्या में बालकांड से मानस की शुरुआत,दो साल 8 महीने में हुई पूरी

नातो नाते राम कें, राम सनेहँ सनेहु। तुलसी माँगत जोरि कर, जनम-जनम सिव देहु… अर्थात तुलसीदास हाथ जोड़कर वरदान मांगते हैं कि हे शिवजी! मुझे जन्म-जन्मान्तरों में यही दीजिए कि मेरा श्रीराम के नाते ही किसी से नाता हो और श्रीराम से प्रेम के कारण ही प्रेम हो। श्रीरामचरित मानस भगवान श्रीराम का शब्दावतार है।

अयोध्या से काशी तक मानस की रचना और गोस्वामी दास के पदचिह्न आज भी मौजूद हैं। अयोध्या में गोस्वामी तुलसीदास ने मानस की शुरुआत की तो काशी में भगवान शिव ने इस ग्रंथ पर अपने हस्ताक्षर करके इसे लोक में स्थापित किया और जन-जन तक राम के आदर्शों को पहुंचाया। विक्रम संवत 1631 में मानस की रचना अवध की धरती पर आरंभ हुई। गोस्वामी तुलसीदास ने करीब छह महीने रहकर अयोध्या में बालकांड का सृजन किया। वर्तमान में आज वहां पर तुलसीचौरा स्थापित है और नित्य रामलीला होती है।

विक्रम संवत 1633 में दो साल सात महीने और 26 दिनों में महाकाव्य पूरा हुआ। गोस्वामी तुलसीदास ने अयोध्या में 35 दोहे लिखे और काशी चले आए। भदैनी में उन्होंने रामचरित मानस को अंजाम तक पहुंचाया। गोपाल मंदिर में उन्होंने विनय पत्रिका की रचना की। दोहावली, गीतावली, कवितावली को भी पंक्तिबद्ध किया। इसी दौरान बाहुपीड़ा के समय उन्होंने हनुमान बाहुक लिखा।

मर्यादा पुरुषोत्तम राम के साथ ही जन-जन तक पहुंचे हनुमानजी

पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर महंत बालक दास का कहना है कि मानस ने शैव और वैष्णव के बीच की दूरियों को खत्म कर दिया। मानस की ही देन है कि आज राम और शिव के भक्तों के बीच की खाई भर गई है। पहले लोग सोचते थे कि शिव और राम अलग-अलग हैं लेकिन गोस्वामी जी ने मानस की रचना से इस संदेह को खत्म कर दिया। अवध में भले ही मानस की रचना शुरू हुई लेकिन मान्यता तो इसे काशी में ही मिली।

गोस्वामी तुलसीदास ने जब मानस की रचना पूर्ण कर ली तो काशी में संस्कृत के विद्वानों ने विरोध किया। तय हुआ कि इसको प्रमाणित कैसे किया जाए। इसके लिए सभी ने बाबा विश्वनाथ की शरण ली। मंदिर के गर्भगृह में सभी ग्रंथों के नीचे रामचरित मानस की पांडुलिपि को रखा गया। इसके बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए। सुबह जब कपाट खुले तो मानस सबसे ऊपर थी। उसके ऊपर भगवान शिव के हस्ताक्षर थे और सत्यम शिवम सुंदरम अंकित था।

गोस्वामी तुलसीदास ने युग को मर्यादा पुरुषोत्तम राम दिए। रामचरित मानस में आदर्श जीवन के संदेश के साथ ही तुलसीदास ने रामभक्त हनुमान को भी जन जन तक पहुंचाया। संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र का कहना है कि तुलसीघाट का पूरा क्षेत्र चहुंदिश हनुमतमय है। आवास प्रांगण में तुलसी ने हनुमत प्रभु की दक्षिणाभिमुख मूर्ति सजाई। बाद में अखाड़ा तुलसीदास के महंतों ने पूर्वाभिमुख, पश्चिमाभिमुख व उत्तराभिमुख हनुमान की मूर्तियां स्थापित कीं। माना जाता है कि बजरंगबली यहां से चारों दिशाओं पर नजर रखते हैं।

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