90 के दशक के वो विकेटकीपर, जिन्होंने स्थापित किए आक्रामक बल्लेबाजी में नए आयाम

नई दिल्ली, 8 सितंबर (आईएएनएस)। एक दौर था, जब विकेटकीपर से बल्लेबाजी में खास उम्मीद नहीं की जाती थी, लेकिन 90 के दौर में कुछ ऐसे विकेटकीपर सामने आए, जिन्होंने न सिर्फ विकेट के पीछे, बल्कि विकेट के आगे रहकर भी टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई। आइए, इनमें से कुछ खिलाड़ियों के बारे में जानते हैं, जिन्होंने विकेटकीपर-बल्लेबाज की परिभाषा को बदलते हुए आधुनिक क्रिकेट की बल्लेबाजी के नए आयाम कायम किए।
रोमेश कालुवितराना: अपनी विस्फोटक बल्लेबाजी और अविश्वसनीय स्टंपिंग के लिए पहचाने जाने वाले श्रीलंकाई क्रिकेटर रोमेश कालुवितराना शुरुआती ओवर्स में अटैकिंग अप्रोच अपनाते हुए विपक्षी टीम के गेंदबाजों पर दबाव बनाने के लिए मशहूर थे।
1995-96 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रोमेश कालुवितराना को सनथ जयसूर्या के साथ बल्लेबाजी क्रम में शीर्ष पर रखा गया, ताकि यह सलामी जोड़ी शुरुआती 15 ओवरों में आक्रामक रुख अपना सके। श्रीलंका टीम की यह रणनीति सफल साबित हुई।
साल 1996 के वर्ल्ड कप में सनथ जयसूर्या के साथ उनकी ओपनिंग साझेदारी को शायद ही कोई भूल सके। भारत और केन्या के विरुद्ध विश्व कप मुकाबलों में कालुवितराना की ओपनिंग साझेदारी फैंस को आज भी याद है। श्रीलंका ने पूरे टूर्नामेंट में इसी सलामी जोड़ी पर अपना भरोसा जताते हुए विश्व कप खिताब जीता।
कालुवितराना जिस आक्रामकता से बल्लेबाजी करते थे, उससे विपक्षी टीम के गेंदबाजों के होश उड़ जाते थे। उस दौर में कालुवितराना वनडे फॉर्मेट को टी20 के अंदाज में खेलते नजर आते थे। विकेट के पीछे तेज रिफ्लेक्स और कैचिंग कालुवितराना को भरोसेमंद विकेटकीपर बनाती थी। इस खिलाड़ी ने वनडे क्रिकेट की ओपनिंग स्ट्रेटजी को बदलने में अहम योगदान दिया।
रोमेश कालुवितराना ने टेस्ट करियर में तीन शतकों के साथ 1,933 रन बनाने के अलावा 93 कैच और 26 स्टंपिंग कीं। वहीं, वनडे मुकाबलों में उन्होंने बल्ले से 3,711 रन बनाने के अलावा 132 कैच और 75 खिलाड़ियों को स्टंप आउट किया।
मोईन खान: इस पाकिस्तानी विकेटकीपर-बल्लेबाज ने लोअर और मिडिल ऑर्डर में बल्लेबाजी करते हुए कई बार मैच फिनिशर की भूमिका निभाई। मोईन की बल्लेबाजी में विविधता थी। वह अक्सर संभलकर बल्लेबाजी करते, लेकिन जरूरत पड़ने पर आक्रामक रुख अपनाने से जरा भी नहीं हिचकते। मोईन खान विकेट के पीछे बेहद पैनी निगाहें रखते थे। स्पिनर्स के साथ उनका तालमेल कुछ ज्यादा ही खास था।
मोईन खान ने पाकिस्तान की 1992 वर्ल्ड कप जीत में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खिताबी मुकाबले में इंग्लैंड के खिलाफ तीन कैच लपकने के अलावा उन्होंने एक बल्लेबाज को रन आउट भी किया था। पाकिस्तान ने 22 रन के अंतर से अपना पहला वर्ल्ड कप जीता। इस खिलाड़ी ने टेस्ट क्रिकेट में 2,741 रन बनाने के अलावा 128 कैच लपके और 20 खिलाड़ियों को स्टंप आउट किया। वहीं, वनडे फॉर्मेट में 214 कैच और 73 स्टंपिंग करने वाले मोईन ने बल्ले से 3,266 रन जुटाए।
एडम गिलक्रिस्ट: इस ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी को विकेटकीपर-बल्लेबाज की परिभाषा को हमेशा के लिए बदलने वाला क्रिकेटर माना जाता है, जिसने बल्लेबाजी में आक्रामक और लगातार स्ट्राइक रेट बनाए रखने वाले खिलाड़ी के रूप में पहचान बनाई। एडम गिलक्रिस्ट ऐसे खिलाड़ी थे, जिनमें टेस्ट क्रिकेट में भी बेधड़क बल्लेबाजी से मुकाबले के रुख को बदलने की क्षमता थी।
गिलक्रिस्ट आधुनिक युग के विकेटकीपर-बल्लेबाजों के लिए प्रेरणास्त्रोत थे। ऑस्ट्रेलिया को तीन वर्ल्ड कप जिताने में अहम योगदान निभाने वाले गिलक्रिस्ट 2007 विश्व कप के फाइनल में ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ भी रहे।
इस विकेटकीपर-बल्लेबाज ने 96 टेस्ट में 47.60 की औसत के साथ 5,570 रन अपने नाम किए। इस दौरान 17 शतक भी शामिल थे। विकेट के पीछे 379 कैच लपकने के अलावा 37 खिलाड़ियों को स्टंप आउट किया। 287 वनडे मुकाबलों में ‘गिली’ ने 16 शतकों के साथ 9,619 रन बनाने के अलावा 417 कैच लपकने के साथ 55 स्टंपिंग की।
मार्क बाउचर: दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर को भरोसेमंद फिनिशर माना जाता था, जिन्होंने निचले क्रम में आकर कई बार टीम को जीत दिलाई। अपने जुझारूपन के लिए मशहूर बाउचर टीम के लिए संकटमोचक साबित हुए। मार्क बाउचर की फुर्ती ने टेस्ट क्रिकेट में उन्हें टीम के एक अहम खिलाड़ी के रूप में साबित किया। वह टीम के महत्वपूर्ण स्तंभ थे।
बाउचर ने टेस्ट क्रिकेट में 5 शतकों के साथ 5,515 रन बनाए। विकेट के पीछे मौजूदगी के साथ 532 कैच लपकने के अलावा 23 खिलाड़ियों को स्टंप आउट भी किया। वनडे फॉर्मेट में 4,686 रन बनाने वाले इस दाएं हाथ के खिलाड़ी ने 403 खिलाड़ियों को कैच आउट किया, जबकि 22 बल्लेबाजों को स्टंप आउट किया।
–आईएएनएस
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