बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर जबरन धर्मांतरण, दुनिया की चुप्पी पर हैरानी : कोलकाता इस्कॉन के प्रवक्ता


कोलकाता, 4 अगस्त (आईएएनएस)। इस्कॉन कोलकाता के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता राधारमण दास ने सोमवार को बांग्लादेश में हाल ही में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर गहरा दुख व्यक्त किया, जिसमें अगस्त 2024 और जुलाई 2025 के बीच 41 पुलिस अधिकारियों सहित कम से कम 637 लोगों की जान चली गई।

आईएएनएस से बात करते हुए, राधारमण दास ने कहा, “बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर दिल दहल जाता है, और उससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि पूरी दुनिया खामोश है। हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की लगभग हर दिन हत्या की जा रही है। महिलाओं और नाबालिग लड़कियों का अपहरण किया जा रहा है, और जब माता-पिता पुलिस के पास जाते हैं, तो उनकी शिकायत तक दर्ज नहीं की जाती।”

उन्होंने आगे कहा, “लोग सिर्फ अपने धर्म के कारण अपनी नौकरियां खो रहे हैं। जबरन धर्मांतरण बड़े पैमाने पर हो रहा है। इस पर दुनिया भर में कोई विरोध क्यों नहीं हो रहा है? अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाएं इसकी निंदा क्यों नहीं कर रही हैं? चिन्मय प्रभु को जेल गए एक साल हो गया है। उन्हें जमानत मिल गई थी, लेकिन बाद में उन्हें एक और झूठे मामले में फंसा दिया गया। यह सिर्फ हिंदुओं पर हमला नहीं है; ईसाई और बौद्ध भी अत्याचारों का सामना कर रहे हैं। फिर भी, यह खामोशी आश्चर्यजनक है।”

अगस्त 2024 के विद्रोह के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद भीड़ हिंसा में यह खतरनाक वृद्धि देखी गई है, जिसके कारण उस समय देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटा दिया गया था।

कनाडा स्थित ‘ग्लोबल सेंटर फॉर डेमोक्रेटिक गवर्नेंस’ द्वारा शनिवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024-25 में मॉब लिंचिंग की घटनाओं में पिछले वर्ष की तुलना में बारह गुना से भी अधिक की वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “2023 में, शेख हसीना सरकार के कार्यकाल में, लिंचिंग से 51 मौतें दर्ज की गईं। अब यह संख्या केवल एक वर्ष में नाटकीय रूप से बढ़कर 637 हो गई है।”

सबसे भयावह घटनाओं में से एक 4 अगस्त, 2024 को जबीर जशोर होटल में 24 लोगों को जलाए जाने की घटना थी। कुछ ही हफ्तों बाद, 25 अगस्त, 2024 को नारायणगंज के रूपगंज स्थित गाजी टायर्स में आग लगने से 182 लोग मारे गए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कई पीड़ितों के नाम अभी भी अज्ञात हैं, क्योंकि मीडिया सेंसरशिप है। रिपोर्ट में कहा गया है, “कड़ी सेंसरशिप के कारण, हम पूरी जानकारी एकत्र नहीं कर सके। इसलिए, पीड़ितों की यह सूची अधूरी है।”

‘ग्लोबल सेंटर फॉर डेमोक्रेटिक गवर्नेंस’ ने आगे चेतावनी दी कि लिंचिंग की ये घटनाएं राजनीतिक अस्थिरता के दौर में कानून-व्यवस्था की विफलता को दर्शाती हैं।

–आईएएनएस

डीकेएम/एएस


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