सुप्रीम कोर्ट आईबीसी को दी गईं चुनौतियों पर गुरुवार को फैसला सुनाएगा

सुप्रीम कोर्ट आईबीसी को दी गईं चुनौतियों पर गुरुवार को फैसला सुनाएगा

नई दिल्ली, 8 नवंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) की संवैधानिकता के पक्ष और विपक्ष में की गईं दलीलों पर सुनवाई पूरी कर ली।

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ गुरुवार को फैसला सुनाएगी।

याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा : “… सभी याचिकाकर्ता एक न्यायिक निकाय द्वारा निर्णय लेने और आईबीसी की धारा 7 और 9 के तहत कार्यों का निर्वहन करने की प्रार्थना कर रहे हैं। मुख्य रूप से याचिकाकर्ता का तर्क यह मानता है कि मूलभूत पहलू यह है कि क्या भाग 3 के अध्याय 3 के तहत एक आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र एक निर्णायक प्राधिकारी द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए और निर्धारण धारा 97(5) के तहत समाधान पेशेवर की नियुक्ति से पहले अधिकार क्षेत्र का सवाल उठाना होगा।”

याचिकाकर्ताओं ने मंगलवार को दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के कई प्रावधानों को चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्रावधान न केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखने में विफल रहे, बल्कि अनुच्छेद 21, 14 और 19 1) (जी) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का भी हनन करते हैं।

सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने व्यक्तिगत गारंटरों की दिवाला समाधान प्रक्रिया से संबंधित आईबीसी के कई प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।

याचिकाकर्ताओं ने आईबीसी की धारा 95(1), 96(1), 97(5), 99(1), 99(2), 99(4), 99(5), 99(6) और 100 को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि ये प्रावधान प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखने में विफल रहे।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए सिंघवी ने कहा कि धारा 95 जो ऋण के अस्तित्व से संबंधित है, में औपचारिक सुनवाई का अभाव है और कथित गारंटर को अपना मामला पेश करने की अनुमति दिए बिना एक रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (आरपी) की नियुक्ति शुरू कर दी गई है।

शीर्ष अदालत को यह बताते हुए कि धारा 95 में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को शामिल करने की जरूरत है, उन्होंने आरपी द्वारा “घुसपैठ वाले सवालों” और व्यक्तिगत गोपनीयता के खतरों पर भी चिंता जताई।

याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया है कि आईबीसी प्रावधान सुनवाई के उचित अवसर के बिना स्थगन और दिवालियापन कार्यवाही लगाकर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत आजीविका और जीवन के अधिकार में बाधा डालते हैं।

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि ये प्रावधान अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत किसी व्यक्ति के किसी भी पेशे को अपनाने के अधिकार का अतिक्रमण करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आईबीसी प्रावधान, उचित आधार या निष्पक्ष सुनवाई के बिना उनकी आर्थिक और व्यावसायिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाकर व्यक्तियों के साथ भेदभाव करते हैं और इस प्रकार अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हैं।

केंद्र और एसबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के समक्ष कहा कि दिवालियेपन का समयबद्ध समाधान आईबीसी का दिल और आत्मा है। उन्होंने तर्क दिया कि धारा 14 के विपरीत धारा 96 के तहत अधिस्थगन गारंटर या देनदार, जैसा भी मामला हो, के लाभ के लिए है।

उन्होंने कहा कि धारा 95 के तहत आवेदन के चरण में कोई न्यायनिर्णयन नहीं होता है और न ही समाधान पेशेवर द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया के परिणामस्वरूप देनदार पर कोई प्रतिकूल परिणाम होता है, उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य केवल तथ्यों का मिलान करना है।

–आईएएनएस

एसजीके

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