नई दिल्ली, 6 नवंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र को एक नोटिस जारी कर दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 437ए की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें बरी किए गए व्यक्ति को भी जेल से रिहाई सुनिश्चित करने के लिए मुचलका और जमानत देने की जरूरत होती है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सीआरपीसी धारा 437ए पर याचिका पर सुनवाई की, जो अभियुक्तों को उनकी अपील के दौरान जमानत बांड और जमानतदारों द्वारा जमानत पर रिहा करने की अनुमति देने से संबंधित है।
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका में कहा गया कि यह धारा आपराधिक न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न करती है और अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि धारा के तहत प्रावधानों में ‘आनुपातिकता की भावना’ का अभाव है, क्योंकि ऐसे आरोपी व्यक्ति हो सकते हैं, जिनके पास वित्तीय संसाधनों की कमी है और उन्हें जमानतदार नहीं मिल सकते हैं। जमानतदारों के साथ जमानत पर जोर देने से उन्हें लगातार कारावास में ही रहना पड़ेगा।
याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पिछले आदेश का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में जहां बांड निष्पादित नहीं किया जाता है, लेकिन व्यक्ति बरी हो जाता है, एक व्यक्तिगत बांड पर्याप्त होना चाहिए।
यह धारा इस बात से संबंधित है कि बरी किए गए व्यक्ति को बरी होने के बाद जमानतदार के साथ बांड भरने के लिए कहा जाता है और यहां तक कि फैसला सुनाए जाने से पहले भी आरोपी को जमानती के साथ बांड भरने के लिए कहा जाता है। इस धारा के अनुसार, मुकदमे के समापन से पहले और अपील के निपटान से पहले, अदालत को आरोपी को उच्च न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए जमानतदारों के साथ जमानत बांड निष्पादित करने की जरूरत होगी।
–आईएएनएस
एसजीके