अध्ययन ने पता लगाया कैसे बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य और आर्थिक लागत बढ़ाता है पीएम2.5


नई दिल्ली, 7 फरवरी (आईएएनएस)। वायु प्रदूषण दुनिया भर में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनता जा रहा है। हाल ही में एक नए अध्ययन में बुजुर्गों पर इसके स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभावों पर ध्यान दिया गया है।

जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि हवा में मौजूद बारीक कण (पीएम2.5) बुजुर्गों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं और उन क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक समस्याएं बढ़ाते हैं जहां स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हैं।

पीएम2.5 बहुत छोटे प्रदूषण कण होते हैं, जो सांस लेने के दौरान फेफड़ों और रक्त प्रवाह में गहराई तक पहुंच सकते हैं। इससे गंभीर श्वसन (सांस से जुड़ी) और हृदय संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। ये कण इतने छोटे होते हैं कि नाक और गले की प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली इन्हें रोक नहीं पाती, जिससे बुजुर्गों को अधिक खतरा होता है।

अध्ययन के प्रमुख लेखक, एसोसिएट प्रोफेसर यिन लॉन्ग के अनुसार, “उम्र बढ़ने के साथ हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे हमारा शरीर प्रदूषण से बचाव नहीं कर पाता। हल्का प्रदूषण भी पहले से मौजूद बीमारियों को बढ़ा सकता है, जिससे अस्पताल में भर्ती होने की संभावना और असमय मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।”

शोधकर्ताओं ने जापान पर विशेष ध्यान दिया, जहां लगभग 30% आबादी 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र की है। उन्होंने देखा कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बुजुर्गों को पीएम2.5 प्रदूषण से अधिक नुकसान होता है। इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं भी कम हैं, जबकि शहरों में बेहतर चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हैं। इसी कारण ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रदूषण से जुड़ी आर्थिक लागत अधिक होती है।

लॉन्ग बताते हैं, “कई ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषज्ञ डॉक्टर और उन्नत अस्पताल नहीं हैं, जो पीएम2.5 से बढ़ने वाली बीमारियों जैसे स्ट्रोक और हार्ट अटैक का इलाज कर सकें।”

शोध में यह भी पाया गया कि पीएम2.5 के कारण कई बुजुर्ग गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं, जिससे उन्हें योजना से पहले ही काम छोड़ना पड़ता है। इसका असर उनकी आर्थिक स्थिति पर पड़ता है और युवा पीढ़ी पर उनका बोझ बढ़ जाता है।

अर्थव्यवस्था पर असर का विश्लेषण करने पर पता चला कि पीएम2.5 से होने वाली बीमारियों और मृत्यु दर के कारण कुछ क्षेत्रों में आर्थिक नुकसान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2% से भी अधिक हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यह समस्या केवल जापान तक सीमित नहीं है। चीन और यूरोप के कुछ हिस्सों सहित अन्य देशों में भी बढ़ती प्रदूषण दर और वृद्ध होती आबादी के कारण ऐसी ही चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। लॉन्ग ने सरकारों से आग्रह किया कि वे सबसे अधिक प्रभावित इलाकों और लोगों की पहचान कर, संसाधनों का सही तरीके से आवंटन करें।

शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि प्रदूषण नियंत्रण को सख्त किया जाए, स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश बढ़ाया जाए और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से सीमा पार प्रदूषण की समस्या का समाधान निकाला जाए। साथ ही, शहरों में हरियाली बढ़ाने और टेलीमेडिसिन को प्रोत्साहित करने पर भी जोर दिया गया।

–आईएएनएस

एएस/


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