शालेव की खुदकुशी ने हमास-इजरायल युद्ध के अनदेखे स्याह पन्ने को उजागर किया, ये एक मनोवैज्ञानिक युद्ध है जिसकी कोई सीमा नहीं


नई दिल्ली, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। गाजा शांति की राह पर चल निकला है। दुनिया वहां पीस चाहती है। ऐसी ही पॉजिटिव न्यूज के बीच एक खबर शनिवार, 11 अक्टूबर, 2025 को आई। एक युवक जिसे बास्केटबॉल से प्यार था, जो हंसता-मुस्कुराता था, अचानक उसके मरने की खबर आई। आकस्मिक मौत का कारण नेचुरल नहीं था बल्कि वजह आत्महत्या थी। इस युवक का नाम था रोई शालेव और इसने मौत को इसलिए गले लगाया क्योंकि ये उस नोवा म्यूजिकल फेस्टिवल की त्रासदी भुला नहीं पा रहा था जिसने इससे जिंदगी का सबसे प्यारा साथी छीन लिया था।

हमास के उस हमले में रोई की खास दोस्त मापला एडम की जान चली गई थी। रोई तो बच गया लेकिन दिल के जख्म कभी भर नहीं पाए। रोई ही नहीं, बल्कि ऐसे कई हैं जो उस हादसे को झेल नहीं पाए और जिंदगी खत्म कर दी। 2024 में उस हमले में बची एक युवती ने भी आत्महत्या कर ली थी। यहां भी वजह वो दर्द था जो भर नहीं पा रहा था। शिरेल गलोन ने अपने 22वें जन्मदिन पर ही जान दे दी थी।

कहने का मतलब ये है कि 7 अक्टूबर 2023 की सुबह इजरायल ने वह चीख सुनी, जिसे इतिहास कभी भुला नहीं पाएगा। हमास के हमले के बाद जलते हुए घर, बंधक बनते परिवार, शव और आतंकी दहशत के बीच एक और अदृश्य युद्ध शुरू हुआ। यह युद्ध गोली और बारूद का नहीं, बल्कि दिल दिमाग पर छपे जख्मों का था। शरीर से सुरक्षित बच गए हजारों लोग मन से बुरी तरह घायल होकर एक ऐसी दुनिया में धकेल दिए गए, जहां रात को नींद नहीं आती और दिन में जीने की वजह नहीं मिलती।

हमले के कुछ ही हफ्तों बाद इजरायल के मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों में ‘पीटीएसडी’ यानी ‘पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर’ के मामलों में पांच गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई। हेल्पलाइन नंबरों पर कॉल करने वाले लोग अब अपने भय नहीं, बल्कि अपनी अपराधबोध की कहानियां बता रहे थे। “मैं बच गया, पर मेरे बच्चे/साथी नहीं”, यह वाक्य इजरायल की नई राष्ट्रीय मनोव्यथा बन चुका है। जिन लोगों ने परिवार खोया, वे दिन में बार-बार पूछते हैं—आखिर मैं क्यों जिंदा हूं? मनोविज्ञान इसे “सर्वाइवर गिल्ट” का सबसे भयानक रूप मानता है, जहां व्यक्ति किसी बाहरी दुश्मन नहीं, बल्कि अपने बच जाने को ही अपराध मान लेता है।

इजरायल के स्वास्थ्य मंत्रालय और मानसिक स्वास्थ्य संगठनों ने 2024 की शुरुआत में खुलासा किया कि हमले के तीन महीने के भीतर पीटीएसडी के नए मामलों में 500 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज की गई। सबसे अधिक प्रभावित वे समुदाय थे जो कफर अजा, बेअरी और निर ओज में रहते थे। ये इलाके गाजा से सटे हुए हैं।

शोध बताते हैं कि पीटीएसडी ग्रस्त हर चार में से एक व्यक्ति आत्महत्या की कगार पर पहुंचता है। इजरायल में यह स्थिति नई नहीं, पर इतनी व्यापक पहले कभी नहीं रही। 1973 के योम किप्पुर युद्ध, 2006 के लेबनान युद्ध और लगातार आतंकी घटनाओं से गुजरते देश में ऐसे बहुत मामले सामने आए। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि यह केवल युद्धोत्पन्न तनाव नहीं, बल्कि पीढ़ियों तक चलने वाला ट्रॉमा है जो आने वाले समय में बच्चों की मानसिक संरचना को बदल देगा।

सरकार ने ‘रेजीलिएंस सेंटर’ खोले, थेरेपी का इंतजाम किया, मनोचिकित्सकों की टीम भेजी, लेकिन समस्या बनी हुई है। यह केवल इजरायल की कहानी नहीं गाजा में रहने वाले हजारों परिवार, जिनके ऊपर वही युद्ध दिन-रात मौत की बारिश बनकर बरसा इस स्थिति से जूझ रहे हैं।

डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट बताती है कि गाजा के हर दूसरे बच्चे में गंभीर मानसिक ट्रॉमा के संकेत देखे गए हैं। यानी युद्ध ने सीमाओं को नहीं, बल्कि मानव मन को अपनी कैद में रखा है।

–आईएएनएस

केआर/


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