मधुमेह रोगियों के लिए टेबल शुगर की जगह नॉन-न्यूट्रिटिव स्वीटनर्स बेहतर : शोध

मधुमेह रोगियों के लिए टेबल शुगर की जगह नॉन-न्यूट्रिटिव स्वीटनर्स बेहतर : शोध

नई दिल्ली, 7 अगस्त (आईएएनएस)। एक शोध में यह बात सामने आई है कि कॉफी और चाय जैसे दैनिक पेय पदार्थों में शुगर (सुक्रोज) के बदले थोड़ी मात्रा में नॉन-न्यूट्रिटिव स्वीटनर्स का उपयोग करने से एचबीए1सी के स्‍तर (शुगर लेवल) जैसे ग्लाइसेमिक मार्करों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

चेन्नई स्थित मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों ने पेलेट, तरल या पाउडर के रूप में सुक्रालोज का उपयोग किया, उनके शरीर के वजन (बीडब्ल्यू), कमर की परिधि (डब्ल्यूसी) और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) में थोड़ा सुधार हुआ।

एमडीआरएफ के अध्यक्ष और अध्ययन का नेतृत्व करने वाले वरिष्ठ मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. वी. मोहन ने कहा, “इससे कैलोरी को कम करने के साथ डाइट को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। चाय और कॉफी जैसे दैनिक पेय पदार्थों में नॉन-न्यूट्रिटिव स्वीटनर्स के उपयोग से फायदा होता है।

डायबिटीज थेरेपी पत्रिका में प्रकाशित शोध का उद्देश्य एशियाई और भारतीयों में कॉफी/चाय में टेबल शुगर (सुक्रोज) के स्थान पर नॉन-न्यूट्रिटिव स्वीटनर्स सुक्रालोज के उपयोग के प्रभाव का पता लगाना था।

रैंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल (आरसीटी) ने 12 सप्ताह तक मधुमेह से पीड़ित 179 भारतीयों की जांच की, जिन्हें दो समूहों में विभाजित किया गया, जिनमें इंटरवेंशन औार कंट्रोल शामिल थे।

हस्तक्षेप (इंटरवेंशन) समूह में, कॉफी या चाय में अतिरिक्त चीनी को सुक्रालोज-आधारित स्वीटनर से बदला गया। जबकि नियंत्रण समूह (कंट्रोल) में, प्रतिभागियों ने पहले की तरह टेबल शुगर (सुक्रोज) का उपयोग जारी रखा।

12-सप्ताह के शोध के अंत में समूहों के बीच एचबीए1सी के स्तर में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं पाया गया। हालांकि बीएमआई यानी बॉडी मास इंडेक्स, कमर की परिधि और औसत शारीरिक वजन में अनुकूल परिवर्तन देखे गए। हस्तक्षेप समूह में औसत वजन में कमी 0.3 किलोग्राम थी, समानांतर रूप से बीएमआई में -0.1 किलोग्राम/मी² की कमी आई और कमर की परिधि में -0.9 सेमी की कमी आई।

पिछले वर्ष, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने शारीरिक वजन को नियंत्रित करने के लिए टेबल शुगर (सुक्रोज) का उपयोग करने के विरुद्ध चेतावनी दी थी।

डॉ. मोहन ने कहा, ”इस प्रकार यह शोध भारत के लिए बहुत प्रासंगिक है क्योंकि भारतीयों की आहार संबंधी आदतें दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में काफी भिन्न हैं।”

कॉफी और चाय में अतिरिक्त चीनी का उपयोग इन पेय पदार्थों को भारतीयों के बीच चीनी सेवन का संभावित दैनिक स्रोत बनाता है। इसके अलावा भारत में कुल कार्बोहाइड्रेट की खपत भी बहुत अधिक है, जिससे मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है।

डॉ. मोहन ने कहा कि सुक्रालोज की सुरक्षा और प्रभाव पर और अधिक शोध किए जा रहे हैं।

–आईएएनएस

एमकेएस/एसकेपी

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