नई दिल्ली, 12 फरवरी (आईएएनएस)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सोमवार को कहा कि केंद्रीय बैंक जहां फिनटेक सेक्टर का समर्थन करता है, वहीं वह ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है।
पेटीएम पेमेंट्स बैंक के खिलाफ की गई कार्रवाई पर दास ने आरबीआई की बोर्ड बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, ”जब कोई निर्णय लिया जाता है, तो यह बहुत सोच विचार के बाद लिया जाता है। फैसले यूं ही नहीं लिए जाते। मैं यह स्पष्ट कर दूं कि पेटीएम पेमेंट्स बैंक के खिलाफ की गई कार्रवाई की कोई समीक्षा नहीं होगी। एफएक्यू जल्द ही आएगा। वह ग्राहक हितों को लेकर होगा।”
दास ने कहा कि आरबीआई फिनटेक को बढ़ावा देता है और बढ़ावा देता रहेगा, लेकिन ग्राहक हित और वित्तीय स्थिरता सर्वोपरि है।
उन्होंने कहा, ”फिनटेक सेक्टर के लिए आरबीआई के समर्थन के बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए।”
दास ने यह भी कहा कि भारत ने डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाई है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब मॉरीशस और श्रीलंका की तेज भुगतान प्रणाली के साथ यूपीआई का लिंकेज लॉन्च किया है।
दास ने कहा कि श्रीलंका तीसरा सार्क देश है जिसके साथ भारत ने यूपीआई में ऐसी व्यवस्था की है, अन्य देश नेपाल और भूटान हैं। मॉरीशस इस तरह की व्यवस्था पर सहमत होने वाला पहला अफ्रीकी देश है।
उन्होंने कहा, “डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर अन्य देशों के साथ सहयोग करना हमारा प्रयास है।”
इस बीच, आरबीआई के बोर्ड के सदस्यों ने एक अच्छा अंतरिम बजट पेश करने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को बधाई दी।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि जब सरकार राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के रास्ते पर चलती है, तो इसका मतलब है कि उधार को एक निश्चित सीमा के अंदर रखा जाता है। कम सरकारी उधारी का मतलब है कि निजी क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बहुत अधिक संसाधन उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि कम उधारी से बांड यील्ड में भी मदद मिलती है।
उन्होंने कहा कि कम सरकारी उधारी का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
उन्होंने कहा, “भारत की आर्थिक गतिविधियों की गति लगातार मजबूत बनी हुई है और इसीलिए हमने पिछले हफ्ते कहा था कि वित्त वर्ष 2025 में जीडीपी वृद्धि दर 7 फीसदी रह सकती है।”
दास ने कहा कि सरकार को इस पर निर्णय लेना है कि देश के लिए कर्ज का स्थायी स्तर क्या है। उन्होंने कहा कि अब भी विकसित अर्थव्यवस्थाओं का ऋण-जीडीपी अनुपात विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं अधिक है।
–आईएएनएस
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