राम मंदिर: उद्धार की प्रतीक्षा में 22 वर्षों से ताले में बंद शिलाएं

राम मंदिर: उद्धार की प्रतीक्षा में 22 वर्षों से ताले में बंद शिलाएं

राममंदिर आंदोलन के अगुवा महंत रामचंद्र दास परमहंस ने मंदिर के लिए जिस पहली रामशिला को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दूत शत्रुघ्न सिंह को प्रतीक रूप में सौंपा था, वह शिला आज भी ट्रेजरी के दोहरे ताले में बंद है। 22 वर्षों से ताले में बंद शिलाएं उद्धार की प्रतीक्षा में है।

राममंदिर का निर्माण कार्य द्रुत गति से चल रहा है। आंदोलन से लेकर अब तक आईं हजारों शिलाओं का उपयोग मंदिर के किसी न किसी हिस्से में हो चुका है या फिर होने वाला है। पर, कुछ शिलाएं ऐसी भी हैं, जिन्हें अहिल्या मोचन (उद्धार) की तरह इंतजार है…कब प्रभु कृपा होगी, जब उनका भी उपयोग मंदिर के किसी न किसी कोने में होगा।

इनमें वह खास शिला भी है, जिसे 2002 में प्रतीकात्मक रूप से पूजन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दूत को सौंपा गया था। यह शिला ट्रेजरी के डबल ताले में बंद है। इसके साथ ही नेपाल, कर्नाटक और राजस्थान समेत अन्य स्थानों से आईं कई शिलाओं का उपयोग भी अब तक तय नहीं हुआ है। उद्धार की लालसा में पड़ीं शिलाओं की कहानी बता रहे हैं महेंद्र तिवारी और राहुल दुबे…

अटल के दूत को सौंपी शिला 22 वर्षों से ताले में
राममंदिर आंदोलन के अगुवा महंत रामचंद्र दास परमहंस ने मंदिर के लिए जिस पहली रामशिला को तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के दूत शत्रुघ्न सिंह को प्रतीक रूप में सौंपा था, वह शिला आज भी ट्रेजरी के दोहरे ताले में बंद है। 6 दिसंबर, 1992 को ढांचा गिरने बाद विहिप व सहयोगी संगठनों ने मंदिर निर्माण की गतिविधियां तेज कर दीं।

अयोध्या के मंडलायुक्त रहे सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अनिल कुमार गुप्ता बताते हैं कि 2002 में अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए अटल जी ने केंद्र में अयोध्या सेल के वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुस्लिम संगठनों के नेताओं से बातचीत के लिए नियुक्त किया था। इसी बीच विश्व हिंदू परिषद ने 15 मार्च 2002 से राम मंदिर निर्माण की घोषणा कर दी। प्रकरण सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

सर्वोच्च अदालत ने आदेश दिया कि किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहीत जमीन पर शिलापूजन की अनुमति नहीं होगी। यथास्थिति रखें। केंद्र सरकार ने कोर्ट को आदेश पालन का वचन दिया और विहिप से वार्ता कर प्रतीकात्मक रूप में शिलापूजन संपन्न कराने पर सहमति बना ली। गुप्ता बताते हैं कि शत्रुघ्न सिंह पीएम के विशेष दूत के रूप में अयोध्या आए।

हनुमानगढ़ी के अखाड़े में महंत रामचंद्र दास परमहंस व विहिप के तत्कालीन कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल ने सैकड़ों कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में शत्रुघ्न सिंह को रामशिला भेंट की। शत्रुघ्न सिंह ने उस शिला को ट्रेजरी के डबल लॉक में रखवा दिया था। उस शिला का उपयोग भी मंदिर निर्माण में होना चाहिए। पर, मुझे नहीं पता कि इस समय उसकी क्या स्थिति है?

केंद्र सरकार की अनुमति का इंतजार
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट डबल लॉक में बंद सोने-चांदी के कुछ सामान ले गया है। शिला अब भी सुरक्षित है। इस शिला को केंद्र सरकार के प्रतिनिधि ने ट्रेजरी के डबल लॉक में सुरक्षित रखने के निर्देश के साथ दिया था। अब इसको केंद्र सरकार की अनुमति के बाद दे दिया जाएगा। – नितीश कुमार, डीएम, अयोध्या

नेपाल, राजस्थान व कर्नाटक से आईं शिलाओं पर शुरू नहीं हो सका काम
नेपाल के कालीगंडकी तट से पिछले साल दो बड़ी शिलाएं आईं। इनका वजन 14 और 27 टन है। इन शिलाओं को जनकपुर के जानकी मंदिर से भेजा गया था। उस समय पूरे देश में उनका पूजन और सत्कार हुआ। चर्चा रही कि इन्हीं शिलाओं से श्रीराम और बाकी भाइयों की मूर्तियां तैयार होंगी। अब रामलला की मूर्ति तैयार हो गई है। यह शिला कार्यशाला के समीप रामसेवकपुरम में संरक्षित कर रख दी गई हैं। ट्रस्ट महासचिव चंपत राय से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि अभी कुछ तय नहीं हो सका है। इस सवाल पर कि क्या इन्हें नेपाल वापस किया जाएगा, चंपत राय कहते हैं कि नहीं, पूरा सम्मान होगा। मगर अभी कुछ तय नहीं।

कर्नाटक से तीन श्याम शिलाएं आई हैं। ये भी यहीं संरक्षित हैं। राजस्थान से भी तीन शिलाएं आई हैं। कार्यशाला में काम में लगे एक व्यक्ति की माने तो नेपाल से आई दोनों शिलाओं को राममूर्ति के लिए उचित नहीं माना गया। कुछ तकनीकी जांच के बाद मूर्तिकारों ने कहा था कि इस शिला से मूर्ति तराशना संभव नहीं है। चर्चा यह भी रही कि कुछ संतों ने कहा कि कालीनदी की चट्टानों को तोड़ा नहीं जाना चाहिए, क्योंिक वे शालिग्राम के बराबर हैं।

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