भोजन में प्रयुक्त प्रिजर्वेटिव का आंत के माइक्रोबायोम पर पड़ता है बुरा असर: शोध

भोजन में प्रयुक्त प्रिजर्वेटिव का आंत के माइक्रोबायोम पर पड़ता है बुरा असर: शोध

सैन फ्रांसिस्को, 3 फरवरी (आईएएनएस)। एक शोध से यह बात सामने आई है कि भोजन में उपयोग किए जाने वाले सामान्य प्रिजर्वेटिव का आंत के माइक्रोबायोम (मानव पाचन तंत्र से जुड़े रोगाणु) पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ता है।

एसीएस केमिकल बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, भोजन में रोगजनकों को मारने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एक सामान्य प्रिजर्वेटिव की जांच से पता चला है कि इसका लाभकारी बैक्टीरिया पर भी प्रभाव पड़ता है जिससे आंत के माइक्रोबायोम का संतुलन खतरे में पड़ जाता है।

खाद्य निर्माता अक्सर खाद्य उत्पादों को ताजा बनाए रखने के लिए उनमें प्रिजर्वेटिव मिलाते हैं। इन प्रिजर्वेटिव्स का प्राथमिक उद्देश्य उन रोगाणुओं को मारना है जो भोजन को खराब करने और सड़ाते हैं।

शोध में कहा गया है, ”बैक्टीरिया माइक्रोबियल प्रतिस्पर्धियों को मारने के लिए बैक्टीरियोसिन्स नामक रसायन बनाते हैं। ये रसायन भोजन में संभावित खतरनाक रोगजनकों को मारकर प्राकृतिक संरक्षक के रूप में काम कर सकते हैं। लैंथिपेप्टाइड्स विशेष रूप से शक्तिशाली रोगाणुरोधी गुणों वाले बैक्टीरियोसिन का एक वर्ग है जिसका व्यापक रूप से खाद्य उद्योग द्वारा उपयोग किया जाता है और इसे लैंटीबायोटिक्स के रूप में जाना जाता है।”

शिकागो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पाया कि लैंटीबायोटिक्स के सबसे आम वर्गों में से एक में रोगजनकों और हमें स्वस्थ रखने वाले कमेंसल आंत बैक्टीरिया दोनों के खिलाफ शक्तिशाली प्रभाव होते हैं।

निसिन एक लोकप्रिय लैंटीबायोटिक है जो बीयर से लेकर सॉसेज, और डिपिंग सॉस तक विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में पाया जाता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह गायों की स्तन ग्रंथियों में रहने वाले बैक्टीरिया द्वारा निर्मित होता है, लेकिन मानव आंत में सूक्ष्मजीव भी इसी तरह के लैंटीबायोटिक्स का उत्पादन करते हैं।

पीएचडी,पोस्टडॉक्टरल विद्वान जेनरुन ‘जेरी’ झांग ने कहा कि ‘निसिन’ एक प्रकार का एंटीबायोटिक है जिसे लंबे समय से हमारे भोजन को सही रखनेे के लिए उपयोग किया जाता है। लेकिन यह हमारे आंत रोगाणुओं को कैसे प्रभावित कर सकता है इसका अभी अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है।

उन्होंने कहा, “भले ही यह हमारे भाेेेजन को लंबे समय तक सही रखने में मदद कर सकता है, लेकिन यह हमारे मानव आंत के रोगाणुओं पर भी अधिक प्रभाव डाल सकता है।”

झांग ने अपनी टीम के साथ मानव आंत के बैक्टीरिया जीनोम के एक सार्वजनिक डेटाबेस की जांच की और छह अलग-अलग आंत-व्युत्पन्न लैंटीबायोटिक्स के उत्पादन के लिए जीन की पहचान की, जो निसिन से काफी मिलते-जुलते थे, जिनमें से चार नए थे।

शोधकर्ताओं ने पाया कि हालांकि विभिन्न लैंटीबायोटिक्स के अलग-अलग प्रभाव थे, लेकिन वे सभी रोगजनकों और कमेंसल बैक्टीरिया को मार देते थे।

झांग ने कहा, “यह अध्ययन यह दिखाने वाले पहले अध्ययनों में से एक है कि आंत के कमेंसल लैंटीबायोटिक्स के प्रति संवेदनशील होते हैं, और कभी-कभी रोगजनकों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं।”

उन्होंने कहा, “वर्तमान में भोजन में मौजूद लैंटीबायोटिक्स के स्तर को देखते हुए, यह बहुत संभव है कि वे हमारे पेट के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाल सकते हैं।”

–आईएएनएस

एमकेएस/एकेजे

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