‘असंभव को संभव’ करने वाले अन्नदाताओं को पीएम मोदी ने किया सलाम, हैरान करने वाली सुनाई कई दास्तान

नई दिल्ली, 27 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 121वें एपिसोड को संबोधित किया। पीएम ने कार्यक्रम में देश भर के उन तमाम अन्नदाताओं का जिक्र किया, जिन्होंने अपनी खेती के माध्यम से ‘असंभव को संभव’ कर दिखाया। इस सूची में कर्नाटक, राजस्थान के साथ ही अन्य राज्यों के किसानों का भी जिक्र है।
‘जहां चाह-वहां राह’ का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कर्नाटक में सेब उगाने वाले, हिमाचल प्रदेश की सांगला घाटी में केसर उगाने वाले किसानों के साथ ही दक्षिण भारत और राजस्थान में लीची का उत्पादन करने वाले किसानों का भी जिक्र किया।
प्रधानमंत्री ने कहा, “साथियों, एक पुरानी कहावत है ‘जहां चाह-वहां राह’, जब हम कुछ नया करने की ठान लेते हैं, तो मंजिल भी जरूर मिलती है। आपने पहाड़ों में उगने वाले सेब तो खूब खाए होंगे। लेकिन, मैं पूछूं कि क्या आपने कर्नाटक के सेब का स्वाद चखा है? तो आप हैरान हो जाएंगे। आमतौर पर हम समझते हैं कि सेब की पैदावार पहाड़ों में ही होती है लेकिन कर्नाटक के बागलकोट में रहने वाले श्री शैल तेली जी ने मैदानों में सेब उगा दिया है, उनके कुलाली गांव में 35 डिग्री से ज्यादा तापमान में भी सेब के पेड़ फल देने लगे हैं।“
पीएम मोदी ने आगे बताया, “श्री शैल तेली को खेती का शौक था, तो उन्होंने सेब की खेती को भी आजमाने की कोशिश की और उन्हें इसमें सफलता भी मिल गई। आज उनके लगाए सेब के पेड़ों पर काफी मात्रा में सेब उगते हैं, जिसे बेचने से उन्हें अच्छी कमाई भी हो रही है।“ ‘मन की बात’ में पीएम ने आगे और भी किसानों का जिक्र किया।
उन्होंने बताया, “साथियों, अब जब सेबों की चर्चा हो रही है, तो आपने किन्नौरी सेब का नाम जरूर सुना होगा। सेब के लिए मशहूर किन्नौर में केसर का उत्पादन होने लगा है। आमतौर पर हिमाचल में केसर की खेती कम ही होती थी, लेकिन अब किन्नौर की खूबसूरत सांगला घाटी में भी केसर की खेती होने लगी है। ऐसा ही एक उदाहरण केरल के वायनाड का है, यहां भी केसर उगाने में सफलता मिली है और वायनाड में ये केसर किसी खेत या मिट्टी में नहीं बल्कि एरोपोनिक्स टेक्निक से उगाए जा रहे हैं। कुछ ऐसा ही हैरत भरा काम लीची की पैदावार के साथ हुआ है। हम तो सुनते आ रहे थे कि लीची बिहार, पश्चिम बंगाल या झारखंड में ही उगती है लेकिन अब लीची का उत्पादन दक्षिण भारत और राजस्थान में भी हो रहा है।“
उन्होंने आगे बताया, “तमिलनाडु के थिरु वीरा अरासु, कॉफी की खेती करते थे। कोडईकनाल में उन्होंने लीची के पेड़ लगाए और उनकी सात साल की मेहनत के बाद अब उन पेड़ों पर फल आने लगे। लीची उगाने में मिली सफलता ने आसपास के दूसरे किसानों को भी प्रेरित किया है। राजस्थान में जितेंद्र सिंह राणावत को लीची उगाने में सफलता मिली है। ये सभी उदाहरण बहुत प्रेरित करने वाले हैं। अगर हम कुछ नया करने का इरादा कर लें और मुश्किलों के बावजूद डटे रहें, तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है।“
–आईएएनएस
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