लंबे समय तक कोविड से पीडि़त रहने वाले मरीजों को सालभर पाचन संबंधी बीमारियों का खतरा : शोध

लंबे समय तक कोविड से पीडि़त रहने वाले मरीजों को सालभर पाचन संबंधी बीमारियों का खतरा : शोध

बीजिंग, 14 जनवरी (आईएएनएस)। लंबे समय तक कोविड से पीडि़त रहने वाले रोगियों में एक वर्ष तक की अवधि के लिए पाचन संबंधी बीमारियों का खतरा अधिक रहता है। एक शोध में यह बात सामने आई है।

बीएमसी मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित शोध से पता चला है कि जिन लोगों को गंभीर और हल्के दोनों तरह के कोविड-19 संक्रमण का सामना करना पड़ा, वे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) डिसफंक्शन, पेप्टिक अल्सर, गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी), पित्ताशय की थैली रोग, गैर-अल्कोहल यकृत रोग और अग्नाशय रोग जैसे पाचन रोगों से पीड़ित थे।

शोधपत्र में कहा गया है, “हमारा अध्ययन कोविड-19 और पाचन तंत्र विकारों के दीर्घकालिक जोखिम के बीच संबंध में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। कोविड-19 रोगियों में पाचन संबंधी रोग विकसित होने का खतरा अधिक होता है।”

शोधकर्ताओं ने कहा, ”पुन: संक्रमण के मामलों में कोविड-19 की गंभीरता के साथ जोखिमों में चरणबद्ध वृद्धि देखी गई और एक वर्ष बाद भी यह जारी रही। यह शोध समय के साथ कोविड-19 रोगियों में पाचन संबंधी परिणामों के अलग-अलग जोखिमों को समझने की जरूरत पर रोशनी डालता है, विशेष रूप से उन लोगों में जिन्होंने पुन: संक्रमण का अनुभव किया है।”

अध्ययन में चीन में दक्षिणी मेडिकल विश्‍वविद्यालय और अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया विश्‍वविद्यालय लॉस एंजिल्स की टीम ने यूके में संक्रमण (112,311) के 30 या अधिक दिनों के बाद एक समकालीन तुलना समूह (359,671), और पुन: संक्रमण से बचे (370,979) लोगों के बीच पाचन रोगों की दर की तुलना की।

प्रतिभागी 37 से 73 वर्ष की आयु के वयस्क थे और कोविड-19 से बचे वह लोग जो जनवरी 2020 से अक्टूबर 2022 तक संक्रमित हुए थे। समसामयिक समूह उन लोगों से बना था जो कोविड-19 समूह की भर्ती के समय ही रहते थे और ऐतिहासिक समूह जनवरी 2017 से अक्टूबर 2019 तक के डेटा वाले असंक्रमित प्रतिभागियों से बना था।

कोविड-19 से बचे लोगों में जीआई डिसफंक्शन के लिए जोखिम 38 प्रतिशत, पेप्टिक अल्सर के लिए 23 प्रतिशत, जीईआरडी के लिए 41 प्रतिशत, पित्ताशय की बीमारी के लिए 21 प्रतिशत, गंभीर लिवर की बीमारी के लिए 35 प्रतिशत, गैर-अल्कोहल लिवर की बीमारी रोग के लिए 27 प्रतिशत और अग्नाशय रोग के लिए यह खतरा 6 प्रतिशत है।

जीईआरडी का खतरा कोविड-19 की गंभीरता के साथ चरणबद्ध तरीके से बढ़ा और निदान के एक साल बाद भी जीईआरडी और जीआई डिसफंक्शन का खतरा बना रहा। दोबारा संक्रमित प्रतिभागियों में पैंक्रियाटाइटिस रोग होने की संभावना अधिक थी।

इसके अलावा, जीआई डिसफंक्शन और जीईआरडी के जोखिम एक साल के फॉलो-अप के बाद भी कम नहीं हुए, जिससे कोविड के दीर्घकालिक प्रभाव और पाचन विकारों के जोखिमों का पता चला।

शोधकर्ताओं ने बताया कि बढ़ते जोखिमों का कारण गंभीर तीव्र श्‍वसन सिंड्रोम कोरोना वायरस 2 स्पाइक प्रोटीन और पाचन तंत्र में एंजियोटेंसिन परिवर्तित एंजाइम 2 रिसेप्टर्स की अभिव्यक्ति या वायरस से जुड़ी सूजन के बीच मल-मौखिक वायरल ट्रांसमिशन इंटरैक्शन हो सकता है।

उन्होंने लिखा, “यह सुनिश्चित करने के महत्व को रेखांकित करता है कि स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियां हल्के मामलों वाली इस आबादी के साथ-साथ कोविड-19 की गंभीरता की अलग-अलग डिग्री के लिए उचित देखभाल प्रदान करने के लिए तैयार हैं।”

–आईएएनएस

एमकेएस/एसजीके/

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