पंडित हरिशंकर शर्मा: जिनकी लेखनी ने समाज की कुरीतियों और रूढ़ियों पर किया तीखा प्रहार


नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)। हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के प्रमुख स्तंभों की बात होती है तो पंडित हरिशंकर शर्मा का जिक्र होना लाजिमी है। पंडित शर्मा एक मशहूर साहित्यकार, कवि, लेखक, व्यंग्यकार और पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की कुरीतियों और रूढ़ियों पर तीखा प्रहार किया। उनकी लेखनी में हास्य और व्यंग्य का अनूठा समन्वय था, जो न केवल मनोरंजक था, बल्कि समाज को जागरूक करने वाला भी था।

19 अगस्त 1891 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में पैदा हुए पंडित हरिशंकर के पिता पंडित नाथूराम शंकर शर्मा हिंदी के प्रसिद्ध कवि थे। उन्हें बचपन से ही साहित्यिक माहौल मिला और इसी कारण उनकी साहित्य में रुचि काफी बढ़ी।

हरिशंकर शर्मा की शिक्षा किसी स्कूल या कॉलेज में नहीं बल्कि घर पर ही हुई। उन्होंने उर्दू, फारसी, गुजराती और मराठी जैसी भाषाओं का गहन अध्ययन किया। आगे चलकर उन्होंने हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में हाथ आजमाया। वह हिंदी के उन चुनिंदा लेखकों में से एक थे, जिन्होंने ‘आर्यमित्र’, ‘भाग्योदय’, ‘आर्य संदेश’, ‘निराला’, ‘साधना’, ‘प्रभाकर’, ‘ज्ञानगंगा’ और ‘दैनिक दिग्विजय’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं का भी संपादन किया।

उर्दू, फारसी, गुजराती और मराठी जैसी भाषाओं में महारत ने उनकी रचनाओं को और समृद्ध किया। शर्मा ने ‘रत्नाकर’, ‘अभिनव हिंदी कोश’, ‘हिंदुस्तानी कोश’, ‘रामराज्य’, ‘पिंजरा पोल’, ‘चिड़ियाघर’, ‘घास-पात’, ‘महर्षि महिमा’, ‘वीरांगना वैभव’ और ‘हिंदी साहित्य परिचय’ जैसी कृतियां भी लिखीं।

‘पद्मश्री’ और ‘देव पुरस्कार’ से सम्मानित हरिशंकर शर्मा उन गिने-चुने लेखकों में से थे, जिन्होंने हास्य और व्यंग्य को साहित्यिक स्तर पर स्थापित किया। उनकी रचनाएं केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं थीं, बल्कि समाज की बुराइयों पर करारी चोट करती थीं।

लेखनी के अलावा, हरिशंकर शर्मा का झुकाव स्वतंत्रता संग्राम की तरफ भी था। उन्होंने आजादी की लड़ाई में भी हिस्सा लिया। हरिशंकर शर्मा का निधन 9 मार्च, 1968 को हुआ। उनकी मृत्यु हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के लिए एक बड़ी क्षति थी।

पंडित हरिशंकर शर्मा हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के एक ऐसे सितारे थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं और संपादन के माध्यम से समाज को नई दिशा दी। उनकी लेखनी में हास्य, व्यंग्य और सामाजिक चेतना का अद्भुत समन्वय था, जो आज भी प्रासंगिक है। उनकी कृतियां और विचार हिंदी साहित्य के अमूल्य धरोहर हैं।

–आईएएनएस

एफएम/डीएससी


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