पद्मश्री विजेता आरके लालहुना का 87 वर्ष की आयु में निधन


लुंगलेई, 25 अक्टूबर (आईएएनएस)। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित आरके लालहुना का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया। भारत सरकार ने 1991 में मिजो साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। वे इस प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त करने वाले 7वें मिजो थे।

1938 में लुंगलेई में जन्मे लालहुना ने अपना जीवन शिक्षा और साहित्य को समर्पित किया। वे साल 2008 में प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हुए। एक विपुल लेखक के रूप में उन्होंने 35 से अधिक पुस्तकें, 300 से ज्यादा लेख, 45 गीत और तीन नाटक लिखे। उनकी पहली पुस्तक, थ्लानरावक्पा खुआंगचावी (1981), एक हास्य कृति थी, जो आज भी पाठकों के बीच लोकप्रिय है। उनकी अन्य प्रमुख रचनाओं में जोरम थ्लिर्ना, हनमथ्लिर, और मिजो एथिक्स एंड वैल्यूज शामिल हैं, जिनमें मिजो समाज, भाषा और संस्कृति की गहरी पड़ताल की गई है। उनके लेखन में नैतिकता और सांस्कृतिक चिंतन का अनूठा संगम था, जिसने उन्हें पाठकों और विद्वानों के लिए प्रेरणा स्रोत बनाया।

लालहुना को उनके साहित्यिक योगदान के लिए 40 से अधिक पुरस्कार मिले। उनकी रचनाएं मिजो समाज की पहचान, मूल्यों और बौद्धिक विमर्श को समृद्ध करती रहीं। उनके नाटक और गीत भी मिजो संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

उनके निधन से मिजोरम के साहित्यिक समुदाय में शोक की लहर है। मिजो साहित्य अकादमी के एक सदस्य ने कहा, “लालहुना का जाना हमारे लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी रचनाएं हमेशा हमें प्रेरित करती रहेंगी।” उनके परिवार, दोस्तों और प्रशंसकों ने उनके साहित्यिक और शैक्षिक योगदान को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी।

लालहुना की रचनाएं मिजो साहित्य और संस्कृति को नई पीढ़ियों तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। उनका जीवन और कार्य मिजोरम के लिए गर्व का विषय बना रहेगा।

–आईएएनएस

एसएचके/डीकेपी


Show More
Back to top button