'समानता, मुक्ति और सशक्तिकरण की ओर'; महिलाओं पर राष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी कर रही ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी

सोनीपत (हरियाणा), 9 मार्च (आईएएनएस)। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 के अवसर पर ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी अपने सोनीपत स्थित परिसर में ‘समानता, मुक्ति और सशक्तिकरण की ओर’ शीर्षक से महिलाओं पर केंद्रित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रही है।
गत 8 मार्च से शुरू हुआ यह सम्मेलन 10 मार्च तक चलेगा। यह सम्मेलन महिलाओं और लैंगिक मुद्दों पर विभिन्न और प्रसिद्ध व्यक्तियों को एक मंच पर लाता है, जो शिक्षा, उद्योग, सिविल सोसायटी, सार्वजनिक प्रशासन, मीडिया, कला और साहित्य जैसे क्षेत्रों से जुड़े हैं।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुईं सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की वर्तमान अध्यक्ष, न्यायमूर्ति रंजना पी. देसाई ने कहा, “भारत के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वे उन प्रथाओं को त्याग दें जो महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं। सुप्रीम कोर्ट, जिसका मैं भी कभी हिस्सा थी, वहां कई ऐसे फैसले आए हैं जिन्होंने महिलाओं के समानता के अधिकार को लागू किया। ये फैसले महिलाओं के हक में हैं। इसके अलावा कई कानून भी हैं, जैसे महिलाओं के समानता का अधिकार। इसलिए, एक मजबूत कानूनी ढांचा मौजूद है जो महिलाओं को उनके समानता के अधिकार को लागू करने में मदद कर सकता है।”
उन्होंने कहा, “हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि भारत में महिलाएं समाज द्वारा लगाए गए इन प्रतिबंधों का शिकार थीं। ये प्रतिबंध सांस्कृतिक विचारधारा के लंबे इतिहास का परिणाम थे। पहले महिलाएं पुरुषों पर निर्भर और कमजोर थीं। शिक्षा की कमी ने उनकी निर्भरता बढ़ाई। आज महिलाएं हर क्षेत्र में हैं। वे न्यायाधीश हैं, वकील हैं, उद्यमी हैं, मुख्यमंत्री हैं, और जल्द ही पहली महिला सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस, और अंतरिक्ष यात्री भी होंगी! हमारे यहां दक्षिण एशियाई देशों में महिला प्रधानमंत्री रही हैं। लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि हमारे गांवों और छोटे इलाकों में जो महिलाएं हैं, उन्हें भी ये मौके मिले। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें भी अवसर दें।”
जिंदल फाउंडेशन की चेयरपर्सन शालू जिंदल ने ‘समानता, मुक्ति और सशक्तिकरण’ विषय पर उद्घाटन भाषण देते हुए कहा, “हमें देश के इतिहास, अर्थव्यवस्था और समाज में महिलाओं के योगदान को पहचानना और उसका जश्न मनाना चाहिए, जिसकी वजह से हम समानता, मुक्ति और सशक्तिकरण का सपना देख सकते हैं। स्वतंत्रता संग्राम केवल औपनिवेशिक शासन से आजादी की लड़ाई नहीं थी। यह महिलाओं की आवाजों को पहचानने और यह साबित करने की लड़ाई भी थी कि महिलाएं राष्ट्र निर्माण में बराबरी की साझेदार हैं। भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानियों की धरोहर हर उस युवा लड़की में जीवित है, जो सपने देखने की हिम्मत रखती है, हर उस महिला में जो सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देती है, और हर उस उद्यमी में जो संभावनाओं से भरा भविष्य बनाना चाहती है।”
उन्होंने कहा, “समानता, सशक्तिकरण और मुक्ति सिर्फ विचार नहीं हैं, बल्कि देश की हर महिला के लिए वास्तविकता है। हमें उन अग्रणी महिलाओं को भी मान्यता देनी चाहिए जिन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में योगदान दिया। आज के भारत में महिलाएं कंपनियों का नेतृत्व कर रही हैं, वरिष्ठ सरकारी पदों पर सेवा दे रही हैं, नवाचार को बढ़ावा दे रही हैं, अदालतों में बहस कर रही हैं और सामाजिक परिवर्तन में क्रांति ला रही हैं। विज्ञान, व्यापार, खेल, कानून, नीति निर्माण और कला में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी हमारे देश के बदलते परिदृश्य का प्रमाण है। हालांकि, अब भी बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ है, और चुनौतियां बनी हुई हैं। महिलाओं की श्रमिक शक्ति में भागीदारी अब भी उसकी वास्तविक क्षमता से बहुत कम है। वेतन में लिंग भेद और नेतृत्व में भर्तियों में भेदभाव अब भी मौजूद हैं। महिलाओं को केवल विविधता और समावेशिता कोटा को पूरा करने के लिए प्लेसहोल्डर के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। हमें ऐसे समावेशी स्थान बनाने होंगे, जहां महिलाओं के लिए दरवाजे खुले हों, ताकि वे अपने पेशेवर लक्ष्यों के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन को भी संतुलित कर सकें।”
इंडियाना यूनिवर्सिटी के मॉरर स्कूल ऑफ लॉ की डीन और हरमन बी. वेल्स एंडोव्ड प्रोफेसर तथा कार्यक्रम की सम्मानित अतिथि प्रो. क्रिस्टियाना ओचोआ ने अपने विशेष संबोधन में कहा, “शिक्षा तक पहुंच बढ़ने, महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में भागीदारी बढ़ने और आर्थिक अवसरों के विकास ने दुनिया भर में महिलाओं की स्थिति को पूरी तरह बदल दिया है। अमेरिका में पिछली एक सदी में महिलाओं की उच्च शिक्षा तक पहुंच बढ़ने से वे राजनीति, व्यवसाय और सिविल सोसायटी में नेतृत्व की भूमिकाओं में आगे आई हैं। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, लड़कियों की एक साल की अतिरिक्त शिक्षा से उनकी भविष्य की कमाई 20 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। जिन महिलाओं के पास अतिरिक्त डिग्रियां हैं, वे हाई स्कूल डिप्लोमा वाली महिलाओं की तुलना में अपने जीवनकाल में 74 प्रतिशत अधिक कमाती हैं।”
उन्होंने कहा, “भारत में वरिष्ठ प्रबंधन भूमिकाओं में महिलाओं का प्रतिशत वैश्विक औसत से अधिक होकर 36 प्रतिशत तक पहुंच गया है, 32 प्रतिशत भारतीय महिला उद्यमी अब स्टार्ट-अप का नेतृत्व कर रही हैं, पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान उद्योगों में बाधाएं ला रही हैं और देश को तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने में योगदान दे रही हैं। हमारे दोनों देशों के बीच समानता एक बड़ी सच्चाई को दर्शाती है। जब महिलाओं को शिक्षा मिलती है, तो वे राजनीति, व्यवसाय और समाज में बदलाव लाने वाली बन जाती हैं। चाहे अमेरिका हो, भारत या दुनिया का कोई और देश, शिक्षा वह आधारशिला है जिस पर समानता, मुक्ति और सशक्तिकरण का निर्माण होता है।”
ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) सी. राज कुमार ने लैंगिक समानता के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1977 में आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का वैश्विक संदर्भ और महत्व अब विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं दोनों में नया रूप ले चुका है। चार वैश्विक संयुक्त राष्ट्र महिला सम्मेलनों से मजबूत हुआ बढ़ता अंतरराष्ट्रीय महिला आंदोलन इस दिवस को महिलाओं के अधिकारों और राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में उनकी भागीदारी के लिए समर्थन जुटाने का एक केंद्र बिंदु बना रहा है।”
उन्होंने कहा, “भारत ने भी महिलाओं के लिए समानता, समान अवसर, आर्थिक और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। लिंग आधारित भेदभाव घर, कार्यस्थल, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और राजनीतिक निर्णयों जैसे क्षेत्रों में व्यापक रूप से मौजूद हैं। जैसे-जैसे दुनिया भू-राजनीतिक संकटों, शक्ति असंतुलन, गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों और जलवायु परिवर्तन में उलझती जा रही है, मानवता के लिए सबसे बड़ा समाधान महिलाओं के सशक्तिकरण और मुक्ति में निवेश करना है। वास्तव में, संयुक्त राष्ट्र की ‘सतत विकास लक्ष्य 2023 की प्रगति’ पर रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘एसडीजी 5 (लैंगिक समानता) को प्राथमिकता नहीं देने की स्थिति में 2030 का सतत विकास एजेंडा खतरे में पड़ जाएगा।’ ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2024 में यह बताया गया है कि पूरी लैंगिक समानता हासिल करने में 134 साल लगेंगे- जो 2030 एजेंडा लक्ष्य से करीब पांच पीढ़ियां आगे है।”
भारत में महिलाएं: समानता, मुक्ति और सशक्तिकरण पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन विभिन्न आवाजों, अनुभवों और अंतर्दृष्टि को एक साथ लाने की भावना से किया जा रहा है, ताकि एक ऐसा मंच तैयार किया जा सके जो सार्थक परिवर्तन लाने में उत्प्रेरक बन सके।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 की थीम “कार्रवाई में तेजी” के आधार पर, यह राष्ट्रीय सम्मेलन लैंगिक न्याय की अब तक की यात्रा पर विचार करेगा और आगे के काम के लिए रास्ते तैयार करेगा। सम्मेलन न केवल महिलाओं के सामने आने वाली व्यवस्थागत और संरचनात्मक चुनौतियों की जांच करेगा, बल्कि इन चुनौतियों को कम करने के लिए ठोस और व्यावहारिक समाधानों पर भी ध्यान देगा। विश्वविद्यालय ने कहा कि लैंगिक असमानता को बनाए रखने वाली संरचनाओं को तोड़ने और समावेशी, सहायक और निष्पक्ष व्यवस्थाएं बनाने के लिए तत्काल कदम उठाना जरूरी है। यह एक ऐसा मिशन है जिसमें सभी के संयुक्त प्रयास, एकजुटता और गठबंधन की जरूरत है, जो विभिन्न आवाजों और दृष्टिकोणों को एक साथ लाए। सार्थक बदलाव लाने और उन लैंगिक-विविध लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए एकजुटता और व्यापक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण हैं, जिनके अनुभव अक्सर मुख्य चर्चा से बाहर रह जाते हैं।
इस उद्देश्य से, राजनेता और लोकतांत्रिक प्रतिनिधि, अग्रणी महिला विशेषज्ञ, मीडिया हस्तियां, वकील और कानूनी दिग्गज तथा कई अन्य लोग पैनल चर्चा, फायरसाइड चैट और मुख्य भाषणों के लिए जेजीयू में एकत्र होंगे।
इनमें राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, डॉ. फौजिया खान, रेखा शर्मा और डॉ. सस्मित पात्रा के साथ राजनीति और शासन पर गहन चर्चा शामिल है। उद्यमिता में लैंगिक समानता पर एक सत्र में स्प्लेंडर लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स की मुख्य परिचालन अधिकारी बेनू सहगल; इंटरनेशनल इनक्लूजन अलायंस की मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रुति स्वरूप; और भारत अफ्रीका व्यापार परिषद की मानद व्यापार आयुक्त गौरी वत्स शामिल होंगी।
जेएसपी ग्रुप एडवाइजरी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की सलाहकार और ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी की गवर्निंग काउंसिल की सदस्य यशस्विनी जिंदल ‘भविष्य का निर्माण: बदलती दुनिया में महिलाएं, नेतृत्व और विरासत’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करेंगी।
शिक्षा के प्रभाव पर चर्चा और प्रदर्शन के लिए ‘शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण: चुनौतियां, सर्वोत्तम अभ्यास और भविष्य की राह’ शीर्षक वाले सत्र में डीएलएफ लिमिटेड की निदेशक और डीएलएफ सीएसआर समिति की चेयरपर्सन पिया सिंह; प्रेसिडियम स्कूल की प्रिंसिपल मनविंदर कौर; वसंत वैली स्कूल की प्रिंसिपल रेखा कृष्णन; और सैंक्टा मारिया इंटरनेशनल स्कूल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी. महेंद्र रेड्डी शामिल होंगे। देश में शहरी और ग्रामीण विभाजन को संबोधित करने के लिए, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ एक विशेष सत्र भी आयोजित किया जाएगा।
उच्च शिक्षा और महिलाओं की भूमिका पर सत्र में, चितकारा विश्वविद्यालय की प्रो-चांसलर डॉ. मधु चितकारा; योजना आयोग की पूर्व सदस्य सईदा हमीद; शिव नादर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. (डॉ.) अनन्या मुखर्जी; मिरांडा हाउस की प्रिंसिपल प्रो. (डॉ.) बिजयलक्ष्मी नंदा; और प्रो. ओचोआ शिक्षा के महत्व की समीक्षा करेंगी।
सिनेमा और साहित्य जैसी लोकप्रिय संस्कृति को अक्सर समाज और उसकी वास्तविकताओं का दर्पण कहा जाता है। इस उद्देश्य से यूटीवी के संस्थापक और अपग्रेड के निर्माता और सह-संस्थापक जानेमाने फिल्म निर्माता रोनी स्क्रूवाला के साथ “सिनेमा में महिलाएं” विषय पर एक विशेष सत्र आयोजित किया जाएगा।
भरतनाट्यम नृत्यांगना और गायिका गीता चंद्रन; राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पूर्व निदेशक कीर्ति जैन; कवि, आलोचक और शिक्षाविद प्रो. सुकृता पॉल कुमार; और संरक्षण वास्तुकार तथा विरासत प्रबंधन विशेषज्ञ गुरमीत संघ राय ‘साहित्य और कला में महिलाएं: अतीत, वर्तमान और भविष्य’ पर चर्चा करेंगी।
तीन दिवसीय सम्मेलन का समापन केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल द्वारा ‘समावेशी भविष्य और लैंगिक न्यायपूर्ण विश्व की ओर’ विषय पर मुख्य भाषण के साथ होगा।
विश्वविद्यालय की डीन (दाखिला एवं आउटरीच) प्रोफेसर (डॉ.) उपासना महंत ने परिचय भाषण दिया तथा रजिस्ट्रार प्रोफेसर दबीरू श्रीधर पटनायक ने समापन भाषण दिया।
–आईएएनएस
एफजेड/एकेजे