अब क्लाउड सीडिंग से सुधरेगी हवा की गुणवत्ता, पढ़ें क्या है क्लाउड सीडिंग

अब क्लाउड सीडिंग से सुधरेगी हवा की गुणवत्ता, पढ़ें क्या है क्लाउड सीडिंग

क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया के तहत किसी एयरक्राफ्ट के जरिए आसमान में सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया जाता है। इसके जरिए आर्टिफिशियल बारिश कराई जाती है। हाल ही में महाराष्ट्र के सोलापुर में क्लाउड सीडिंग की गई थी। इसको सूखे और भीषण आग से निपटने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। UAE सरकार आमतौर पर कृत्रिम बारिश प्रक्रिया का इस्तेमाल करती है।

 दिल्ली-एनसीआर समेत देश के कई प्रमुख शहरों में इस समय वायु प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है। इस प्रदूषण के बीच लोगों का सांस लेना भी दूभर हो गया है। ऐसे में सरकार इस प्रदूषण को कम करने के लिए कई कदम उठा रही है, लेकिन कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है।

IIT Kanpur का समाधान

अब इस समस्या से निपटने के लिए आईआईटी कानपुर एक समाधान लेकर आया है। दरअसल, संस्थान ने दिल्ली समेत देश के अन्य राज्यों में बढ़ रहे वायु प्रदूषण के लिए क्लाउड सीडिंग के माध्यम से ‘आर्टिफिशियल बारिश’ का रास्ता पेश किया है। आईआईटी कानपुर इस कृत्रिम बारिश वाली प्रक्रिया के लिए पिछले पांच सालों से काम कर रही है। इतना ही नहीं, संस्थान ने जुलाई में इस प्रक्रिया का सफल टेस्टिंग भी की थी। हालांकि, यह प्रक्रिया कितनी कारगर साबित होगी, इस बात का दावा नहीं किया जा सकता है, लेकिन विकल्प के तौर पर देखा जा सकता है।

क्या है कृत्रिम बारिश?

क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया के तहत किसी एयरक्राफ्ट के जरिए आसमान में सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया जाता है। यह सिल्वर आयोडाइड हवा और आसमान के संपर्क में आने के बाद तेजी से बादल का निर्माण करने लगता है और इन्हीं बादलों के कारण बारिश होती है। दरअसल, सिल्वर आयोडाइड बर्फ की तरह होती है, जिससे बादलों  में पानी की मात्रा बढ़ जाती है और बारिश होती है।

क्लाउड सीडिंग होने के बाद, नवगठित बर्फ के टुकड़े तेजी से बढ़ते हैं और बादलों से वापस पृथ्वी की सतह पर गिरते हैं, जिससे स्नोपैक और स्ट्रीमफ्लो बढ़ जाता है।

किस समय संभव है क्लाउड सीडिंग?

क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन आम तौर पर नवंबर से मई के बीच किया जाता है। सर्दियों के दौरान क्लाउड सीडिंग नहीं हो सकती है, क्योंकि क्लाउड सीडिंग के लिए नमी से भरे बादलों की जरूरत होती है। उपस्थिति की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, क्लाउड सीडिंग ऐसे समय में नहीं होती है, जब उच्च बाढ़ जोखिम वाला समय हो, क्योंकि वह काफी हानिकारक हो सकती है। दरअसल, कई परिस्थितियों में क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल होता है, जैसे किसी क्षेत्र में बहुत सूखा होने और भीषण आग को बुझाने के लिए इस प्रक्रिया को किया जाता है।

भारत के किन क्षेत्रों में हुई क्लाउड सीडिंग?

हाल ही में महाराष्ट्र के सोलापुर में क्लाउड सीडिंग की गई थी। दरअसल, इस प्रक्रिया के जरिए उस जिले में सामान्य से 18 प्रतिशत अधिक वर्षा की गई थी। एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, पुणे के ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटिओरॉलॉजी’ और अन्य संस्थान के वैज्ञानिकों ने पाया कि सोलापुर के 100 वर्ग किलोमीटर में हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग ने बारिश को बढ़ाया है। इससे पहले भी आईआईटी कानपुर के शोधकर्ताओं ने सफल क्लाउड सीडिंग कराई थी।

मालूम हो कि भारत से पहले यह प्रयोग UAE सरकार ने भी किया है, जहां अब आमतौर पर कृत्रिम बारिश की जाती है। साथ ही, आस्ट्रेलिया, चीन, स्पेन, फ्रांस समेत दुनिया के कई देशों में कृत्रिम बारिश की गई थी।

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