केमिस्ट्री का नोबेल पुरस्कार तीन वैज्ञानिकों को, इनमें एक वो भी जो जॉर्डन के रिफ्यूजी कैंप में रहे

नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। सुसुमु कितागावा, रिचर्ड रॉबसन और उमर एम. याघी को रसायन विज्ञान में अभूतपूर्व कार्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गई। ये वैज्ञानिक दुनिया की नामचीन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं और तीनों में सबसे छोटे उमर एम याघी ने तो बचपन जॉर्डन के रिफ्यूजी कैंप में बिताया है।
चारों ओर इन तीन वैज्ञानिकों की उपलब्धियों की चर्चा है, क्योंकि ये आम जिंदगियों से जुड़ी हैं। धातु-कार्बनिक ढांचा (एमओएफ) नामक इन संरचनाओं का उपयोग रेगिस्तानी हवा से पानी इकट्ठा करने, कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने, जहरीली गैसों को संग्रहित करने या रासायनिक प्रतिक्रियाओं को तेज करने में किया जा सकता है।
बात कितागावा की, ये जापान के क्योटो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, जबकि रॉबसन ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न विश्वविद्यालय में और याघी अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में प्रोफेसर हैं।
नोबेल प्रेस कॉन्फ्रेंस में कितागावा ने कहा कि वो इस पुरस्कार को पाकर काफी सम्मानित महसूस कर रहे हैं।
74 वर्षीय जापानी प्रोफेसर ने कहा, “मेरा सपना हवा को इकट्ठा करना और उसे अलग करना है – उदाहरण के लिए, सीओ2 (कार्बन डाइऑक्साइड) या ऑक्सीजन या पानी या किसी और चीज में – और इसे नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके उपयोगी पदार्थों में बदलना है।”
कितागावा ने आगे कहा, “मैं अपने छात्रों को बताता हूं कि केमिस्ट्री और साइंस में चुनौती बहुत महत्वपूर्ण है।”
याघी जॉर्डन के रिफ्यूजी कैंप में रहे। अमेरिका में शिक्षा दीक्षा ली और फिर कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बन गए। जॉर्डन में जन्मे याघी फिलिस्तीनी मूल के हैं। जॉर्डन में एक छोटे से कमरे में परिवार रहता था और मवेशी रखता था।
नोबेल वेबसाइट पर प्रकाशित एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “यह एक लंबी यात्रा है और विज्ञान आपको ऐसा करने की अनुमति देता है।” उन्होंने आगे बताया कि उनके माता-पिता मुश्किल से पढ़-लिख पाते थे। उन्होंने कहा, “विज्ञान दुनिया की सबसे बड़ी ऐसी शक्ति है, जो सबको एक समान ला खड़ा करती है।”
60 वर्षीय याघी ने कहा कि वह पुरस्कार जीतकर आश्चर्यचकित और प्रसन्न हैं। बताते हैं कि जब वह केवल 10 वर्ष के थे, तब उन्हें पुस्तकालय में अणुओं पर एक किताब मिली, और यहीं से रसायन विज्ञान के प्रति उनके आजीवन प्रेम की शुरुआत हुई। और “तब से, मैंने मॉलिक्यूल्स की ब्यूटी पर आधारित समस्याओं की जांच करना चुना है।”
उन्होंने नोबेल प्रेस को बताया, “मैंने सुंदर चीजें बनाने और बौद्धिक समस्याओं को हल करने का लक्ष्य रखा। आप जितना गहराई से खोजेंगे, उतनी ही खूबसूरती से आपको चीजें निर्मित होती हुई दिखाई देंगी।”
यह शोध 1989 में केमिस्ट रॉबसन के साथ शुरू हुआ, जो 20 के दशक के अंत में ऑस्ट्रेलिया चले गए थे। ब्रिटेन में जन्मे रॉबसन अब 88 साल के हैं।
यह वैज्ञानिक हीरे की संरचना से प्रेरित थे। उन्होंने कॉपर आयन को एक चतुर्भुज अणु के साथ मिलाकर पिरामिड का आकार दिया, जो आपस में जुड़कर कई छिद्रों से भरे क्रिस्टल बनाते हैं।
रॉबसन ने इन संरचनाओं की क्षमता को पहचाना, लेकिन वे अस्थिर थीं और टूटने की प्रवृत्ति रखती थीं।
कितागावा और याघी के शोध ने धातु-कार्बनिक ढांचों को मूल्यवान पदार्थों में बदल दिया।
रसायन विज्ञान की नोबेल समिति के अध्यक्ष हेनर लिंके ने कहा, “धातु-कार्बनिक ढांचों में अपार क्षमता है, जो नए कार्यों के साथ कस्टम-निर्मित पदार्थों के लिए पहले से अप्रत्याशित अवसर प्रदान करते हैं।”
पुरस्कार विजेताओं की अभूतपूर्व खोज के बाद, रसायनज्ञों ने हजारों विभिन्न एमओएफ बनाए हैं।
इनमें से कुछ मानव जाति की बड़ी चुनौतियों को हल करने में योगदान दे सकते हैं, जिनमें पानी से पीएफएएस को अलग करना, पर्यावरण में दवाओं के अंशों को विघटित करना, कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करना, या रेगिस्तानी हवा से पानी इकट्ठा करना शामिल है।
–आईएएनएस
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