इस बार चुनाव में उलट फेर के मायने!

डॉ धीरज फूलमती सिंह, वरिष्ठ स्तंभकार

    पांच राज्यों में हुए चुनाव का परिणाम तयशुदा 10 मार्च को आ गये,चार राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा तो पंजाब में आम आदमी पार्टी मैदान मारने में कामयाब हो गई। कॉग्रेस का तो दूर-दूर तक अब कोई नाम लेवा भी नही रहा ! कभी देश पर शासन करने वाली कॉग्रेस इस चुनाव में तो जैसे ओझल ही हो गई।
     इसमे कोई दो राय नही है कि भाजपा की इन जीतों के पीछे हिदुत्व की जीत ही है। भाजपा ने पंजाब छोड कर सभी चार राज्यों के मतदाताओं को हिदुत्व के पाले में जमा करने में कामयाब जरूर गई। पहली बार की जीत तुक्का जरूर हो सकती है,जैसा पंजाब में हुआ लेकिन भाजपा की उत्तर प्रदेश, गोवा,उत्तराखंड और मणिपुर की जीत तुक्का तो कत्तई नही है,कारण इन राज्यों में भाजपा पुनः दुबारा सत्ता में काबिज होने में कामयाब हुई। दुबारा सत्ता हासिल करना तुक्का तो किसी परिस्थिती में हो ही नही सकता।
       पंजाब में भाजपा की कोई खास जमीन नही है,पंजाब में भाजपा हमेशा साथी दलों के कंधे का सहारा ले अब तक चुनावी बिगुल फूंकती आई है। यह बात प्रधानमंत्री स्वय जानते है,इस लिए भी यदा कदा सिख पगडी पहन गुरुद्वारों में मत्था टेक सिख समुदाय को रिझाने का असफल प्रयास करते नजर आ जाते है। पंजाब में भाजपा का गणित हमेशा से फेल होता आया है तो इस बार के चुनाव रिजल्ट में भाजपा की स्थिती पर किसी को अचरज नही होना चाहिए।
       इस वजह से मेरी व्यक्तिगत राय यही है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत एक तुक्के से अधिक नही है लेकिन गलती से ही सही आम आदमी पार्टी पंजाब में कॉग्रेस का विकल्प बन कर जरूर उभरी है,उत्साह से लबरेज यह पार्टी देश भर में शायद भविष्य के कॉग्रेस का विकल्प बन कर उभरे ? पंजाब में कॉग्रेस की आपसी सिर-फूटौवल, कैप्टन अमरिंदर का उम्र दराज होना और अकाली दल का हासिये पर चले जाना साथ ही भाजपा की राजनीतिक जमीन का ना होना,आम आदमी पार्टी के लिए फायदेमंद रहा। इस लिए भी बंपर जीत के साथ आम आदमी पार्टी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर निशाना लगाने में कामयाब भी रही। वैसे मुझे शंका है कि भगवंत मान पंजाब में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर साल-छः महीने से ज्यादा टीक पाएं ?
      अरविंद केजरीवाल जिस तरह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखते है,शह मात की सियासत का खेल खेलते है,उस हिसाब से मुझे लगता है कि वो किसी ना किसी जनता सर्वे के बहाने मनिष सिसौदिया को दिल्ली की गद्दी सौंप कर खुद पंजाब की गद्दी पर विराजमान ना हो जाए! अरविंद केजरीवाल बहुत महत्वकांक्षी शख्स है,उपर से आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा भी है,ऐसे में पंजाब जैसे संपूर्ण राज्य के होते हुए वे दिल्ली जैसे अर्ध राज्य का मुख्यमंत्री कहलवाना शायद पसंद ना करें ?
        उत्तर प्रदेश में फिर साबित हो गया कि मोदी है,तो मुमकिन है और योगी बहुत उपयोगी है। जैसे- जैसे नरेद्र मोदी की उम्र बढते जा रही है,विरोधी उनको चुका हुआ मान रहे थे लेकिन मोदी ने फिर साबित कर दिया कि विरोधियों का ऐसा सोचना एक दिवा स्वप्न से ज्यादा कुछ नही है। विरोधियों के लिए मोदी-योगी की जोड़ी करेला, उपर से नीम चढा जैसी ही महसूस हो रही है। भाजपा के हिदुत्व की राजनीति में फिर से जीत का सेहरा उसके माथे पर बांध दिया।
         उत्तर प्रदेश में क़ानून व्यवस्था कायम होना, विकास की बात करना,समाजवादी पार्टी का गुण्डाराज खत्म होना,गैर कानूनी इमारतों पर बेधड़क बुलडोजर चलवा देना,माफिया और दबंगो को जेल की सलाखों के पीछे डाल देना,महिलाओ और दलितों का भाजपा के साथ आ जाना उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ की जीत का रास्ता प्रशस्त कर गया। भले दलित वर्ग हिदु धर्म में छूआ छूत और जातीय प्रथा का सबसे बडा शिकार हुआ हो मगर हिदुत्व पर जब भी मुसीबत आती है,तो दलित वर्ग उस मुसीबत का सामना करने के लिए सबसे आगे खडा मिलता है।

      उत्तर प्रदेश में भाजपा का बढा वोट प्रतिशत यह जरूर चुगली कर रहा है कि महिलाओं ने भाजपा को छुपे तौर पर बढ चढ कर वोट दिया है। भले समाजवादी पार्टी ने शुरुआती टक्कर बेहतर ढंग से देने की कोशिश की लेकिन अंत में आते-आते थक कर निढाल हो गई। उपर से सपा के नेताओं के धमकी भरे बयान और बडबोलापन, पत्रकारो पर व्यंग व उन पर व्यक्तिगत छिंटाकशी नागवार गुजरी,बार-बार देख लेनी की धमकी,यह सब कारस्तानी अखिलेश यादव के गुण्डा राज की याद दिया देता और यही फैक्टर चुनाव में समाजवाद का बेडा गर्क कर दिया।
        आश्चर्यजनक रूप से बसपा सुप्रीमों ने इस चुनाव में खामोशी अख्तियार कर ली थी,ऐसा लग रहा था कि जैसे वे चुनाव लड़ना ही नही चाहती। इस चुनाव में जीत हार से उनको कोई फर्क नही पडता। अपनी बली देकर उन्होने भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर को एक पक्षीय कर जीत को भाजपा के पाले में ला खड़ा किया । ऐसा ही कुछ पिछले चुनाव में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने अपने को शहीद कर भाजपा की जीत के सपने को धूमिल कर दिया था।
       चुनाव के आखिरी दौर में प्रधानमंत्री का बनारस में तीन दिन रूकना,मतदाताओं में विश्वास जगा गया। इस बार कॉग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी ने मोर्चा संभाला था,इस लिए राहुल गांधी की मिट्टी पलीद होने से बच गई, हार का पूरा ठिकडा प्रियंका गांधी पर फूटना चाहिए लेकिन हमेशा की तरह गांधी परिवार को बचाने कॉग्रेस पार्टी हार के लिए जिम्मेदार कोई ना कोई कारण सहित बकरा खोज ही लेगी। कॉग्रेस में गांधी परिवार पर उंगली उठाने की जुर्रत कौन कर सकता है,भला ? उपर से प्रियंका गांधी का नारा “लडकी हूँ,लड सकती हूँ” और फजीहत करा गया! प्रियंका गांधी राजनीति में जब तक नही उतरी थी,तब तक कॉग्रेस को उन में दिव्य नेतृत्व की आस तो रहती थी,अब तो आशा का वह दीपक भी बुझता हुआ नजर आ रहा है।
         उत्तर प्रदेश में भाजपा की इस जीत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी से चीपके कई अंधविश्वासों को भी धाराशाही किया। इस बार उत्तर प्रदेश में जातीगत राजनिती की मृत्यू होते साफ नजर आई। हिदुत्व एकता साफ तौर पर नजर आई लेकिन थोड़ी सी शंका ब्राह्मण समाज के बिखरने की जरूरत महसूस हुई। ब्राह्मण वर्ग थोडा सा ही सही लेकिन भाजपा से  छिटका जरूर!
        उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी की मुफ्त बांटने वाली राजनीतिक चाल नही चल पाई,छिटपुट मौको को छोड खैर कॉग्रेस भी इस लडाई में कही नजर नही आई। नजर अगर कोई पार्टी आई तो वह है भाजपा। उत्तराखंड में भी जातिगत भेदभाव पैदा कर राजनीतिक दांव खेलना फेल होता नजर आया। अब तक हर चुनाव में बिखरा हिदुत्व यहाँ भी विकास की राजनीति के पीछे चलता एकजुट नजर आया।
           गोवा और मणिपुर भले भौगोलिक आकार में छोटे हो लेकिन यहाँ पर अगर भाजपा की हार हो जाती तो भी भारत के केंद्रिय नेतृत्व पर सवाल खडे हो जाते। गोवा और मणिपुर दोनो ने मिलकर भाजपा और नरेद्र मोदी के विकास की राजनिती के साथ हिदुत्व की राजनीतिक जमीन की लाज रख ली। गोवा में भाजपा की तीसरी बार सरकार बनने जा रही है,इस बार भाजपा ने पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत में भाजपा ही शायद वह पार्टी है जो शेष भारत के लोगों में यह विश्वास जगा पाई की उत्तर पूर्व के राज्य और उसके नागरिक हमारे भारत के अंग है,भाजपा से पहले के दल इस इलाके में विकास से समझौता कर लेते थे,रेल मार्ग और सडक मार्ग से ये इलाके बेहतर ढंग से नही जुडे थे मगर अब ये क्षेत्र भी शेष भारत से विशेष तौर पर जुडने शुरू हो गए है। भाजपा पूरे साल चुनाव मोड में रहती है,ऐसा में कोई दल दो-चार महीने की राजनीति कर उसे  हरा देगा तो यह उसकी गलत फहमी है। भाजपा ने भारत के राजनीतिक नियमों को उलट-पलट कर रख दिया है। अब वह विपक्ष को अपने अखाड़े में ला कर चित्त कर देती है। इसी के साथ भाजपा ने 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का बिगुल भी फूंक दिया है।

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