वेटांगी दिवस : माओरी अधिकारों को लेकर चिंता के बीच न्यूजीलैंड में कई कार्यक्रमों का आयोजन


वेलिंगटन, 6 फरवरी (आईएएनएस)। न्यूजीलैंड ने गुरुवार को ‘वेटांगी दिवस’ मनाया। यह दिवस देश के संस्थापक दस्तावेज ‘वेटांगी संधि’ पर हस्ताक्षर की 185वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मनाया गया। हालांकि ‘वेटांगी दिवस’ पर सार्वजनिक अवकाश रखा गया था लेकिन फिर भी इसे मनाने के लिए देश भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन भी साउथ आइलैंड में एक कार्यक्रम में शामिल हुए।

प्रधानमंत्री ने कहा, “यह संधि न्यूजीलैंड के इतिहास और हमारे भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।” उन्होंने आगे कहा कि सरकार की भूमिका संधि का सम्मान करना, माओरी के साथ साझेदारी में काम करना और यह सुनिश्चित करना है कि देश एकता, और एकजुटता की भावना से आगे बढ़ता रहे।

हालांकि इस वर्ष ये आयोजन ऐसे समय में हो रहे हैं जब सरकार पर ऐसी नीतियों को आगे बढ़ाने के आरोप लग रहे हैं जो कथित तौर पर माओली विरोधी हैं।

देश के सत्तारूढ़ गठबंधन में अल्पसंख्यक भागीदार ने 185 साल पुरानी वेटांगी संधि की पुनर्व्याख्या करने वाले विधेयक को पेश करने से गुस्सा और निराशा पैदा हुई।

हालांकि प्रधानमंत्री लक्सन ने कहा कि यह विधेयक कानून नहीं बनेगा, लेकिन पिछले नवंबर में हिकोई या शांतिपूर्ण मार्च में रिकॉर्ड संख्या में प्रदर्शनकारी बाहर आए।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 6 फरवरी 1840 को वेटांगी में कई, [लेकिन सभी नहीं], माओरी जनजातियों और ब्रिटिश क्राउन के बीच हस्ताक्षर किए गए थे। इससे दोनों पक्षों को कुछ अधिकार और विशेषाधिकार मिले।

माओरी के लिए, इसमें उनकी भूमि और संसाधनों पर प्रधानता बनाए रखना शामिल है, लेकिन संधि के माओरी और अंग्रेजी संस्करणों के बीच मतभेदों ने इसे व्याख्या के लिए खुला छोड़ दिया। स्वदेशी भूमि अधिकारों की रक्षा करने का वादा बार-बार तोड़ा गया। इसने आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभावों के साथ-साथ नस्लीय भेदभाव ने असमानता को जन्म दिया, जिसका समाधान आज भी पूरी तरह नहीं हुआ है।

इसी संदर्भ में संधि पर हस्ताक्षर की वर्षगांठ माओरी और राज्य के बीच संबंधों की स्थिति के बारे में चर्चा के लिए एक महत्वपूर्ण दिन बन गई है।

पिछले कुछ समय से संधि सिद्धांत विधेयक विवाद की वजह बना है। विधेयक के समर्थकों का कहना है कि यह न्यूजीलैंड के लोगों के बीच समानता को बढ़ावा देगा, लेकिन विरोधियों का तर्क है कि यह विभाजनकारी है और माओरी को ज्यादा नुकसान पहुंचाएगा।

इस विधेयक को लेकर चिंता इतनी अधिक है कि माओरी जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक राष्ट्रीय मंच ने हाल ही में न्यूजीलैंड के राष्ट्राध्यक्ष राजा चार्ल्स को पत्र लिखकर उनकी मदद मांगी है।

हालांकि इस विधेयक के पारित होने की संभावना नहीं है। लक्सन और उनकी बहुमत वाली नेशनल पार्टी ने इस साल के अंत में इसकी दूसरी रीडिंग में इसका समर्थन न करने की कसम खाई है। हालांकि विरोधियों का मानना है कि इसका अस्तित्व ही अपमानजनक है।

–आईएएनएस

एमके/


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