लेटर्स फ्रॉम होम : घर से दूर 'घर की तलाश', कलाकृतियों में उभरा जरीना का दर्द…


नई दिल्ली, 15 जुलाई (आईएएनएस)। कला जब शब्दों से मिलती है तो उसमें भावनाओं की परतें जुड़ जाती हैं। कुछ कलाकारों की कला देखने में जितनी सरल लगती है, उसमें छुपे अर्थ उतने ही गहरे होते हैं। जरीना हाशमी एक ऐसी ही कलाकार थीं। उनकी कला दिखने में भले ही सीधी-सादी लगती थी, लेकिन उसमें बहुत गहरे अर्थ छिपे होते थे।

उनकी कई तस्वीरों और कागज पर बनी कलाकृतियों में उर्दू में लिखे शेर, कविता की पंक्तियां और गहरी बातें छिपी होती थीं। ये शब्द कभी बहुत छोटे होते थे, तो कभी किसी कोने में लिखे होते थे।

जरीना के लिए उर्दू सिर्फ एक भाषा नहीं थी, बल्कि उनकी यादें थीं, जो उन्हें अतीत से जोड़े रखती थीं। उन्होंने जीवन के सबसे दुखद और भावुक पल इसी भाषा में अपनी कला में उतारे। उनकी एक खास कलाकृति ‘लेटर्स फ्रॉम होम’ में उनकी बहन के लिखे गए 6 अनछुए खत शामिल हैं। इन चिट्ठियों में घर की कमी, माता-पिता की मृत्यु और अकेलेपन की बात थी। यही सब बातें उनकी कला का हिस्सा बन गईं और हर देखने वाले को छू गईं।

जरीना हाशमी का जन्म 16 जुलाई 1937 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। उनके पिता अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में शिक्षक थे और मां एक गृहिणी थीं। 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद उनके ज्यादातर रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए, लेकिन जरीना भारत में ही रहीं। यही बंटवारा उनके मन में एक खालीपन छोड़ गया और यही खालीपन उनकी कला में ‘घर की तलाश’ बनकर बार-बार दिखा। जरीना ने 1958 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से गणित में पढ़ाई पूरी की। उन्हें गणित से बहुत लगाव था। यही कारण है कि उनकी कला में गणित से जुड़ी आकृतियां भी नजर आती हैं।

21 साल की उम्र में उनकी शादी एक फॉरेन सर्विस डिप्लोमेट से हुई। शादी के बाद वह बैंकॉक, टोक्यो, पेरिस और न्यूयॉर्क जैसे कई देशों में रहीं। उन्होंने इन देशों में रहकर प्रिंटमेकिंग कला सीखी। पेरिस में उन्होंने स्टेनली विलियम हेटर और टोक्यो में तोशी योशिदा जैसे बड़े कलाकारों से कला की बारीकियां सीखीं। 1977 में जरीना न्यूयॉर्क में रहने लगीं। वहां उन्होंने सिर्फ कला नहीं बनाई, बल्कि महिलाओं के हक में आवाज भी उठाई। वह एक महिला अधिकार समूह की सदस्य बनीं और कई प्रदर्शनियों में भाग लिया। उन्होंने न्यूयॉर्क नारीवादी कला संस्थान में पढ़ाया और महिला कलाकारों को आगे बढ़ने में मदद की।

जरीना की ज्यादातर कला ‘घर’ के इर्द-गिर्द घूमती थी। जरीना को उनकी कला के लिए कई बड़े सम्मान मिले। उन्हें 1969 में भारत का राष्ट्रपति पुरस्कार मिला। इसके अलावा, उन्होंने अमेरिका और जापान में कई कलात्मक फैलोशिप भी हासिल कीं। उनकी कलाकृति आज गुगेनहाइम, मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम, आधुनिक कला संग्रहालय, और व्हिटनी म्यूजियम जैसे मशहूर म्यूजियम में रखी गई हैं।

जरीना का 25 अप्रैल 2020 को लंदन में निधन हो गया। वे अल्ज़ाइमर नाम की बीमारी से जूझ रही थीं। उनके जाने के बाद भी उनकी कला और सोच जिंदा है।

–आईएएनएस

पीके/एबीएम


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