पार्किंसंस रोग पर बड़ा खुलासा, शोधकर्ताओं ने बीमारी का खतरा बढ़ाने वाले मुख्‍य जीन क‍िए चिह्नित


नई दिल्ली, 12 अप्रैल (आईएएनएस)। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने आधुनिक तकनीक सीआरआईएसपीआर इंटरफेरेंस के जरिए एक नए जीन समूह की पहचान की है। यह जीन पार्किंसंस रोग के जोखिम को बढ़ाता है।

दुनिया भर में 10 मिलियन से ज्यादा लोग पार्किंसंस रोग से पीड़ित हैं। अल्जाइमर रोग के बाद यह दूसरी सबसे आम न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है।

शोधकर्ता लंबे समय से इस बात की जांच कर रहे हैं कि रोगजनक वेरिएंट वाले कुछ लोगों में पार्किंसंस क्यों विकसित होता है? जबकि ऐसे वेरिएंट वाले अन्य लोगों में ऐसा नहीं होता। प्रचलित सिद्धांत ने सुझाव दिया कि अतिरिक्त आनुवंशिक कारक भी भूमिका निभा सकते हैं।

साइंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में जीन और सेलुलर मार्ग के एक नए सेट की पहचान की गई है, जो पार्किंसंस रोग के विकास के जोखिम में भूमिका निभाते हैं।

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सीआरआईएसपीआर इंटरफेरेंस तकनीक का उपयोग करके पूरे मानव जीनोम की खोज की।

उन्होंने पाया कि कमांडर नामक 16 प्रोटीनों का एक समूह एक साथ मिलकर लाइसोसोम (कोशिका का एक भाग जो पुनर्चक्रण केंद्र की तरह कार्य करता है) तक विशिष्ट प्रोटीन पहुंचाने में पहले एक अज्ञात भूमिका निभाता है, जो अपशिष्ट पदार्थों, पुरानी कोशिका भागों और अन्य अवांछित पदार्थों को तोड़ता है।

विश्वविद्यालय में न्यूरोलॉजी के डेवी विभाग के अध्यक्ष और फीनबर्ग न्यूरोसाइंस संस्थान के निदेशक डॉ. दिमित्री क्रेनक ने बताया, “हमारे अध्ययन से पता चलता है कि पार्किंसंस रोग जैसी बीमारियों के प्रकट होने में आनुवंशिक कारकों का संयोजन एक भूमिका निभाता है, जिसका अर्थ है कि इस तरह के विकारों के लिए कई प्रमुख मार्गों के चिकित्सीय लक्ष्यीकरण पर विचार करना होगा।”

हजारों मरीजों का अध्ययन करने के बजाय टीम ने सीआरआईएसपीआर का सहारा लिया।

क्रेनक ने कहा, “हमने कोशिकाओं में प्रोटीन-कोडिंग मानव जीनों में से प्रत्येक को शांत करने के लिए जीनोम-व्यापी सीआरआईएसपीआर हस्तक्षेप स्क्रीन का उपयोग किया और पीडी रोगजनन के लिए महत्वपूर्ण लोगों की पहचान की।”

दो स्वतंत्र समूहों के जीनोम की जांच करके वैज्ञानिकों ने पाया कि पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों में कमांडर जीन में कार्य-हानि वाले वेरिएंट की तुलना में पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों में कार्य-हानि वाले वेरिएंट अधिक होते हैं।

क्रैंक ने कहा, “इससे पता चलता है कि इन जीनों में कार्य-हानि वाले वेरिएंट पार्किंसंस रोग के जोखिम को बढ़ाते हैं।”

–आईएएनएस

पीएसके/सीबीटी


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