किशोर कुमार: जादू भरी मखमली आवाज ने दिलों पर किया राज, गीतों में बसी जादुई दास्तान

नई दिल्ली, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग में एक ऐसी आवाज गूंजी, जिसने लाखों दिलों को छूआ और संगीत की दुनिया में अमर हो गई। किशोर कुमार न सिर्फ एक गायक थे, बल्कि एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार थे, जिन्हें प्यार से ‘किशोर दा’ कहा जाता है। उनकी मखमली आवाज और उसमें ठहराव की अनूठी शैली ने उन्हें भारतीय संगीत का पर्याय बना दिया।
4 अगस्त, 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में जन्मे किशोर कुमार का असली नाम आभास कुमार गांगुली था। उनके बड़े भाई अशोक कुमार पहले से ही बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता थे, जिसके चलते किशोर कुमार का रुझान भी सिनेमा की ओर हुआ, लेकिन जहां अशोक अभिनय में चमके, किशोर कुमार ने अपने गानों से दुनिया को दीवाना बनाया।
शुरुआत में उन्हें अभिनय के लिए प्रोत्साहित किया गया, लेकिन उनकी आत्मा संगीत में बसी थी। किशोर कुमार ने 1946 में शिकारी फिल्म से अभिनय शुरू किया, लेकिन उनका मन एक्टिंग में नहीं लगता था। वह केएल सहगल की तरह गायक बनना चाहते थे। 1948 में जिद्दी फिल्म में खेमचंद्र प्रकाश के संगीत निर्देशन में उन्होंने पहला गाना गाया, “मरने की दुआएं क्यों मांगू, जीने की तमन्ना कौन करे,” जो देव आनंद के लिए था। इसके बाद उन्होंने गायकी में शानदार सफलता हासिल की और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
किशोर कुमार एक ऐसी आवाज रहे, जिसने हिंदी सिनेमा को अनगिनत सदाबहार गीत दिए, जैसे मेरे सपनों की रानी, पल-पल दिल के पास, और जिंदगी एक सफर है सुहाना। उनकी गायकी में जादू था, चाहे रोमांटिक गीत हों, उदासी भरे या जोश से भरे गाने, हर भाव को उन्होंने बखूबी पेश किया। उनकी आवाज की जीवंतता और भावनात्मक गहराई ने उन्हें हर पीढ़ी का चहेता बनाया। उनकी आवाज हर भाव को जीवंत कर देती थी। उन्होंने आरडी बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकारों के साथ मिलकर कई कालजयी गीत दिए। किशोर दा का संगीतकार आरडी बर्मन के साथ खास रिश्ता था। दोनों ने ‘कटी पतंग’, ‘अमर प्रेम’ जैसे अनगिनत हिट गीत दिए।
किशोर कुमार केवल गायक ही नहीं, बल्कि अभिनेता, निर्देशक, निर्माता और संगीतकार भी थे। उनकी फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ और ‘झुमरू’ दर्शकों के बीच आज भी लोकप्रिय हैं।
उनकी हास्य शैली और सहज अभिनय ने उन्हें दर्शकों का चहेता बनाया, लेकिन किशोर दा का निजी जीवन उतना ही जटिल था, जितना उनकी कला सहज थी। चार शादियां, जिनमें रुमा घोष, मधुबाला, योगिता बाली और लीना चंदावरकर शामिल थीं, उनकी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव लाईं।
13 अक्टूबर, 1987 को दिल का दौरा पड़ने से किशोर कुमार का निधन हो गया, लेकिन उनकी आवाज आज भी जीवित है। रेडियो पर, संगीत समारोहों में, या किसी के दिल में, किशोर दा का संगीत हर जगह गूंजता है।
चाहे वह ‘पल पल दिल के पास’ की रोमांटिक धुन हो या ‘एक लड़की भिगी भागी सी’ की मस्ती, किशोर कुमार का जादू कभी फीका नहीं पड़ेगा। उनकी आवाज आज भी हर दिल में बसी है, जो हमें प्यार, मस्ती और जिंदगी के रंगों से जोड़ती है।
–आईएएनएस
एकेएस/डीकेपी