जयंती विशेष: 'जब एक सुर ने अंतरिक्ष को छू लिया'… जानें केसरबाई केरकर की कहानी

मुंबई, 12 जुलाई (आईएएनएस)। हर युग में कुछ ऐसे गायक होते हैं जिनकी आवाज सिर्फ कानों में ही रस नहीं घोलती, बल्कि सीधे दिल और आत्मा में बस जाती है। इतनी खास होती हैं कि वे धरती से निकलकर सीधे अंतरिक्ष तक पहुंच जाती हैं। ऐसी ही एक महान गायिका थीं भारत की ‘केसरबाई केरकर’, उनके सुरों का जादू सिर्फ हमारे देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में और यहां तक कि अंतरिक्ष तक भी पहुंचा!
केसरबाई केरकर का जन्म 13 जुलाई 1892 को गोवा के एक छोटे से गांव केरी में हुआ था। उस समय गोवा पर पुर्तगालियों का शासन था और पूरा भारत अंग्रेजों के अधीन था। बचपन से ही उनके अंदर संगीत के लिए एक अलग ही लगाव था। उन्होंने महज आठ साल की उम्र में संगीत सीखना शुरू कर दिया था। उनके जीवन का सफर काफी चुनौतीपूर्ण था, लेकिन मेहनत और लगन ने उन्हें भारत की सबसे बड़ी शास्त्रीय गायिकाओं में से एक बना दिया।
आठ साल की उम्र में केसरबाई ने कोल्हापुर जाकर संगीत की शिक्षा ली। वहां उन्होंने अब्दुल करीम खान से संगीत की बारीकियां सीखीं। बाद में उन्होंने रामकृष्ण बुवा वाजे और बरकत उल्लाह खान जैसे बड़े गुरुओं से भी प्रशिक्षण लिया। 1921 में वह जयपुर-अतरौली घराने के संस्थापक उस्ताद अल्लादिया खान की शिष्या बनीं, जिनसे उन्होंने 11 साल तक संगीत का प्रशिक्षण लिया। इस घराने की खासियत यह थी कि इसमें गाने की एक खास शैली और गहराई थी, जिसे केसरबाई ने पूरी लगन से सीखा और अपनाया।
केसरबाई की आवाज में एक अलग ही मिठास और ताकत थी। उनकी गायकी इतनी प्रभावशाली थी कि लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहते थे। वह बड़ी ही सावधानी से अपने गानों का चुनाव करती थीं और केवल वही गाती थीं जो उनके स्तर के अनुरूप होते थे।
उनका नाम केवल भारत में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय हुआ।
केसरबाई केरकर की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उनका एक गीत ‘जात कहां हो,’ जो राग भैरवी पर आधारित था, नासा के वॉयजर 1 और वॉयजर 2 अंतरिक्ष यानों के ‘गोल्डन रिकॉर्ड’ में शामिल किया गया। यह रिकॉर्ड 1977 में अंतरिक्ष में भेजा गया था और इसमें पृथ्वी की विभिन्न संस्कृतियों और जीवन के संकेत शामिल थे। केसरबाई की यह रिकॉर्डिंग विश्वभर के संगीतों में खास मानी गई। इस तरह उनकी आवाज पृथ्वी की सीमा पार कर अंतरिक्ष तक पहुंची और उन्हें अंतरिक्ष में गूंजने वाली पहली भारतीय गायिका बनने का गौरव मिला।
उनकी प्रतिभा और संगीत में योगदान को भारत सरकार ने भी पहचाना। 1953 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 1969 में पद्म भूषण से नवाजा गया। उनके गुरु और महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें ‘सुरश्री’ की उपाधि दी, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘स्वरों पर महारत रखने वाला’।
केसरबाई केरकर ने सिर्फ एक महान गायिका के रूप में ही नहीं बल्कि एक मिसाल के रूप में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने महिलाओं के लिए संगीत के क्षेत्र में नए रास्ते खोले। उन्होंने साबित कर दिखाया कि अगर कला में लगन और मेहनत हो तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती।
16 सितंबर 1977 को केसरबाई केरकर का निधन हो गया, लेकिन उनकी आवाज और संगीत की विरासत आज भी जीवित है। उनके नाम पर गोवा में एक स्कूल है और मुंबई विश्वविद्यालय के छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाती है। साथ ही हर साल उनके सम्मान में संगीत समारोह भी आयोजित होता है।
–आईएएनएस
पीके/केआर