जयंती विशेष : नेवी में शामिल होने मुंबई आए, मगर बन गए हीरो


मुंबई, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। हिंदी सिनेमा के ‘नेचुरल स्टार’ की बात हो तो अभिनेता मोतीलाल का नाम सामने आता है। 4 दिसंबर 1910 को शिमला में पैदा हुए मोतीलाल राजवंश ने कभी नहीं सोचा था कि उनका नाम हिंदी सिनेमा के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।

अभिनेता का बचपन शिमला में बीता, कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली से पूरी की और फिर नेवी जॉइन करने मुंबई आ गए। किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। प्रवेश परीक्षा के ठीक पहले वह बीमार पड़ गए और नेवी का सपना अधूरा रह गया।

मुंबई में यूं ही दिन कट रहे थे कि एक दिन दोस्तों के साथ सागर स्टूडियो में चल रही शूटिंग देखने पहुंच गए। वहां निर्देशक कालीप्रसाद घोष फिल्म ‘शहर का जादू’ (1934) बना रहे थे। मोतीलाल की कद-काठी, शालीन चेहरा और अंदाज देखते ही घोष साहब उनसे इंप्रेस हो गए। फिर क्या था 24 साल की उम्र में बिना किसी प्लानिंग के मोतीलाल सिनेमा के परदे पर उतर गए। उनकी पहली फिल्म ही हीरो के रूप में थी और कोएक्टर सविता देवी थीं।

उन्होंने ‘जागीरदार’, ‘लग्न बंधन’, ‘कोकिला’, ‘कुलवधू’ समेत एक से बढ़कर एक कई फिल्मों में काम किया। लेकिन, असली पहचान मिली नेचुरल एक्टिंग से। वह पर्दे पर अभिनय नहीं करते थे, उसे सहज तरीके से जीते थे। साल 1940 में आई फिल्म ‘अछूत’ में उन्होंने अछूत युवक की भूमिका निभाई थी। उनकी एक्टिंग इतनी सहज और सशक्त थी कि खुद महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल ने उनकी तारीफ की थी।

इसके बाद मोतीलाल, बिमल रॉय की साल 1955 में आई फिल्म ‘देवदास’ में नजर आए, जिसमें उन्होंने दिलीप कुमार के दोस्त ‘चुन्नी बाबू’ का किरदार निभाया था। उनकी हंसी, बोली, शालीनता, सब कुछ इतना सहज और जीवंत था कि दर्शकों ने उन्हें उस किरदार में बेहद पसंद किया। इसी भूमिका के लिए उन्हें पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड (बेस्ट कोएक्टर) मिला था।

इसके बाद वह ‘अनाड़ी’, ‘पैगाम’ और साल 1960 में आई फिल्म ‘परख’ में नजर आए, जिसमें उनकी शानदार एक्टिंग देखने को मिली। उन्होंने 50 से ज्यादा फिल्में कीं और सहजता इतनी कि कहीं भी बनावटी नहीं लगे। देश के राजनेताओं के साथ ही कलाकार भी उनके अभिनय के मुरीद रहे।

लेखक दिनेश रहेजा और जितेंद्र कोठारी की किताब ‘द हंड्रेड ल्यूमिनरीज ऑफ इंडियन सिनेमा’ में अमिताभ बच्चन उनके एक्टिंग की तारीफ करते हुए कहते हैं, “मोतीलाल अपने समय से बहुत आगे थे। अगर आज होते तो वास्तव में, वह बेहतर कर रहे होते।”

साल 2013 में भारत सरकार ने मोतीलाल की याद में डाक टिकट जारी किया था। 17 जून 1965 को महज 54 साल की उम्र में मुंबई में उन्होंने आखिरी सांस ली थी।

–आईएएनएस

एमटी/एबीएम


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