क्या भारतीय फुटबॉल फिर से निचले स्तर पर जा रहा है?

नई दिल्ली, 22 नवंबर (आईएएनएस)। भारतीय फुटबॉल के लिए इंडियन सुपर लीग को एक गेम-चेंजर के तौर पर पेश किया गया था। स्टेडियम की लाइटें, विदेशी स्टार्स, सेलिब्रिटी, और पैसा सब कुछ दिखा। ऐसा लगा मानों आईपीएल की तरह इंडियन सुपर लीग भारतीय फुटबॉल की दशा सुधार देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारतीय फुटबॉल अभी भी अस्थिर है। इसकी वजह इंडियन सुपर लीग का अस्थिर होना है। लीग के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बरकरार है।
इंडियन सुपर लीग के आयोजन की असमंजस की स्थिति राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के प्रदर्शन को भी प्रभावित कर रही है। भारत को बांग्लादेश के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय टीम थकी हुई लग रही है। जो खिलाड़ी कभी मैच में तेजी से खेलते थे, वे भारी पैरों और कम स्टैमिना वाले दिखे। ट्रेनिंग का रुक-रुक कर होना और लगातार मैच न खेलने का असर खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर स्पष्ट दिख रहा है।
भारत फीफा रैंकिंग में 142वें नंबर पर आ गया है। 2016 के बाद से यह सबसे खराब स्थिति थी।
एक समय था जब आईएसएल क्लब अपने खिलाड़ियों को नेशनल ड्यूटी के लिए रिलीज करने से हिचकिचाते थे, क्योंकि उनका शेड्यूल व्यस्त होता था। उस समय यह एक समस्या थी, लेकिन कम से कम काम करने वाले क्लब थे, ट्रेनिंग पिचें भरी हुई थीं और लगातार मुकाबला होता था। आज, चिंता उससे अधिक गंभीर है। अब बात टीमों के अपने खिलाड़ियों को बनाए रखने की नहीं है। बात यह है कि क्या उन्हें भेजने के लिए कोई मजबूत, भरोसेमंद क्लब सिस्टम होगा भी या नहीं। क्लबों द्वारा रोके जाने से लेकर शायद बिना किसी क्लब के रह जाने तक, इंडियन फुटबॉल एक पूरा चक्कर लगा चुका है।
एक डोमेस्टिक लीग और एक नेशनल टीम एक ही इकोसिस्टम का हिस्सा हैं। वे एक साथ उठते और गिरते हैं। जब एक टूटने लगता है, तो दूसरे को इसका एहसास होना तय है। बिगड़े हुए सीजन स्काउटिंग पाइपलाइन को तोड़ देते हैं। अनिश्चितता जमीनी स्तर पर विकास को धीमा कर देती है। टॉप पर कन्फ्यूजन आखिरकार एकेडमी, कोच और युवा खिलाड़ियों तक पहुंचता है, जो सभी यह सोचने लगते हैं कि वे अब किस रास्ते के लिए ट्रेनिंग कर रहे हैं। क्या इंडियन फुटबॉल फिर से निचले स्तर पर जा रहा है।